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कबीले में चुनाव-17ः अब शक्तियों एवं महत्वकांक्षाओं को प्रदर्शित करती हैं पद यात्राएं

खरगोश और हिरन की यह मुलाकात कुछ अलग तरह की है। वो अब एक जगह खड़े होकर बातें नहीं कर रहे हैं, वो चलते हुए सियासत के हाल सुन और सुना रहे हैं। फुंकनी यंत्र फिलहाल मौन है, क्योंकि उसको करीब एक घंटे उपवास रखना है।

हिरन ने पूछा, खरगोश जी हम चलते हुए बातें कर रहे हैं, तुम मुझसे आकार में छोटे हो, इसलिए मुझे जमीन की ओर देखना पड़ रहा है। मेरी तो गरदन ही दर्द करने लग जाएगी।

खरगोश बोला, मुझे जो ऊपर की देखना पड़ रहा है, उसमें तो मेरी गर्दन अकड़ जाएगी। हम दोनों ही तकलीफ में हैं, पर तुम्हें कबीले की सियासत समझाने का इससे अच्छा उपाय मेरे पास नहीं है।

हिरन ने कहा, तुम कहना क्या चाहते हो। इससे क्या फायदा होने वाला है।

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खरगोश ने जवाब दिया, हमें क्या फायदा होगा, जिसको इसमें फायदा दिखता हो… वो जाने।

हिरन ने पूछा, वैसे हम कर क्या कर रहे हैं।

खरगोश ने तपाक से जवाब दिया, हम पद यात्रा कर रहे हैं।

हिरन बोला, यह क्या होता है। मैंने पहली बार इसका नाम सुना है।

खरगोश ने कहा, जंगल में वटवृक्ष को तो तुम जानते ही हो। उनकी आयु सैकड़ों साल है। वटवृक्ष से पूछते हैं, पदयात्रा क्या होती है। वो यह भी बताएंगे, पहले की पद यात्रा और आज की पद यात्रा के उद्देश्य कितने बदल गए हैं।

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हिरन बोला, क्या वो हम जैसे छोटे जीवों से बात करेंगे।

खरगोश ने कहा, जो जितना महान होता है, उतना ही विनम्र। वो वृक्ष हैं, कोई मनुष्य नहीं। वृक्ष तो विनम्रता का प्रतीक होते हैं। इंसानों के बारे में कुछ नहीं कह सकते। यहां तो इंसानों में विनम्रता और महानता का चोला पहने बहुत सारे हैं। इनमें बहुत से ऐसे हैं, जिनके पास न तो ज्ञान है, न बुद्धि है और न ही विवेक। यहां तो अहंकार के वशीभूत स्वकेंद्रित, मन, विचार और कर्म से कमजोर व्यक्ति को भी महान बना दिया जाता है। ये सभी प्रयोजन धनबल, दलबल, स्वार्थवश भी हो सकते हैं।

हिरन बोला, चलो वटवृक्ष से मिलते हैं। वैसे तुमने बताया नहीं, सियासत में पदयात्रा का मतलब क्या है। क्या इससे प्रजा को मन एवं विचारों से अपने पक्ष में किया जा सकता है।

खरगोश ने कहा, तुम्हें सब्र नहीं है दोस्त। चल तो रहे हैं वटवृक्ष के पास। वो बताएंगे। मैं तुम्हें आधा अधूरा ज्ञान नहीं दे सकता। तुम्हें तो पता होगा, आजकल फुंकनी यंत्र की तरह बहुत सारे ऐसे यंत्र हैं, जिन पर दिनरात आधाअधूरा कचरा ज्ञान फेंका जा रहा है। यहां कुछ भी, कभी भी… वाला काम चल रहा है। सियासत चमकाने वालों ने कचरा ज्ञान फेंकने के लिए लोगों को पैसों पर रखा है। उनका काम केवल प्रजा के बीच अतीत, वर्तमान एवं भविष्य को लेकर भ्रांतियों को जन्म देना है।

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बातें करते हुए दोनों वटवृक्ष के समक्ष खड़े हो जाते हैं। उनको सिर झुकाकर प्रणाम करते हैं।

खरगोश कहता है, हे महान वटवृक्ष हमें आपसे सियासत में पदयात्रा के महत्व को जानना है। हमें यह भी जानना है कि पूर्व और वर्तमान में पदयात्रा के अर्थ एवं उद्देश्यों में कितना बदलाव आ गया है।

वटवृक्ष ने कहा, मुझे अच्छा लगा कि तुम दोनों जीव विभिन्न विषयों को लेकर जागरूक हो। तुम कबीले में सियासत को जानना चाहते हो। सियासत की गतिविधियों, उसमें इस्तेमाल होने वाले शब्दों, प्रयोगों को जानने की इच्छा ने ही हमारी मुलाकात कराई है।

वैसे तो फुंकनी यंत्र के पास बहुत जानकारियां रहती हैं, पर अभी वो मौन उपवास पर है। मौन रहना अच्छी बात है। यह मन और तन की शक्ति बढ़ाता है। बेहतर निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। पर, यह तभी होता है, जब मन भी शांत हो। जब महत्वकांक्षाओं की अति में मन बेचैन रहेगा तो मौन बेमतलब हो जाता है। सियासत में बेचैनी, बेसब्री, बेअदबी तो बर्दाश्त से बाहर के शब्द होने चाहिए, पर दुर्भाग्य से यहां इनका प्रभाव है।

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तुम पदयात्रा के बारे में जानना चाहते हो, आज से लगभग 91 साल पहले महात्मा गांधी जी ने पद यात्रा निकाली थी, जिसको दांडी मार्च कहा जाता है। उनके साथ बड़ी संख्या में लोग इस पदयात्रा में शामिल हुए। उन्होंने अंग्रेज सरकार के नमक पर कर लगाने वाले कानून का विरोध किया था। उन्होंने नमक बनाकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा था। इतिहास में इस पदयात्रा का प्रमुखता से जिक्र होता है।

अन्याय एवं किसी गलत बात का विरोध करने के गांधी जी के तरीके आज भी दुनिया में अपनाए जाते हैं। उनके आंदोलन में किसी तरह की हिंसा नहीं होती थी। न तो जुबान से और न ही शरीर से।

मैंने गांधी जी के नाम पर आगे बढ़ने वालों को तो खूब देखा है, पर कोई सच में महात्मा गांधी है,ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ। सर्व कल्याण हेतु जन-जन को जोड़ने के लिए पदयात्राएं निकाली जाती थीं, जिनके माध्यम से अपनी बात कही जाती थीं, गलत का विरोध होता था, अन्याय को नहीं सहने का दृढ़ संकल्प लिया जाता था। पदयात्रा अपने संकल्प को प्रदर्शित करने का प्रभावी तरीका है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य एवं उद्देश्य होता था सबका कल्याण।

अब तुम्हारे दूसरे प्रश्न का उत्तर देता हूं। वर्तमान में पदयात्रा में निहित उद्देश्य एवं तथ्य का अभाव दिखता है। यहां पदयात्रा के केंद्र में प्रजा और उसका कल्याण नहीं दिखते, उसमें सिर्फ और सिर्फ स्वकेंद्रित महत्वकांंक्षाएं प्रदर्शित होती हैं। पदयात्राएं शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बन गई हैं। ये राज गद्दी को बचाए रखने और गद्दी को पाने का माध्यम बन गई हैं। भले ही, इनको किसी गलत का विरोध करने के तरीके के रूप में क्यों न प्रचारित किया जाता रहा हो।

इस कबीले में बहुत सारी पदयात्राएं निकलेंगी। पर, मुझे इनमें भी कोई कमी दिखाई नहीं देती। सियासत के केंद्र में राज गद्दी होनी चाहिए। महत्वकांक्षा के बिना सियासत अधूरी होती है। इसलिए सियासी पदयात्राओं के केंद्र में महत्वकांक्षा का स्थान खराब बात नहीं है।

खरगोश ने कहा, पर सियासत एवं राजकाज में प्रजा कल्याण तो मूल तत्व होना चाहिए।

वटवृक्ष ने कहा, राजकाज में प्रजा कल्याण होता है, इससे हम इनकार नहीं कर सकते। प्रजा कल्याण की अवधारणा से ही तो प्रजा को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं, सुरक्षाएं, अधिकार प्राप्त हैं।

वटवृक्ष ने पूछा, और कुछ जानना चाहते हो।

खरगोश और हिरन ने कहा, हम अपनी जिज्ञासाओं के साथ आपसे मिलते रहेंगे।

यह कहकर दोनों अपने ठिकानों की ओर दौड़ लिए।

*यह काल्पनिक कहानी है। इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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