
ओडिशा की लोककथाः तपोई की कहानी
एक छोटी लड़की की कहानी, जिसने सुख के बाद बड़े दुखों का सामना किया और फिर मिलीं खुशियां
Tapoi Katha
तपोई एक अमीर व्यापारी तनयवंत की इकलौती बेटी थी। वह अपने माता-पिता और सात भाइयों की सबसे छोटी और लाडली थी। तपोई का जीवन बहुत सुखी था। वह अपने दोस्तों, जैसे मंत्री की बेटी और गाँव की दूसरी लड़कियों, के साथ झूला झूलती और रेत-मिट्टी से खाना बनाने का खेल खेलती थी।
एक दिन, तपोई अनाज साफ करने का खेल खेल रही थी। तभी एक बूढ़ी औरत आई और उससे कहा, “तुम इतने अमीर घर की बेटी हो, फिर गरीब बच्चों की तरह क्यों खेल रही हो? अपने माता-पिता से कहो कि तुम्हें सोने का सूप (अनाज साफ करने का औज़ार) और सोने का चाँद बनवाएँ।” तपोई ने यह बात अपने माता-पिता को बताई। उन्होंने तुरंत सबसे कुशल स्वर्णकारों को बुलाया और हीरों जड़ा एक बड़ा सोने का चाँद बनवाने का आदेश दिया।
लेकिन, जल्द ही दुर्भाग्य आया। चाँद आधा बना था जब तपोई के पिता की मृत्यु हो गई। जब चाँद पूरा बना, तब उसकी माँ भी चल बसीं। परिवार ने उनके अंतिम संस्कार किए।
कुछ समय बाद, तपोई के भाइयों ने व्यापार के लिए दूर के द्वीपों पर जाने का फैसला किया। उन्होंने घर की सारी व्यवस्था की और अपनी पत्नियों ( तपोई की भाभियों) से कहा कि वो तपोई का बहुत ध्यान रखें, उसे हर सुख दें और कोई तकलीफ न होने दें। शुरू में भाभियों ने ऐसा ही किया।
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लेकिन एक दिन एक बूढ़ी भिक्षुक उनके घर आई। उसने तपोई की सबसे बड़ी भाभी से कहा, “तुम अपनी ननद को इतना लाड़-प्यार क्यों देती हो? वह छोटी है, लेकिन तुम्हें नुकसान पहुंचाएगी। वह अपने भाइयों से तुम्हारी शिकायत करेगी। उसे जंगल में बकरियाँ चराने भेजो। वहाँ कोई बाघ या साँप उसे मार देगा। फिर तुम कह सकती हो कि वह बीमार होकर मर गई।”
यह सुनकर तपोई की भाभियों ने उसका जीना मुश्किल कर दिया। उसे फटे कपड़े पहनाए गए और जंगल में बकरियाँ चराने भेजा गया। उसे खाने के लिए सिर्फ थोड़ा-सा चावल दिया जाता था। सबसे छोटी भाभी को छोड़कर बाकी सभी, खासकर सबसे बड़ी भाभी, बहुत क्रूर थी। हफ्ते में एक बार, जब छोटी भाभी का खाना देने का नंबर आता, तपोई पेट भर खा पाती।
एक शाम को तूफान आया और एक बकरी, जिसका नाम “घरमणी” था, जंगल में खो गई। सबसे बड़ी भाभी गुस्से से पागल हो गई। उसने तपोई को धमकी दी कि अगर वह उस रात बकरी को नहीं लाई, तो वह उसकी नाक काट देगी। डरी हुई तपोई जंगल में बकरी ढूंढने चली गई। उसने “घरमणी, घरमणी” चिल्लाकर कई बार पुकारा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर उसने माँ मंगला देवी से प्रार्थना की और बकरी की आवाज़ सुनाई दी। वह बकरी को लेकर घर लौटी।
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बड़ी भाभी का गुस्सा थोड़ा कम हुआ, लेकिन उसने तपोई को उस रात खाना नहीं दिया। अगले दिन जो खाना दिया, वह इतना खराब था कि तपोई ने उसे फेंक दिया और भूखी रह गई। उसने सोचा कि घर लौटने से बेहतर है जंगल में बाघ या साँप के मुँह में चले जाना। उस रात वह घर नहीं लौटी। डर के मारे वह जोर-जोर से रोने लगी और अपनी तकलीफ बयान करने लगी।
उसी रात तपोई के भाई व्यापार से लौटे। वे अपनी नावों पर थे, तभी उन्हें तपोई की रोने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने अपने सबसे छोटे भाई को पता लगाने भेजा। छोटा भाई तपोई को जंगल में मिला। जब भाइयों ने उसकी दयनीय हालत देखी और उससे भाभियों की क्रूरता की कहानी सुनी, तो वे बहुत गुस्सा हुए।
अगले दिन, जब भाभियाँ भाइयों का स्वागत करने नाव पर आईं, तो भाइयों ने पूछा, “तपोई कहाँ है?” भाभियों ने झूठ बोला कि उसे सिरदर्द है। भाइयों ने एक-एक करके अपनी पत्नियों को नाव में देवी पूजा के लिए बुलाया। तपोई, जो देवी के रूप में तैयार थी, ने अपनी छह भाभियों की नाक काट दी। लेकिन जब सबसे छोटी भाभी आई, तो तपोई ने चाकू फेंक दिया और उसे गले लगाया। उसने कहा, “तुम्हारी वजह से मैं ज़िंदा हूँ। तुम मेरी माँ हो।”
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नाक कटी छह भाभियाँ शर्मिंदगी के कारण घर नहीं लौटीं। वे जंगल में चली गईं, जहाँ एक बड़े बाघ ने उन्हें खा लिया। कुछ दिन बाद, तपोई का विवाह एक सधाबा (व्यापारी) बिरनंची से हुआ। शादी बहुत धूमधाम से हुई, जो किसी राजसी विवाह से कम नहीं थी।
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यह लोककथा “तपोई कथा” कुंजबिहारी दास की पुस्तक लोकगल्प संचयन से ली गई है। यह एक सरल और मार्मिक कहानी है, जो एक छोटी लड़की तपोई के सुख-दुख और उसके परिवार के व्यवहार को दर्शाती है। यह कथा यहां से प्राप्त की है।