खरगोश और हिरन की मुलाकात काफी दिन बाद हुई। खरगोश ने हिरन से पूछा, क्या हो गया दोस्त। इतने दिन बाद आए हो, मैं तो तुम्हारे बारे में पता भी नहीं कर पाया। यह फुंकनी यंत्र भी तभी से सुन्न पड़ा है। न तो बोलता है और न ही किसी बात का जवाब देता है।
हिरन बोला, मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया था। लगता है ठंड लग गई थी। कुछ खाने पीने का मन भी नहीं कर रहा था। मैं भी तुम से संपर्क नहीं कर पाया। सारा दिन धूप में बैठा रहता। मन में कोई विचार भी नहीं आ रहा था। रही बात सियासत की, इसको तो जानने की इच्छा ही नहीं होती।
खरगोश ने कहा, यह ईख का समय है, क्या तुमने ईख तो नहीं खा लीं। मैंने सुना है, ठंड में ज्यादा ईख खाने से ठंडी लग जाती है।
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हिरन बोला, तुम्हें कैसे पता, मैंने ईख खाई थी।
खरगोश ने कहा, देख लो, यह मैंने अंदाजा लगाया है। मैंने सही कहा न।
हिरन ने जवाब दिया, मैंने ज्यादा ही ईख खा लिया था। पर, तुम्हें कैसे पता चला कि मैंने ईख खाया था।
खरगोश ने कहा, मैंने तो ऐसे ही तुक्का मार दिया दोस्त। पर, देखो अंधेरे में चलाया तीर निशाने पर लग गया। ये जो मैंने किया न, वो ही यहां सियासत में भी चल रहा है। रही बात, ईख की, तो आजकल ईख पुरुष का नाम खूब चल रहा है।
हिरन बोला, कौन ईख पुरुष।
खरगोश ने जवाब दिया, अपने बड़े महाराज, उनको ईख से इतना प्यार हो गया है कि उसके बारे में न जाने क्या क्या अच्छा अच्छा बोल रहे हैं। मैं तुमसे ईख के बारे में ज्यादा बात करूंगा तो गाजर, जो कि मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगती है, बुरा मान जाएगी।
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हिरन हंसते हुए बोला, लगता है तुम सठिया गए हो, गाजर बुरा मान जाएगी…।
खरगोश ने कहा, तुम तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे बड़े महाराज ने ईख का महिमामंडन करके बहुत बड़ी भूल कर दी हो। जब ईख इंसानों की तरह व्यवहार कर सकती है तो गाजर क्यों नहीं।
हिरन ने पूछा, ईख इंसानों की तरह व्यवहार कैसे कर सकती है। कल कहोगे, घास भी इंसान जैसी हो गई। ये पेड़ भी, ये फूल भी और हां… ये झाड़ियां देख रहो हो न , वो भी। क्या मजाक करते हो। ठीक है, हम सियासत पर बात करते हैं, पर सियासत में इतना भी मजाक नहीं हो रहा है, जो तुम बताना चाहते हो।
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खरगोश बोला, यह मैं नहीं कर रहा हूं। बड़े महाराज ने जो बात कही है, उस पर तो मैं यहीं कह सकता हूं कि ईख भी इंसानों की तरह जाति, धर्म को मानने या नहीं मानने वाली हो सकती है। तो क्या यह समझना चाहिए कि ईख इंसानों जैसी होती है। ईख को भी जाति की समझ है, वो भी अपने अनुसार धर्म को जानती या मानती है। हो सकता है, वो किसी धर्म को मानने वालों को मीठी लगती हो और दूसरे धर्म को मानने वालों को खट्टी या किसी और स्वाद की।
हिरन ने कहा, तुम भी अजीब बातें करते हो, ईख से जो भी कुछ बनता है, वो मीठा होता है। ईख का रस मीठा ही होता है। वो सबके के लिए एक जैसी ही होती है। वो ईख है, उसको ईख कहा जाए, और कुछ भी नहीं। वो मुखौटा लगाकर नहीं उगती और न ही वो चेहरे देखकर अपना व्यवहार बदलती है। वो लोगों से बहुत अलग है और जीवन में मिठास घोलने के लिए ही धरती पर उगती है।
खरगोश ने कहा, हो सकता है ईख उगाने वाले लोग अलग-अलग धर्म, जाति, सियासी समूहों, क्षेत्रों में बंटे हों। यह तो पक्का होगा।
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