फुंकनी यंत्र को क्या हो गया। न तो कुछ बोल रहा है और न ही किसी से बात कर रहा है। ऐसा भी क्या मौन रखना सीख गया कि आवाज भी नहीं निकलती।
खरगोश और हिरन उसको लेकर चिंता में हैं। अब तो सियासत को जानने के लिए वटवृक्ष का ही सहारा है। वटवृक्ष के पास जाकर उनसे सवाल-जवाब करने में हिरन और खरगोश को काफी संकोच हो रहा है। पर, उनको सियासत को जानने का ऐसा चस्का लग गया है कि वो एक दिन घास चरना छोड़ सकते हैं, पर सियासी ज्ञान को नहीं।
वटवृक्ष ने खरगोश से कहा, क्या पूछना चाहते हो। हवा से संपर्क करके पूरी कहानी सुना सकता हूं सियासत की।
हिरन ने पूछा, बड़े महाराज और अक्कड़ महाराज के बीच क्या पक रहा है। क्या बड़बोले महाराज का मन फिर से बेचैन हो गया है। आखिर बड़े महाराज चाहते क्या हैं।
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वटवृक्ष बोला, सियासत की दशा व दिशा को समझना हो तो वहां होने वाली क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं पर निगाह रखनी होती है। पर, जब कोई क्रिया के बिना ही प्रतिक्रिया का सा आभास कराने लगे तो समझ लो कि उसके पास सियासत करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है।
विचार, क्रिया या प्रतिक्रिया, व्यक्ति के मन में चल रही उमड़ घुमड़ से बाहर निकलते हैं। जब मन अशांत होता है तो विचारों का प्रवाह भी धूल उड़ाती हवा सा हो जाता है। पर, शांतभाव में यही हवा सुकून देती है। मन क्यों अशांत है, इसकी वजह जानकर तुम्हें हैरानी होगी।
कबीले में चुनाव पास में ही है, पर बड़े महाराज के पास, विरोधियों को टक्कर देने के लिए मुद्दा नहीं है। मुद्दा इसलिए भी नहीं है, क्योंकि जिन मुद्दों को लेकर प्रजा को रिझाना है, उन पर कार्य नहीं करने के स्वयं भी दोषी हैं। इसलिए तो देवता के दरबार में माथा टेकते समय वादा करते हैं कि अपनी कार्यों में सुधार करेंगे। उन्होंने जब अवसर मिला था, तब मुद्दों पर काम नहीं किया, अब उन पर कैसे बात करें।
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गुणी महाराज का गुट पहले ही सतर्क है और बड़े महाराज के कुछ बोलने से पहले ही समझ जा रहा है कि आगे क्या होगा। उनका तंत्र मुद्दा निपटाने में जुट जाता है।
बड़े महाराज कबीले में पदयात्रा निकालते हैं, जयकारे लगवाते हैं, माहौल बनाते हैं। प्रतिक्रिया में गुणी महाराज को भी चुनावी माहौल बनाने के लिए अपने जयकारे लगवाने पड़ते हैं।
दूसरी बात, जब मुद्दों पर बात नहीं कर सकते, तो क्या करेंगे। विरोधियों को हराए बिना गद्दी तक नहीं पहुंच पाएंगे, इसलिए क्यों न कुछ ऐसा किया जाए, जो चर्चा में बना रहे। चर्चा में रहने के लिए विरोधी गुट के उन लोगों को साधा जाए, जो नाराज दिख रहे हैं या होने वाले हैं या फिर मन में गुस्सा भरकर बैठे हैं।
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शोर मचाना, हंगामा करना, चक्रव्यूह जैसा कुछ रचना, वो सियासी विधाएं हैं, जिनका उपयोग अक्सर मुद्दाविहीन सियासत में किया जाता है।
मेरा मतलब है, जब कुछ न मिले तो सूखी मिर्चों को ही आग के हवाले करके जोरों का धस्का लगाया जाए। पर, इस धस्के का असर विरोधियों पर हो या न हो, अपने गुट के लोगों पर ज्यादा करेगा। यह ऐसा असर डालेगा कि वर्षों से नींद ले रहे पुराने विरोधी भी मुखर हो जाएंगे।
अक्कड़ महाराज और बड़े महाराज की मेल मुलाकात का भी यही मतलब है। हवा इस बारे में आपको कुछ और खास बताएगी।
हवा ने कहा, अक्कड़ महाराज से देवता के पुजारी नाराज हैं। उन्होंने उनको देवता के दर्शन नहीं करने दिए। अक्कड़ महाराज देवता के दर्शन करने उस समय क्यों गए, जब दूसरे दिन ही गुरु महाराज को वहां आना था। क्या वो देवता के पुजारियों को पहले से भी ज्यादा नाराज करने गए थे, ऐसा ही समझा जा रहा है।
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वैसे तो, अक्कड़ महाराज से उनके गुट के बड़े लोग भी नाराज हैं। यदि नाराज नहीं होते तो उनको राज गद्दी से क्यों हटाया गया। अक्कड़ महाराज इन दिनों अपने चुनावी क्षेत्र में उस प्रजा से मुलाकात करने जा रहे हैं, जिसको राज गद्दी पर पहुंचते ही भुलाने की तोहमत उन पर मढ़ी जाती है।
जब वो राजगद्दी पर थे, तब उन्होंने जिनको अपना प्रतिनिधि बनाया था, वो अब उनके राजगद्दी से हटते ही सीधा प्रजा का प्रतिनिधि बनने की खूब कोशिश कर रहे हैं। अक्कड़ महाराज के बारे में यह कहा जा रहा है कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे।
अक्कड़ महाराज चुनाव नहीं लड़ेंगे यह बात प्रजा के गले नहीं उतर रही। जब चुनाव नहीं लड़ेंगे तो क्षेत्र का भ्रमण क्यों कर रहे हैं। शायद, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि राज गद्दी से हटने के बाद उनका प्रजा के प्रति स्नेह उमड़ रहा है, क्योंकि वो बहुत समय तक प्रजा से दूर रहे थे।
अक्कड़ महाराज अपने गुट से नाराज हैं और उनके गुट वाले उनसे नाराज है, को बड़े महाराज ने अपने पक्ष में करने की ठान ली। बड़े महाराज को अपने गुट के नाराज लोग नहीं दिख रहे, पर विरोधी गुट के नाराज नेताओं पर उनकी पूरी नजर रहती है।
उन्होंने विरोधी गुट के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े नेताओं की सूची तैयार कर रखी है। वो उनसे मुलाकात कर रहे हैं और फिर अपने फुंकनी यंत्र से इस बात चटखारों के साथ पेश करते हैं।
खरगोश ने पूछा, ऐसा करके उनको क्या लाभ होगा।
हवा ने कहा, सियासत में वैसे तो हर कदम लाभ की दृष्टि से ही उठाया जाता है, पर बड़े महाराज सामने वाले को असहज करने के लिए ऐसा करते हैं। दूसरे को असहज करके वो स्वकेंद्रित लाभ प्राप्त करते हैं। उनके मन को ऐसा करना अच्छा लगता है, भले ही उनके गुट वाले भी असहज हो जाएं।
अब बताता हूं, उन्होंने ऐसा क्यों किया। इसकी वजह यह है कि वो गुणी महाराज वाले गुट को संदेश देना चाहते हैं कि आपके यहां सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। आप अपने गुट को नहीं संभाल पा रहे हैं। आपके यहां, जो भी नाराज हैं, उनकी मुझसे और मेरी उनके साथ सहानुभूति है। आपसे नाराज लोग भावुक होकर मेरे साथ खड़े हैं।
यहां आपको बता दूं कि बड़े महाराज सियासत के माहौल को समझते हैं। वो माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए तरह-तरह के खेल खेलते हैं। वो ज्यादा से ज्यादा चर्चा में रहना चाहते हैं, क्योंकि चर्चा तो प्रचार का माध्यम है। चुनाव में इससे अच्छा प्रचार और क्या हो सकता है। अब तुम दोनों स्वयं को ही देख लो, बड़े महाराज और अक्कड़ महाराज की मेल मुलाकात पर बात कर रहे हो।
हां, तो अब बड़े महाराज के गुट में प्रतिक्रिया आने लगी हैं। उनके गुट वाले कह रहे हैं, जिन लोगों का विरोध करते करते हमारी सियासत मजबूत होने लगी थी, उनसे ही बड़े महाराज बड़े प्रसन्न होकर मेल मुलाकात कर रहे हैं। प्रजा इस सवाल को उठाएगी तो क्या जवाब देंगे।
हवा ने खरगोश औऱ हिरन से कहा, मुझे जाना है, सियासत और सियासी लोगों के बीच। क्या पता कब आंधी बनना पड़े और कब शांत होकर बहना पड़े।
इस पर खरगोश और हिरन फिर मिलने की बात कहकर अपने ठिकानों की ओर दौड़ लिए।
- यह काल्पनिक कहानी है, इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।