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कबीले में चुनाव-5ः देवता के यहां भी सियासत कर आए अक्कड़ महाराज

पांचवें दिन की मुलाकात में खरगोश बोला, मेरे फुंकनी यंत्र ने एक और नई शक्ति प्राप्त कर ली है। यह अब जिसे चाहो, दिखा सकता है। कोई क्या कर रहा है, उसी समय दिखा देगा।

हिरन बोला, क्या अक्कड़ महाराज को भी दिखा देगा।

खरगोश ने कहा, वो क्या सबसे अलग हैं, बड़े महाराज, बड़बोले महाराज, बदलू महाराज…, जिन्हें कहो दिखा देगा। उनकी आवाज भी सुन सकते हो।

हिरन बोला, तब तो बड़ा मजा आएगा। पता चल जाएगा, ये खुद से क्या कहते हैं और कबीले को क्या बताते हैं।

खरगोश बोला, क्या तुम्हें पता है अक्कड़ महाराज ने देवता के यहां भी सियासत कर दी है।

हिरन ने कहा, सुना तो है और इसकी चर्चा भी बहुत है। पर यह सियासत कहां से हो गई। देवता के पुजारियों ने उनका विरोध किया और मत्था भी नहीं टेकने दिया।

उनका तो लगता है दिन ही खराब निकला। अपनी यह दशा तो वो सपने में भी नहीं सोच सकते। चलो बताओ, सियासत कैसे हो गई और अक्कड़ महाराज को इसका फायदा कैसे मिल जाएगा।

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खरगोश बोला, फायदा तो क्या मिलेगा, पर उनके मन को संतोष जरूर मिल गया।

हिरन ने पूछा, पहेलियां क्यों बुझा रहे हो। जिनका दिन खराब हो गए, उन्हें कैसा संतोष।

खरगोश ने कहा, अब तो फुंकनी यंत्र तुम्हें यह सब बताएगा ही नहीं, दिखाएगा भी। उनका दिल कितने सुकून में है, यह खेल रचकर।

हे फुंकनी यंत्र, दिखा इस समय अक्कड़ महाराज क्या कर रहे हैं। यह कहते ही खरगोश ने फुंकनी मंत्र को जोरों से हिलाया और फिर ऊपर उछाला।

फिर खुश होते हुए बोला, वाह… मजा आ गया। ये देखो, अक्कड़ महाराज पर पुजारियों के विरोध का कोई असर नहीं पड़ा। वो तो बहुत खुश दिख रहे हैं। कैसे मुस्कुरा रहे हैं। लो, तुम भी देखो।

यह कहकर खरगोश ने हिरन को फुंकनी यंत्र के ऊपर निकली चपटी सी पत्ती पर चलचित्र के दर्शन करा दिए।

हिरन बोला, ये तो मुस्कुरा रहे हैं। इतना विरोध होने बाद कोई कैसे मुस्कुरा सकता है। अब समझ में आया, ये देवता के दर्शन को नहीं, बल्कि सियासत करने ही गए थे, जहां सफल भी हो गए।

चलचित्र में अक्कड़ महाराज ने उसी मुद्रा को धारण किया है, जैसा कि राजा रहते हुए करते थे। वो अपने कुछ सिपहसलारों के बीच बैठे हैं। वो कह रहे हैं अब पता चलेगा खेल क्या होता है।

अब तो बड़े कबीले वाले को पता चल जाएगा, मेरी ताकत क्या है। इनकी इच्छा पर ही तो पुजारियों को देवताओं से दूर करने की कोशिश कर रहा था। पुजारियों की जगह दरबारियों को देने का प्रपंच रचा था।

सिपहसलारों और अक्कड़ महाराज में खूब हास परिहास हो रहा है। सभी बहुत खुश दिख रहे हैं, पर इस दौरान फुंकनी यंत्र से ध्वनि गायब हो जाती है।

हिरन बोला, ध्वनि नहीं आ रही है, क्या कह रहे हैं, सुनना चाहिए।

खरगोश ने जवाब दिया, इसमें केवल सियासी बातें सुनाई देती हैं।

कुछ देर में सभी सिपहसलार एक-एक करके कक्ष से बाहर चले जाते हैं।

अक्कड़ महाराज दूसरे कक्ष में जाते हैं, जहां गुरु महाराज और बड़कू महाराज के बुत खड़े हैं। ये बुत उन्होंने राजा रहते बनाए थे।

अक्कड़ महाराज उनके सामने खड़े हो जाते हैं। वो कह रहे हैं, तुम्हें पता है, मैंने तुम्हारी पूजा अर्चना क्यों बंद कर दी। पहले रोज धूप चढ़ाता था, अब यह सब नहीं, बिल्कुल भी नहीं। माला तो बिल्कुल भी नहीं पहनाऊंगा।

मेरी कुंडली में सिंहासन की स्थापना तुमने की। इसलिए सभी योग- चाहे सर्वार्थ सिद्धि के रहे हों या स्वार्थ सिद्धि के हों,  तुम ही तो साध रहे थे। मुझे इस कबीले का राजा बनाकर तुम मेरे राजा बन बैठे।

तुम मेरे हर अच्छे काम का श्रेय ले रहे थे, तो फिर विरोध कौन झेलेगा। मैं अकेले ही क्यों, कुछ तो तुम्हें भी भोगना होगा।

हां, गुरु महाराज तुमसे कह रहा हूं। दिल में पीड़ा है, कुछ तो तुम्हें सहनी होगी। तुम्हें पता है, देवता के दरबार में क्यों जा रहा था, क्योंकि देवता के दर से निकली ध्वनि दूर तक जाती है। तुम्हें सुनाई तो दे रही होगी। अभी भी नहीं सुनाई दे रही है तो सियासत के बहुत सारे मौके हैं मेरे पास।

मेरे पास, बहुत सारे सियासी धड़ाके हैं। इनमें जो भी कुछ भरा है, तुमने ही बनवाया था। मुझे तो बस इनको इस्तेमाल करना है। जब-जब जरूरत पड़ेगी, इनका जमकर इस्तेमाल करुंगा।

बड़कू महाराज, तुम भी सुन लो… अक्कड़ महाराज ने गर्दन को ऊँचा करते हुए कहा, तुम यह कैसे समझ सकते हो कि कोई तुम्हारे से सियासत नहीं कर सकता। मैं सियासत के साथ खेल भी करूंगा। सियासत मेरा धर्म है, मेरा कर्म है। मैं राजा बनने से पहले, राजा बनने के बाद और राजयोग से हटने के बाद हमेशा सियासी ही रहा।

मैं सियासत नहीं कर सकता, ऐसा विरोधियों को भ्रम है। मुझे मालूम था, मेरा विरोध होगा। मैं तो केवल उसको भांपने गया था। अब तक तुम्हें पता चल गया होगा कि आंच अभी भी है। तुम क्या, गुणीमहाराज भी तपने के लिए तैयार हो जाओ। तुमने मेरा बिगाड़ किया, मैं तुम सबका बिगाड़ कर दूंगा।

अचानक अक्कड़ महाराज के चेहरे पर मायूसी छा जाती है। वो बड़कू महाराज के बुत की ओर देखते हुए बोले, मुझे बताओ तो सही, मेरा दोष क्या था। क्या नहीं किया मैंने। प्रजा से विरत होने वाला राजा बन गया था। यह क्यों नहीं बताते, मुझे गद्दी से क्यों हटाया। प्रजा के पास इस सवाल का जवाब है, पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूं।

हिरन से अक्कड़ महाराज की व्यथा देखी नहीं जाती। वो कहने लगा, खरगोश भाई, बस करो। जिसमें इतना दर्द छिपा हो, उससे क्या चुप रहने को कहोगे।

खरगोश बोला, इनके राज में क्या हुआ, अगर तुम्हें प्रजा का दुख पता चल जाएगा, तो कहोगे, जो हुआ अच्छा हुआ। प्रजा से दूर होने वाले राजा के साथ ऐसा ही होना चाहिए। सिंहासन पर बैठते ही इनको प्रजा धुंधली दिखने लगी थी। इनके सिपहसलारों को भी प्रजा के सिवाय सबकुछ साफ-साफ दिखता था।

हिरन ने पूछा, गुणी महाराज के क्या हाल हैं। क्या वो विरोध की आंच में तप रहे हैं।

खरगोश ने कहा, अभी दिखा देते हैं। यह कहते ही वो बोले, हे फुंकनी महाराज दिखाओ, जो हम देखना चाहते हैं।

कुछ देर में ही फुंकनी की चपटी पत्ती पर गुणी महाराज और हरि महाराज वार्तालाप करते हुए दिखते हैं।

गुणी महाराज बोले, क्या करें, ये सब तो चुनाव से पहले ही थका देंगे। बड़े महाराज से निपटने का समय तो तब मिले, जब ये अपने वाले खेल करने से बाज आ जाएं। पहले बड़बोले को समझा बुझाकर शांत किया, अब ये अक्कड़ ने उछल कूद मचा दी।

देवता के दरबार में जाने की क्या जरूरत थी, वो भी तब, जब गुरु महाराज आ रहे हों। इतना भी समझ में नहीं आता। पहले सोच समझकर निर्णय नहीं लेंगे और फिर प्रजा को भड़काने निकल जाएंगे।

हरि महाराज बोले, यह प्रजा को भड़काने नहीं निकलते, प्रजा इनको देखकर भड़क जाती है। वहीं, बड़े कबीले वालों को कौन समझाए। अक्कड़ महाराज को गद्दी जाने का दुख है। जहां भी जा रहे हैं, अपना दुख गा रहे हैं।

गुणी महाराज बोले, अपना दुख गाते रहें, हमें क्यों दुखी कर रहे हैं। तुमने तो देखा था, कैसे क्रोध में थे बड़कू महाराज। सबकुछ बिगाड़ कर ही चैन लेंगे अक्कड़ और बड़बोले।

हिरन और खरगोश एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं। और फिर, दूसरे दिन किसी और सियासी घटना को जानने के लिए एक दूसरे से विदा लेते हैं। … जारी

*यह कहानी काल्पनिक है, इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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