सातवें दिन खरगोश और हिरन की मुलाकात हुई। पर, काफी कोशिश के बाद भी फुंकनी यंत्र ने, न तो कोई चलचित्र दिखाया और न ही कोई ध्वनि निकाली। खरगोश बोला, लगता है फुंकनी यंत्र भी मौन उपवास पर है।
हिरन ने पूछा, मौन उपवास क्या होता है। मैं तो कोई उपवास नहीं रख सकता भाई। मुझे तो हर वक्त हरी घास चाहिए।
खरगोश ने कहा, मौन उपवास में बोलना मना है। आजकल बड़े महाराज भी तो जगह- जगह मौन उपवास कर रहे हैं। उनका मानना है, जो काम बोलने से नहीं हो सकते, वो मौन रखकर करो। मौन में बहुत बड़ी ताकत होती है। सियासत में कभी कभी मौन सामने वाले को भी चुप्प कर देता है। जब आप क्रिया ही नहीं करोगे तो प्रतिक्रिया भी नहीं होगी।
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तभी अचानक फुंकनी मंत्र से कई तरह की ध्वनियां निकलने लगीं। हिरन और खरगोश एक दूसरे का मुंह देखने लगा कि यह क्या हो रहा है। थोड़ी देर में फुंकनी यंत्र बोला, मैं सही हूं, मुझे कुछ नहीं हुआ। वो तो मैं भी अभ्यास कर रहा था कि मौन रखकर क्या लाभ है। मुझे तो बहुत अच्छा लगा, पर सियासत में मौन के लाभ तो बड़े महाराज को ही पता होंगे।
हिरन बोला, यह बताओ, बड़े महाराज क्या कर रहे हैं। मुझे पता चला है कि अब वो बड़बोले महाराज को छोड़कर बड़कू महाराज के पीछे पड़ गए। कभी अपने राजकाज में जिस मदिरा का उपभोग करा रहे थे, अब उसका स्वाद खराब बताने लगे हैं। कभी कहते हैं, मुझे कारागार में भेजने की तैयारी हो रही है। अब भला, कौन और क्यों उनको कारागार में भेजेगा। क्या ऐसा कह कहकर प्रजा से सहानुभूति लेना चाह रहे हैं।
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फुंकनी यंत्र बोला, तुम्हें सीधे बड़े महाराज के पास ही ले चलता हूं। उनके पास भी मेरे जैसा एक यंत्र है, जिससे वो प्रजा से संवाद करते हैं। प्रजा को अपनी प्रत्येक गतिविधि को इस यंत्र के माध्यम से पहुंचाते हैं। अब यह मत पूछना कि प्रजा के पास भी ऐसे यंत्र हैं क्या। कबीले की प्रजा बहुत आधुनिक है, उनके पास बहुत प्रकार के यंत्र हैं, परन्तु मेरा जैसा किसी के पास नहीं है।
यह कहते ही, फुंकनी यंत्र की चपटी पत्ती पर बड़े महाराज के दर्शन होते हैं। बड़े महाराज ने रुद्राक्ष की माला धारण की है, जिससे लगता है कि राजगद्दी की चाह में वो देवता की शरण में हैं। बड़े महाराज अपने सहयोगियों को यंत्र पर प्रसारित होने वाली सूचना लिखा रहे हैं।
सहयोगी ने पूछा, बड़बोले महाराज, बागी, बगावत शब्दों का भी प्रयोग करना है क्या।
बड़े महाराज बोले, उनको अभी रहने दो। अब इन शब्दों पर ध्यान दो, जैसे- देवता का आशीर्वाद, बड़कू महाराज, कारागार, पहलवान, मदिरा, कष्ट, प्रजा, चुनौती, बहस, मौन उपवास, गद्दी… समझ गए न।
सहयोगी ने कहा, जी बड़े महाराज मैं समझ गया।
बड़े महाराज बोले, तुम यह कार्य शीघ्र करो, मैं थोड़ी देर मौन उपवास कर लेता हूं।
बड़े महाराज मौन उपवास शुरू करते हैं और मन ही मन में कुछ सोचने लगते हैं।
खरगोश ने कहा, फुंकनी यंत्र इनके मन में क्या चल रहा है, तनिक बताओ।
फुंकनी यंत्र ने कहा, लो सुनो।
बड़े महाराज का मन कह रहा है, कुछ तो करना होगा। बड़बोले से भिड़ते भिड़ते मौन रखने की नौबत आ गई। सियासत में जुबान तो चलानी ही होगी। यह मौन भी ज्यादा समय नहीं चल पाएगा। बड़बोले को बोलने का लाभ मिलता है और मुझे मौन रहने का मिल जाएगा, ऐसा सोचा था।
वैसे, यहां कबीले में मेरी टक्कर का कोई है भी नहीं। बड़े कबीले वाले बड़कू महाराज से भिड़ने में लाभ ही लाभ है। उनसे भिड़ने का मतलब है अपनी शक्ति का प्रदर्शन। अपने कबीले को भी तो लगे कि बड़े महाराज बड़े दमखम वाले हैं।
वैसे, सियासत में मौन रहने के भी अपने लाभ हैं। सामने वाला बेचैन हो जाता है कुछ सुनने के लिए। जैसे बड़बोले महाराज के बोल मेरे लाभ के लिए थे, इस तरह गुणी महाराज गुट के लिए भी मेरे बोल हो सकता है लाभ वाले हों।
बोलने से ज्यादा अच्छा है लिखकर अपनी बात कहो। बोलने में जुबान फिसलने का भय रहता है, पर लिखने में ऐसा नहीं है। लिखा हुआ मिटा सकते हैं, बोला हुआ वापस नहीं ले सकते।
बड़बोले की जुबान जितना चलती, उतना ही हमारा शुभ होता, पर अब वो मौन हो गए। इसका अर्थ यह तो नहीं है कि हम भी हाथ पैर बांधकर बैठ जाएं। अपने शुभ के लिए पुरानी कहानियां दोहरा लेते हैं। कहानियां तो हमारे पास हजार हैं। इनके उन्हीं अंशों को पढ़ेंगे, जो हमारे लिए हों।
बड़े कबीले के बड़े सूरमाओं से लड़ने से कद बढ़ता है और पद भी बढ़ सकता है।
देवता के सामने गद्दी,गद्दी कहकर लाभ मिलेगा और जनता के सामने कारागार, कारागार कहने से सहानुभूति मिलेगी।
सियासत में शब्दों, वाक्यों, उनमें समाहित भिन्न-भिन्न अर्थों का महत्व होता है। मैं अभी तक यही करता आया हूं, करता रहूंगा, क्योंकि मुझे गद्दी से मोह है। इसके लिए अपने गुट में रहते हुए भी सबसे अलग दिखता हूं।
इसी बीच खरगोश बोला, बड़े महाराज का मन तो मौन नहीं है। मौन का मतलब मन और जुबान दोनों पर नियंत्रण से होता है।
फुंकनी यंत्र बोला, मन तो चलायमान होता है। सियासी लोग मन पर नियंत्रण नहीं रख सकते। उनका मन ही तो महत्वकांक्षाओं को जन्म देता है। सियासत और सियासी लोग महत्वकांक्षा के दबाव से ही तो आगे बढ़ते हैं।
बड़े महाराज की सियासत को समझकर हिरन और खरगोश भोजन-पानी का इंतजाम जुटाने में।
- यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है, इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।