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कबीले में चुनाव-22ः नदियों से पूछो सियासत में मलाई का मोल

हिरन और खरगोश बहुत दिनों बाद मुलाकात कर रहे हैं। वो इसलिए कि हिरन मक्खन घास के इंतजार में बहुत दूर तक निकल गया था। उसने सुना था कि मक्खन घास की चमक सामान्य घास से बहुत अलग है। खाने में आनंद आ जाता है। तारीफ सुनकर मीठी मीठी घास की तलाश में वो इतना दूर चला गया कि ठिकाने पर आने का रास्ता ही भूल गया। जंगल में भटकता रहा इधर-उधर, पर मक्खन घास नहीं मिल पाई।
वो तो भला हो कि खरगोश के फुंकनी यंत्र का, जिसने उसको हिरन का पता बता दिया। खरगोश तलाशते हुए पहुंच गया हिरन के पास और सलाह देते हुए कहा, दोस्त- किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। जिसने तुम्हें मक्खन घास के बारे में बताया था, उससे यह भी तो पूछ लेते कि कहां मिलती है। मुझे तो बता देते, मक्खन घास ढूंढने जा रहा हूं। हो सकता, मैं तुम्हारी मदद कर देता।
अच्छा इस बीच कुछ अनुभव हासिल हुए होंगे, कुछ सुना होगा कबीले की सियासत के बारे में। तुम तो इस बीच पूरा कबीला घूम लिए होंगे।
हिरन ने खरगोश से पूछा, मैं सुन रहा हूं बदलू महाराज कह रहे हैं कि वो अपने घर इसलिए नहीं लौटे कि मलाई खानी है। कृपया विस्तार से बताएं कि यह मलाई क्या होती है। क्या यह भी मक्खन घास की तरह तो नहीं है, जिसे बस ढूंढते रहो, मिलती नहीं।
खरगोश बोला, देखो दोस्त, मुझे मलाई के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं है। पर, इतना पता है कि दूध को गर्म करने के बाद उस पर जो परत बन जाती है, उसको मलाई कहते हैं। सियासत में मलाई का मतलब जानने के लिए वटवृक्ष के पास चलना होगा। वो ही वर्तमान और अतीत से छांटकर लाएंगे सियासत में मलाई के कुछ उदाहरण। मुझे एक बात को पुख्ता तौर पर पता है, बहुत सारे सियासी लोग मलाई के लिए भागम भाग करते हैं। वजीरों से लेकर दरबारियों तक को मलाई के लिए दौड़भाग करने की सूचनाएं हमेशा मिलती रही हैं।
अब तुम उस लक्कड़बग्घे से ही समझ लो, वो भी तो मलाई के लिए शेर जी को जंगल की सूचनाएं पहुंचाता है। उसने शेर जी के नाम पर जंगल में बहुत सारे जीवों को डराया धमकाया और उनसे कुछ न कुछ वसूल लेता है। उनका भोजन हड़प लेता है। शेर का छोड़ा हुआ शिकार भी तो लक्कड़बग्घे ही चट करते हैं।
दोनों वटवृक्ष के पास पहुंचकर उनको प्रणाम करते हैं। वटवृक्ष पूछते हैं, तुम क्या जानना चाहते हो, मुझे पता है।
खरगोश ने कहा, आपको तो सबकुछ पता रहता है। आप हवा से बातें करते हैं, हवा तो हर जगह रहती है। हमारी जिज्ञासा शांत करो वटवृक्ष।
वटवृक्ष ने कहा, जिस मलाई की तुम बात कर रहे हो, उसका गाय के दूध से कोई संबंध नहीं है। यह मलाई तो धन से वास्ता रखती है। तुम कभी नदियों से बात करना, उनकी संपदा खुले आसमान के नीचे हैं और सियासत करने वाले इस पर अपना हक समझते हैं। सियासत करने वाले ही नहीं, सियासियों पर धन वर्षा करने वाले भी इसी संपदा से कुबेर बन जाते हैं।
कबीले के चुनाव में इसको मुद्दा बनाने की कोशिश कोई नई बात नहीं है। तमाम सियासी चेहरे इसी की संपदा से फल-फूल रहे हैं। यह वो मलाई है, जिसको पाने के लिए सियासत के सभी ध्रुव एक ही बिंदु पर आ मिलते हैं। वो तो प्रजा है, जिसको दिखाने के लिए कभी-कभी इसकी लूट पर क्राेध एवं संवेदना व्यक्त किए जाते हैं।
नदियों  से ही क्या, तुम पर्वतों से बात करो, वनों से पूछो, भूमि से जानो, क्या वो सियासत करने वालों को मलाई से कम दिखते हैं। और हां…, सुरा तो मैं भूल ही गया। सियासत में सुरा न हो, यह हो ही नहीं सकता। मुझे तो लगता है समुद्र मंथन में सुरा का जन्म सिर्फ और सिर्फ सियासत को आगे बढ़ाने के लिए ही हुआ है।
वो कैसे, तुम्हें समझाता हूं। सुरा के बिना सियासत के सुर अधूरे हैं। सियासत में सुरा का दखल न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। सियासी लोगों के लिए चुनाव में सुरा का महत्व है, सत्ता के लिए सुरा महत्वपूर्ण है। कहा जाता है, सुरा है तो सत्ता के पास धन है। धन है तो सत्ता का संचालन है। सुरा ने तो न जाने कितने परिवारों को बर्बाद कर दिया, पर सियासत चाहती है कि यह बहती रहे, क्योंकि ये जितना बहती है, सत्ता उतनी समृद्ध होती है।
पर, एक बात है…, सियासत प्रेमियों को इतनी महारत हासिल है कि मन भरकर मलाई चखने के बाद भी उनके मुखमंडल पर कोई साक्ष्य नहीं मिलता। खरगोश ने पूछा, सुना है राजा के एक दरबारी ने मलाई का उपभोग करने वालों का पक्ष लिया है। उन्होंने तो साक्ष्य भी छोड़ दिया है।
वटवृक्ष बोले, जिसको तुम साक्ष्य कहते हो, वो आभासी है और आभासी संसार में विचरण कर रहा है। सत्य में वो कहां है, पता नहीं। उसकी सत्यता का पता लगाना बाकी है। हमें तो कबीले की सियासत से कुछ नहीं लेना, इसलिए हम सत्य तभी मानेंगे…, जब हमारे सामने तथ्य होंगे। राजा ने उस दरबारी को हटा दिया है। पर, विपक्षियों ने इसको मुद्दा बनाया है और राजा से कहा, गद्दी से हट जाओ। अच्छी बात है, गलत का विरोध होना चाहिए, पर सत्य को तथ्यों के साथ प्रस्तुत करके।
पर आप तो हवा से बात करते हो, उसको तो पता होगा सत्य क्या है और तथ्य कहां है, यह पता ही होगा, खरगोश ने प्रश्न किया।
वटवृक्ष ने कहा, हवा को मालूम होगा, पर वो यह सबकुछ क्यों बताएगी। हवा ने संकल्प लिया है, वह सिर्फ प्रजा के लिए काम करेगी, इसलिए वो न तो पक्ष के साथ है और न ही विपक्ष के संग।
तुम्हें तो पता है नदियों का सीना छलनी किया जा रहा है। नदियां खुली संपदा जरूर हैं, पर उनकी सुरक्षा के लिए निगरानी तंत्र है। अब तुम ही अनुमान लगा लो, सुरक्षा के बाद भी वो खतरे में क्यों हैं। यही दशा पर्वतों की है और वनों की भी।
खरगोश बोला, हम समझ गए सत्य क्या है और तथ्य क्या है। पर, चुनाव का समय है, इसलिए न किसी के लाभ की बात करेंगे और न ही किसी हानि की। वैसे भी हम जंगल के जीवों का चुनाव से कोई लेना देना नहीं है। इसलिए चुप रहना ही सही है। चुनाव पर गपशप का क्या है, वो तो आपके साथ करते रहेंगे। फिर मिलते हैं, कहकर दोनों दौड़ लिए अपने ठिकानों की तरफ।

Key words: Jungle Journey, Jungle mein chunav, Jungle Nama, Jungle story, Jungle tale, Kabile mein chunav, Who is the jungle king

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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