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Yogacharya Rekha Raturi: देहरादून की रेखा ने योगशक्ति से दी मौत को मात, साइकिल से कीं केदारनाथ और पशुपतिनाथ मंदिर की यात्राएं

देहरादून, 20 जून, 2025। राजेश पांडेय

Yogacharya Rekha Raturi:  “मां, क्या आपने देखा, मेरे पैर की अंगुली हिल रही है। मां, मैं अपनी अंगुली को हिला पा रही हूं। क्या मां, आप देख ही नहीं पा रही हो, मेरी अंगुली हिल रही है।”

“मुझे मालूम था कि मेरी अंगुली नहीं हिल रही है, पर मैं अपने परिवार को दिलासा दिलाना चाहती थी कि मैं एक दिन स्वस्थ हो जाऊंगी। यह संघर्ष का समय है, मुझे योग की ताकत पर पूरा भरोसा है।”

रेडियो केदार के देहरादून स्टूडियो में वर्ष 2019 की उस घटना का जिक्र करते हुए देहरादून के जीएमएस रोड निवासी योगाचार्य रेखा रतूड़ी (Yogacharya Rekha Raturi) बेहद भावुक हो जाती हैं, जब उनके आधे शरीर और पैरों ने काम करना बंद कर दिया था। रेखा बताती हैं, “मैंने योग में स्नातक किया है और उन दिनों योगाभ्यास कराती थी।”

योग और दृढ़ इच्छाशक्ति का कमाल

वो बताती हैं, “एक दिन वास्तव में, मैं अपने पैर की एक अंगुली को हिला पा रही थी। मेरे शरीर में ताकत लौट रही थी।”

“मैं पूरा दिन ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी रहती थी। मैंने दो-दो घंटे प्रतिदिन नाड़ी शोधन प्राणायाम करना शुरू किया। यह नाक के छिद्रों को बारी-बारी से बंद करके सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया है। प्राणायाम ने सकारात्मक प्रभाव दिखाया और दवाइयां अपना काम कर रही थीं।”

डेंगू के बाद की पीड़ा और परिवार का संबल

रेखा उस घटना का जिक्र करती हैं कि डेंगू के बाद, वो गंभीर रूप से अस्वस्थ हुईं। परिवार ने कई अस्पतालों में दिखाया। बाद में, देहरादून के एक अस्पताल ने उनको भर्ती किया। उन्होंने छह महीने एक भयानक पीड़ा से होकर गुजारे। माता-पिता, भाइयों सहित पूरे परिवार ने देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी। मां, पिताजी में से कोई न कोई मेरे पास बैठे रहते।

सकारात्मकता की ताकत से जीती जंग

बताती हैं, “संघर्ष में आपकी सबसे बड़ी ताकत होती है सकारात्मकता। कई बार घर पर आने वाले लोग, जिनमें से अधिकतर यह कहते थे कि अब रेखा का क्या होगा। उनकी बातें मुझे चुभती थीं। कुछ लोग ऐसे भी थे, जो कहते थे, ‘कोई बात नहीं, यह स्वस्थ हो जाएगी।’ मैं सोचती थी कि क्या पूरा जीवन ऐसे ही बिताना पड़ेगा। पर, ठीक उसी वक्त एक दूसरा विचार आता था, ‘नहीं, मैं एक दिन फिर से अपनी योगा क्लासेज चलाऊंगी। मैं साइकिल से लंबी दूरियां तय करूंगी। मुझे जीना है, जिंदगी को आगे बढ़ाना है।’ मैं खुद से कहती, ‘रेखा, हिम्मत से काम ले, तू तो बहुत साहसी है, यह समय भी निकल जाएगा।'”

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अस्पतालों की जद्दोजहद

वो बताती हैं, “मैंने इसी हाल में खुश रहना सीख लिया। पर, मुझे उस समय बड़ा दुख होता था, जब परिवार के लोग मुझे अस्पताल ले जाते थे। पांच-छह लोग उठाकर मुझे गाड़ी तक पहुंचाते और अस्पताल में स्ट्रेचर पर लेटाकर मुझे मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जाता। हर दस से 15 दिन में मेरे मेडिकल टेस्ट होते थे।”

प्रेरणादायक वीडियो से मिली पॉजिटिविटी

योगाचार्य रेखा (Yogacharya Rekha Raturi) ने रेडियो केदार को बताया, “शुरुआती एक-दो माह तो मैं फोन से दूर रही। पर, फिर मैंने मोटिवेशनल वीडियो देखने शुरू किए। मेरे कुछ स्टूडेंट्स मुझे ये वीडियो भेजते थे। मैंने देखा कि एक लड़की गूंजी तक साइकिल से पहुंच गई। मैं पहले से कहीं अधिक सकारात्मक हो गई और सच मानिए, एक दिन मैं अपने पैरों की सभी अंगुलियां हिला पा रही थी। मैं परिवार की मदद से बैठने में सक्षम हो गई थी।”

” समय के साथ स्वस्थ हो रही थी, मैं व्हीलचेयर पर आ गई। फिर मैं वॉकर के सहारे चलने लगी और फिर एक स्टिक का सहारा ही काफी था।”

जिंदगी को हर पल जीना है मुझे

रेखा हंसते हुए कहती हैं, “मैं आज भी यही सोचकर जीती हूं, हो सकता है, कल जिंदगी हो या न हो। खुश होकर जियो, बिना किसी तनाव के जियो, बिना किसी चिंता के जियो।” मैं उस घटना के बाद से निडर हो गई।

साइकिल पर वापसी और पापा का साथ

बताती हैं, “मैंने थोड़ा-थोड़ा चलना शुरू किया तो शाम होते ही अपनी साइकिल लेकर घर से बाहर निकल जाती और फिर लंबा चक्कर लगाकर लौटती। मेरे पापा ने मुझे बहुत सपोर्ट किया, वो मुझ से सिर्फ इतना कहते थे, ‘रेखा, थोड़ा संभलकर साइकिल चलाना।'”

हंसते हुए बताती हैं, “कई बार तो मैं साइकिल लेकर गिर जाती थी। वहीं एक जगह पड़ी रहती थी, क्योंकि एक पैर बहुत अच्छी तरह काम नहीं कर रहा था। मुझे उठने में मदद की जरूरत थी। साइकिल चलाते वक्त ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी, पर कहीं गिर जाऊं तो खुद से उठ नहीं पाती थी। लोग सोचते थे कि शायद कोई शराब पीकर सड़क पर गिरा है। एक बार, मैं साइकिल लेकर गिर गई। मुझसे उठा ही नहीं जा रहा था। मैंने आसपास से होकर जाने वाले लोगों को आवाज लगाई। एक व्यक्ति मेरे पास आया तो कहने लगा, ‘मुझे लगा कोई शराब पीकर गिरा है।’ उसने मुझे उठने में मदद की और फिर साइकिल लेकर मैं घर पहुंच सकी।”

देहरादून से केदारनाथ धाम तक की रोमांचक साइकिल यात्रा (2022)

कहती हैं, “मुझे अपनी साइकिल से बहुत प्यार है। बहुत पुरानी साइकिल है, मात्र 12 हजार रुपये में खरीदी थी। इसी साइकिल से करीब तीन साल पहले वर्ष 2022 में, मैं अक्तूबर के महीने में देहरादून से केदारनाथ धाम तक चली गई। केदारनाथ धाम तक की साइकिल यात्रा बेहद रोमांचक थी। मैं अपने ममेरे भाई अरविंद के साथ इस यात्रा पर गई। अरविंद ने मुझे हमेशा सहयोग किया। मां-पिताजी ने मना किया था कि इतनी दूर साइकिल से मत जाओ। पर, मैंने कहा, ‘अरविंद मेरे साथ है। साइकिल नहीं चला पाई तो यहीं से वापस लौट आऊंगी।’ मैंने घर में सभी से कह दिया था कि किसी को मत बताना कि मैं साइकिल से लेकर केदारनाथ धाम गई हूं।”

अनियोजित थी साइकिल यात्रा, पर अनुभव शानदार हैं

बताती हैं, “हमने इस यात्रा को प्लान नहीं किया था, कि पहले दिन कहां तक जाएंगे, कहां रुकेंगे, कहां खाना खाएंगे। बस दिन में चल दिए। रास्ते में कुछ जरूरी सामान खरीदा और दोनों बहन-भाई साइकिल लेकर आगे बढ़ गए। रिस्पना तक आते आते ही मुझे थकान होने लगी। अब मुझे यह सोचकर हंसी आती है कि कहां रिस्पना और कहां केदारनाथ धाम। साइकिल यात्रा शुरू भी नहीं हुई कि यहीं कुछ किलोमीटर पर ही समाप्त होने वाली है। पर, मेरे भाई अरविंद ने मुझे साहस बंधाया और हम डोईवाला से आगे एयरपोर्ट के पास तक पहुंच गए। अरविंद भी साइकिल से पहली बार इतनी लंबी यात्रा कर रहा था। वो मुझसे आगे था और मैं एयरपोर्ट से पहले ही थक कर सड़क किनारे पैराफिट पर लेट गई।”

श्रीकेदारनाथ धाम में अपनी साइकिल के साथ योगाचार्य रेखा रतूड़ी। फाइल फोटो साभार- रेखा रतूड़ी

बाधाओं के बाद भी मंजिल तक का सफर

“अरविंद मुझे तलाशता हुआ काफी पीछे आया। उस पर बड़ी जिम्मेदारी थी। पर, वो मुझसे ज्यादा हौसले वाला है। किसी तरह हम ऋषिकेश पहुंच गए। हमने कोई प्लान ही नहीं किया था कि कहां रुकना है। हम रात तक ब्यासी पहुंच गए। रास्ते से अपने जानने वालों को फोन करते, ‘कहीं कोई रुकने की व्यवस्था हो जाएगी।’ आज सोचकर हम खुद पर हंसते हैं कि वो यात्रा तो ऐसे थी, जैसे हम कोई मजाक कर रहे थे। पर, ईश्वर ने हमेशा हमारा साथ दिया। कहीं वन विभाग के गेस्ट हाउस में रुके तो कहीं ढाबे में। हम रास्ते में खाना नहीं खाते थे। हमारे पास ओआरएस के पैकेट थे। रास्ते में चाय के साथ मैगी खाते हुए आगे बढ़ रहे थे। हमने अपनी जान-पहचान के जिन व्यक्तियों से मदद मांगी, उन्होंने रास्ते में हमारे रुकने की व्यवस्था की। आखिरकार हम पहुंच गए गौरीकुंड और वहां से फिर एक साइकिल लेकर आगे बढ़े। अरविंद ने साइकिल को गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ धाम तक पहुंचाया। वहां जो भी कोई हमें साइकिल के साथ देखता, हमें देखता ही रह जाता। कई यात्रियों ने वहां हमारी साइकिल घुमाई।”

साइकिल यात्रा के दौरान योगाचार्य रेखा रतूड़ी और भाई अरविंद। फाइल फोटो साभार- रेखा रतूड़ी

वापसी की बारिश भरी यात्रा और यादगार अनुभव

दूसरे दिन हम वापस आने लगे, बहुत तेज बारिश थी। हम गौरीकुंड से सोनप्रयाग और फिर शाम तक श्रीनगर पहुंच गए। हमने यह यात्रा साढ़े पांच दिन में पूरी की और मात्र साढ़े छह हजार रुपये खर्च हुए। “यह यात्रा शानदार थी। यह कभी भी नहीं भूलने वाली यात्रा थी।”

पशुपतिनाथ की यात्रा: नई चुनौती और साइकिल हादसा

“हम दोनों बहन-भाई ने यह निर्णय लिया कि हर साल ऐसी ही कोई यात्रा साइकिल से करेंगे। अगले साल, हमने पशुपतिनाथ जी के मंदिर जाने का प्लान किया। अरविंद को ही यह यात्रा प्लान करनी थी। वहीं के एक युवक को हम जानते थे। हमने उसे तैयार किया। पहले तो वह कहने लगा, ‘इतनी दूर साइकिल से जाओगे, तुम्हें क्या हो गया है?’ पर, हमारे काफी मनाने के बाद, वो मान गया। हम निकल पड़े इतनी लंबी यात्रा पर, जिसका हमें कोई रास्ता नहीं पता था। हमें यह मालूम था कि नेपाल में इसका घर है, वहीं रुकेंगे। यात्रा में कहां रुकना है, यह हमारी मदद करेगा।”

नेपाल स्थित श्री पशुपतिनाथ मंदिर के सामने अपनी साइकिल के साथ योगाचार्य रेखा रतूड़ी। फाइल फोटो साभार- रेखा रतूड़ी

नेपाल यात्रा का रोमांच, जब मिला जीवनदान

रेखा बताती हैं, “यह यात्रा बहुत रोमांचक थी। लगभग 1200 किमी. की यात्रा। बनबसा से नेपाल बॉर्डर में प्रवेश करना था। बॉर्डर पार करते समय बहुत गहराई में बह रही शारदा नदी के पुल के पास एक पटरी पर साइकिल स्किट हो गई। मैं तेजी से गिरी। अच्छा हुआ नदी में नहीं गिरी। मेरा कान फट गया, पर शुक्र है सिर बच गया… मेरे प्राण बच गए। खून निकलने लगा। एक हाथ सूजन से नीला हो गया। उस समय तो खास दर्द नहीं हुआ। मैंने अरविंद से कहा, ‘कुछ नहीं हुआ…चलो चलते हैं।’ हम नेपाल में प्रवेश कर गए। कुछ दूरी चलकर हम उस युवक के घर पहुंचे, जहां मरहम पट्टी की। दूसरे दिन हम उसी के घर रुके रहे। तीसरे दिन फिर शुरू हुई हमारी साइकिल यात्रा….। वहां पहुंचने में पूरे 12 दिन लगे।”

बताती हैं, हमारी हालत खराब हो गई थी, पर हमारी हिम्मत नहीं जवाब नहीं दिया था। हम पशुपतिनाथ मंदिर (काठमांडू) से बस से बनबसा आए। बनबसा से साइकिल से वापसी की।

योग का जीवन दर्शन: धैर्य, निर्णय और बेहतर स्वास्थ्य

रेखा कहती हैं, “योग आपको पॉजिटिविटी से भर देता है। वो आपको धैर्यवान बनाता है। समय पर सही निर्णय लेने में सहयोगी होता है योग। योग सिर्फ आसन नहीं है, यह शरीर को ही नहीं बल्कि मन और कर्म से भी स्वस्थ रखने में मदद करता है।”

सेवा का संकल्प, दूसरों को प्रेरित करना

रेखा प्रतिदिन सुबह साढ़े चार बजे उठती हैं। योग प्रशिक्षण के लिए चंद्रबनी स्थित सेंटर तक साइकिल से जाती हैं। वहां से लौटकर ऑनलाइन क्लास करती हैं। उनसे ऑनलाइन प्रशिक्षण पाने वालों में विदेश के स्टूडेंट्स हैं। योगाभ्यास के साथ, रेखा लोगों को अवसाद, निराशा से उबरने में भी मदद करती हैं। पैरालाइज अटैक की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए उनकी क्लासेज निशुल्क हैं।

मुंडन कराकर महसूस किया अपनी स्टूडेंट का दुख

एक वाकये का जिक्र करते हुए रेखा बताती हैं, “मेरी एक स्टूडेंट को अस्वस्थ होने पर मुंडन कराना पड़ा। मैं उनसे लगातार बात करती थी। एक दिन उन्होंने बताया, ‘मुझे लोगों की बहुत सारी बातें सुननी पड़ती हैं। लोग कई तरह की नकारात्मक बातें करते हैं।’ रेखा ने उस स्टूडेंट से कहा, ‘आप उनकी बातों पर ध्यान मत दो। खुद को सकारात्मक बनाओ।’ उस स्टूडेंट ने रेखा को जवाब दिया, ‘आप जो कह रही हैं, उसको करना मेरे लिए मुश्किल है। जब स्वयं पर गुजरती है तो पता चलता है, कहना आसान होता है।'”

रेखा बताती हैं, “मुझे उस स्टूडेंट की बात लग गई। मैंने उसकी परेशानी को महसूस करने के लिए अपना मुंडन करा लिया। एक लड़की के लिए बाल मुंडवाना अच्छा नहीं माना जाता। समाज में तरह-तरह की बातें होती हैं। मैंने मुंडन कराया और सोशल मीडिया पर अपना फोटो पोस्ट कर दिया। अब तो मुझे कई तरह के कमेंट का सामना करना पड़ा। लोग मेरे घर आने लगे, मेरी मां से पूछने लगे, ‘क्या रेखा को कोई बीमारी है? वो सही तो है न?’ इस दौरान, मैंने उस स्टूडेंट की पीड़ा को महसूस किया।”

Rajesh Pandey

newslive24x7.com टीम के सदस्य राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून के निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। जीवन का मंत्र- बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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