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कबीले में चुनाव-15ः न तो यहां कोई अभिमन्यु है और न ही चक्रव्यूह तो फिर शोर क्यों

हिरन लंबी लंबी छलांगें लगाता हुआ खरगोश की तरफ आ रहा है। पहले कभी खरगोश ने हिरन को इतनी तेजी से अपने पास आता हुआ नहीं देखा था। वो जानता है कि हिरन छलांगें लगाते हैं, पर उसी समय जब उनको कहीं जाने की जल्दी हो। अभी तो हमारी मुलाकात का समय भी नहीं हुआ है और हिरन टापो टाप हो रखा है।

हिरन पास आया तो हांफ रहा था। बोला दोस्त, सियासी सेनाएं सज चुकी हैं। बड़े महाराज पर हमले हो रहे हैं, उनको बुरी तरह फंसाया जा रहा है। वो क्या सुन रहा था, मैं चक्कर, चक्कर… याद नहीं आ रहा पूरा शब्द। क्या करूं…। तुम्हें कुछ पता है, तुम ही याद करा दो।

खरगोश बोला, दोस्त तुम थोड़ा सांस ले लो। सियासत का ज्ञान लेना ठीक है, सियासत की नई-नई जानकारियां पाना सही है, पर सियासत में घुसकर इस तरह हांफना हमारा काम नहीं है। अगर, यही बात तुम यहां आराम से आकर बताते तो, हमारा क्या बिगड़ जाता। तुम हांफते हुए, दौड़ते हुए आए, तो इसमें हमारा क्या फायदा हो गया।

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हिरन बोला, बात तो तुम सही कह रहे हो। वैसे भी हम न तो प्रजा हैं और न ही इनमें से किसी को राजगद्दी तक पहुंचाने में हमारा कोई योगदान होगा। अच्छा, यह बताओ… वो चक्कर…क्या है।

खरगोश ने कहा, मैं तो केवल चक्करघिन्नी शब्द जानता हूं। तुम्हारे इस चक्कर, चक्कर से तो मुझे सही में चक्कर आने लगे हैं। मेरा छोटा सा दिमाग घूमने लगा है। फुंकनी यंत्र से पूछ लेते हैं…।

फुंकनी यंत्र तुम कहां हो, खरगोश चिल्लाया।

तभी फुंकनी यंत्र बोला, क्या है, शोर क्यों मचा रहे हो। ऐसे चिल्ला रहे हो, जैसे रणभूमि में किसी को ललकार रहे हो। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जो तुम समझ रहे हो। कहां सज गई सियासी सेनाएं… क्या तुम किसी को देखकर आए हो हिरन जी।

रही बात सियासी हमले की तो उसका प्रभाव भी तो दिखना चाहिए। क्या कोई जख्मी हो गया है। सब एकदम ठीक हैं, किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो प्रजा है, जो ऐसा समझती है, वो बेचैन हो जाएगा, वो दुखी हो जाएगा। ये जो जुबानी जंग है न, वो सबकुछ प्रजा को दिखाने के लिए है। सब प्रजा को प्रभावित करना चाहते हैं।

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वैसे सच बताऊं, यह बात तुम्हें कड़ुवी लग सकती है, जिसे तुम सियासत कहते हो, वो मेरी दृष्टि में प्रजा को आपस में बांटने की कोशिश होती है, क्योंकि बंटने के बाद प्रजा का जितना ज्यादा हिस्सा जिसके पास जाएगा, वो गद्दी को पाएगा।

देवता के समक्ष नतमस्तक होने के लिए किसी दिखावे की आवश्यकता नहीं होती। पर, ये सियासी लोग चाहते हैं कि प्रजा हमें देवता के दरबार में माथा टेकते हुए देखे। देवता के सामने जाकर सियासत करने का कोई अवसर नहीं गंवाते।

हिरन जी, जिस शब्द के चक्कर में तुम ज्यादा परेशान हो रहे हो, वो चक्करघिन्नी नहीं, बल्कि चक्रव्यूह है। चक्रव्यूह शब्द महाभारत से है।

महाभारत के केंद्र में राज सत्ता, महासंग्राम और सियासत प्रमुख रहे हैं। जब जब चक्रव्यूह का जिक्र होगा, तब तक वीर अभिमन्यु को याद किया जाएगा। योद्धा अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंसकर वीरगति को प्राप्त हो गए थे। यहां की सियासत में मुझे कोई अभिमन्यु नहीं दिखता। अभिमन्यु महान थे और निर्दोष भी।

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फुंकनी यंत्र बोला, जो बार-बार चक्रव्यूह की बात कहते हैं, वो स्वयं को अभिमन्यु की तरह महान योद्धा तथा विरोधियों को कौरवों की सेना घोषित कराना चाहते हैं। ये प्रजा की सहानुभूति लेना चाहते हैं। तुम तो जानते ही हो कि प्रजा तो बहुत भोली होती है, प्रजा तो बहुत संवेदनशील होती है, उससे किसी का दुख नहीं देखा जाता।

शायद तुम्हें नहीं पता, अक्कड़ महाराज को जब राज गद्दी से हटाया गया तो प्रजा के बीच जाकर चक्रव्यूह शब्द का प्रयोग कर रहे थे। वो भी स्वयं को अभिमन्यु बता रहे थे। पर, उन्होंने यह नहीं बताया कि उनको घेरने वाले कौरव कौन थे। क्या वो उस गुट को कौरव ठहरा रहे थे, जिसने उनको राज गद्दी पर विराजमान किया था।

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यहां बड़े महाराज भी चक्रव्यूह शब्द का प्रयोग करके स्वयं को अभिमन्यु बताते हैं। उनकी नजर में उनके विरोधी कौरवों की सेना हैं, क्योंकि कौरवों को कभी सही नहीं माना गया। कौरवों को हमेशा अन्याय, अनीति, छल, प्रपंच, षड्यंत्र की सियासत का हिस्सा माना गया है। जबकि कई सदियों बाद भी प्रजा अभिमन्यु की वीरता को हृदय से याद करती है। प्रजा में हमेशा से योद्धा अभिमन्यु के प्रति सहानुभूति रही है।

हिरन बोला, मैंने तो सुना है गुणी महाराज और उनके वजीर तक बड़े महाराज को घेर रहे हैं। घेरने का मतलब भी चक्रव्यूह से है। भले ही, यह युद्ध वाला घेरना न हो, पर सियासत वाला फंसना और फंसाना तो है।

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फुंकनी यंत्र ने कहा, कबीले में न तो महाभारत है और न ही चक्रव्यूह। कुरुक्षेत्र में चले महासंग्राम में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ थे। भगवान श्रीकृष्ण धनुर्धर अर्जुन के सारथी थे। उन्होंने कौरवों के अन्याय और अनीति के विरुद्ध शंखनाद किया था। मुझे जहां तक पता है, ईश्वर तक पहुंच बनाने के लिए मोह और माया से मुक्त होना अनिवार्य है। पर, कबीले की सियासत के केंद्र में मोह और माया ही हैं।

खरगोश और हिरन मौन होकर फुंकनी यंत्र को सुन रहे थे।

खरगोश बोला, महाभारत और कुरुक्षेत्र के बारे में कुछ और बताइए। क्या वो हमारे कबीले की सियासत से बिल्कुल अलग थे।

फुंकनी यंत्र ने कहा, महाभारत में युद्ध से पहले छल और प्रपंच खूब रचे गए। पर, कुरुक्षेत्र के रण में धर्म की ध्वजा लहराई। उस समय, धर्म की ध्वजा के माध्यम से युद्ध को अन्याय, अनीति, छल, प्रपंच से दूर रखने का आह्वान किया गया।

पर, कबीले की सियासत में रण से पहले ही धर्म की ध्वजा को फहरा भी दिया गया है और इसको अपने-अपने लाभ एवं महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए खूब इस्तेमाल भी किया जा रहा है। यहां धर्म का प्रयोग प्रजा का अपने-अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के लिए हो रहा है। अब देखना यह है कि क्या कबीले के चुनावी रण में धर्म की ध्वजा लहराती है या नहीं, क्योंकि यह पहले ही इस्तेमाल कर ली गई है।

फुंकनी यंत्र बोला, विषय थोड़ा गंभीर हो रहा है। मैं आपको लेकर चलता हूं बड़बोले महाराज के पास, वो इतने दिन बाद क्या बोले।

हिरन ने कहा, क्या बोले बड़बोले। क्या फिर से बड़े महाराज पर कुछ बोले। जल्दी बताओ।

फुंकनी यंत्र ने कहा, वो बड़े महाराज पर सियासी हमलों के विरोध में बोले।

हिरन ने पूछा, क्या वो बड़े महाराज के गुट में जाना चाहते हैं।

फुंकनी यंत्र ने जवाब दिया, अभी तक तो नहीं जा रहे, पर बाद का कुछ नहीं कह सकता। सियासत में कुछ ही लोग तो हैं, जिनके मन में क्या चल रहा है, वो क्या करने वाले हैं, क्या कहने वाले हैं, मेरी तरंगें भी पता नहीं लगा पाती।

हां, तो मैं बता रहा था, वो वजीरों और राजा से कह रहे थे बड़े महाराज पर सियासी हमले न करो। उनको जितना घेरने की कोशिश करोगे, वो उतनी ही सहानुभूति बटोरने में सफल होंगे। सियासत में जिसके पास जितनी सहानुभूति होगी, वो उतना ही राज गद्दी के पास पहुंचेगा।

हिरन बोला, बात तो पते की है। लगता है, बड़बोले महाराज के बोल वास्तव में बड़े काम के हैं।

फुंकनी यंत्र बोला, अब मेरा मन मुझे मौन उपवास पर जाने की सलाह दे रहा है। अच्छा फिर मिलता हूं।

हिरन और खरगोश अपने सवालों के जवाब पाकर खुश हैं और सियासत को समझने के लिए और अधिक उत्सुक भी। कल फिर कुछ और सियासी घटनाओं पर बात करने का वादा करके घास के मैदान में दूर तक दौड़ लगाते हैं।

*यह कहानी काल्पनिक है। इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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