
कराटे में ब्लैक बेल्ट अनुभवी पत्रकार इंद्रेश कोहली से मिलिए
Senior journalist Indresh Kohli: देहरादून, 19 जून, 2025: बहुत कम लोग जानते हैं तीन दशक से पत्रकारिता कर रहे, सीनियर जर्नलिस्ट इंद्रेश कोहली कराटे में ब्लैक बेल्ट धारक हैं और 90 के दशक में कराटे ट्रेनिंग में जाना पहचाना नाम रहे हैं। अनुभवी पत्रकार कोहली बेहद शांत, सहज और खुशमिजाज हैं। आपने कई अखबारों में क्राइम और हेल्थ की बीट पर काम किया। अखबारों की डेस्क पर भी वर्षों का अनुभव रहा है।
देहरादून के त्यागी रोड निवासी कोहली वर्तमान में न्यूज पोर्टल मिशन न्याय डॉट कॉम और एक साप्ताहिक समाचार पत्र की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
रेडियो केदार के देहरादून स्थित स्टूडियो में एक वार्ता में आपने पत्रकारिता से जुड़े कुछ किस्सों को साझा किया। आपने 90 के दशक में दून अस्पताल में एक कवरेज के दौरान एक वाकये का जिक्र किया। उस दिन एक बाल रोग चिकित्सक ने आपको बताया कि एक बच्चे को रक्त की आवश्यकता है। उन्होंने आपसे पूछा, क्या उस बच्चे के लिए रक्तदान कर सकते हैं। कोहली बताते हैं, मैंने उन सीनियर डॉक्टर ढौंडियाल जी को बताया, मैंने आज तक रक्तदान नहीं किया। आप सही समझते हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं है। कुछ ही देर में उन चिकित्सक के कहे अनुसार रक्तदान किया।
Senior Journalist Indresh Kohli बताते हैं, मैं रक्तदान की इस बात को लगभग भूल चुका था। कुछ महीने बाद, मैं अपने स्कूटर से दून अस्पताल चौक से होकर जा रहा था। तभी अचानक एक विक्रम टैंपों मेरे पास आकर रुका और उसमें से एक महिला और पुरुष तेजी से उतरे और मेरे सामने खड़े होकर हाथ जोड़ने लगे। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मैं सकपका गया। मैंने उनसे पूछा, मैं आपको पहचान नहीं पा रहा हूं। आप कौन हैं। उस पुरुष ने कहा, आप हमारे लिए भगवान हैं। मैंने कहा, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। उन्होंने बताया, आपकी वजह से मेरे बच्चे का जीवन बच गया। आप उस दिन रक्त नहीं देते तो बच्चे का स्वास्थ्य बिगड़ जाता। आपने हमारे बच्चे की जान बचाई।
कोहली उस वाकये को याद करते हुए कहते हैं, मैं आपको वो किस्सा बता रहा हूं, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं। उनकी बात सुनकर मेरी आंखें नम हो गई थीं। मैंने उनसे कहा, आपका बच्चा स्वस्थ रहे। मैं भगवान नहीं, इंसान हूं। मैंने एक इंसान का फर्ज निभाया है।
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वरिष्ठ पत्रकार कोहली बताते हैं, यह नेक कार्य पत्रकारिता की वजह से हो पाया। पत्रकारिता के दौरान आप बहुत सारे लोगों की मदद कर पाते हैं। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है, जो जनहित के कार्यों में भागीदारी का अवसर बार-बार देता है।
कराटे की फील्ड में इसलिए आया
कोहली ने बताया, मैं खेलकूद में कभी अच्छा नहीं रहा। जब भी स्कूल की स्पोर्ट्स टीम बनाई जाती। मैं हर खेल में अपना नामांकन कराने के लिए तैयार रहता। मैं बेशक, एक अच्छा खिलाड़ी नहीं था, पर मैं हर खेल में भागीदारी पूरे उत्साह से करता था। मेरे बारे में बच्चे एक स्वर में कहते थे, इसको हमारी टीम में नहीं लेना। यह कोई भी खेल अच्छे नहीं खेल सकता।
उनका कहना है, हमारे एक शिक्षक उनियाल जी की एक बात ने मेरा हौसला बढ़ाया और फिर क्या था, मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन शिक्षक ने कहा, भले ही अच्छे से नहीं खेलता, पर प्रयास तो करता है। जीतना या हारना मायने नहीं रखता, सबसे ज्यादा जरूरी है, उत्साह के साथ भागीदारी करना।
वरिष्ठ पत्रकार कोहली बताते हैं, शिक्षक उनियाल जी की बात आज भी मुझे जीवन में आगे बढ़ने के लिए, कुछ नया करने के लिए प्रभावित करती है। मैंने कराटे एकेडमी में दाखिला लिया और जमकर मेहनत की। मैंने पूरे समर्पण से प्रशिक्षण लिया। कंपीटिशन दिए और ब्लैक बेल्ट हासिल की।
पत्रकारिता के शुरुआती दिन
कहते हैं, मैंने पुलिस लाइन, स्कूल-कॉलेज में प्रशिक्षण दिया। इसी दौरान, पत्रकारों से मुलाकात होती थी। कराटे प्रशिक्षण के साथ-साथ पत्रकारिता का दौर भी शुरू हो गया, जो आज भी जारी है। हां, कराटे को पीछे जरूर छोड़ दिया है, पर सीखी गईं बारीकियां आज भी जेहन में हैं।
कोहली बताते हैं, पत्रकारिता की शुरुआती दिनों में, मैं मीडिया के तौर तरीकों से ज्यादा परिचित नहीं था। एक दिन देहरादून में एक पुलिस अधिकारी से मिलने गया। मैंने उनके रूम में एंट्री करने से लेकर उनके सामने कुर्सी पर बैठने तक उसी अनुशासन को फॉलो किया, जैसा कि उनके अधीनस्थ करते हैं। वो मुझे देखते रहे। बाद में, मुझे इस बात का अहसास हुआ। फिर मैं नॉर्मल तरीके से, जैसे कि अन्य पत्रकार या सामान्य लोग अधिकारियों से मुलाकात करते हैं, उसी तरह उनसे मिलने लगा। वो अधिकारी मेरे अच्छे मित्र बन गए। उन्होंने बहुत सारी बातों से मुझे परिचित कराया।
हमारी लिखीं खबरें कूड़े के डिब्बे में फेंक देते थे…
एक बात और, हम शुरुआती वर्षों में कंप्यूटर पर खबरें टाइप नहीं करते थे। कागज पर खबरें लिखते थे, जो चेक होने के लिए सीनियर्स के पास जाती थीं। कई बार हमारे सामने सीनियर्स ने हमारी लिखी खबरों वाले पेपर गोले बनाकर कूड़ेदान में फेंके थे। वो हमसे एक ही खबर को बार-बार लिखकर लाने के लिए कहते। ऐसा नहीं कि वो हमें परेशान करने के लिए ऐसा करते थे, वो चाहते थे कि हम खबरें लिखना सीख जाएं। कई बार हमें बुरा लगता था, पर हम तो खबरें लिखना सीख रहे थे, इसलिए उसको कठिन प्रशिक्षण मानकर अखबार में काम करते रहे। उनका प्रशिक्षण और हमारी लगन ने हमें कुशल पत्रकार बनाने में सहयोग किया।
युवा पत्रकारों को सलाह
वरिष्ठ पत्रकार इंद्रेश कोहली, पत्रकारिता के वर्तमान स्वरूप को लेकर चिंतित हैं, पर इस क्षेत्र में बहुत सारी संभावनाएं भी बताते हैं। कहते हैं, हमने तो उस दौर में पत्रकारिता शुरू की, जब नहीं जानते थे कि मोबाइल फोन पत्रकारिता को बहुत आसान बना देगा। सूचनाएं, फोटोग्राफ, वीडियो एक क्लिक पर दुनिया में प्रसारित हो जाएंगे, ऐसा नहीं सोचा था। पहले तो हम पेपर पर लिखते थे। फोटोग्राफ जुटाना चुनौती होता था। पर, इस दौर में पत्रकारिता जितनी आसान हुई है, उसके साथ ही कुछ अलग तरह की चुनौतियां भी पैदा हो रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती कंटेंट की विश्वसनीयता को लेकर है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अफवाहें और फेक कंटेंट भी होते है। हमें देखना है कि सोशल मीडिया पर चल रहे कंटेंट की प्रमाणिकता किया है। क्या ये अधिकृत स्रोत से आ रहे हैं। हमें स्रोत तक जाना होगा।
वो युवा पत्रकारों को सलाह देते हैं कि फील्ड में जाएं, ग्राउंड जीरो पर रिपोर्टिंग करें। सुनी सुनाई बातों को तब तक खबर न बनाएं, जब तक कि अधिकृत स्रोत से पुष्टि न हो जाए। अफवाहों पर ध्यान न दें, बल्कि फैक्ट चेक करें। एक पत्रकार को हमेशा संवेदनशील होना चाहिए। उसमें धैर्य होना चाहिए। उनको हमेशा अपडेट रहना चाहिए। प्रतिस्पर्धा के दौर में सतर्कता के साथ सजगता बहुत जरूरी है।