खरगोश की तबीयत थोड़ी नासाज है। वो बार-बार उल्टी कर रहा है। बहुत परेशान और बेचैन लग रहा है।
हिरन ने पूछा, दोस्त क्या, कुछ उल्टा सीधा खा लिया।
खरगोश बोला, मुझे नहीं पता था। वो फल दिखने में अच्छा लग रहा था, मैंने सोचा स्वाद में भी बढ़िया होगा, इसलिए चख लिया। खाने में थोड़ा कड़वा था। जो कुछ मुंह में था, वो तो बाहर उगल दिया, पर जो पेट में चला गया उसका क्या। तब से परेशान हूं, समझ में नहीं आ रहा क्या करूं।
हिरन बोला, दोस्त जरूरी नहीं जो फल दिखने में सुंदर लगे, वो खाने में भी अच्छा हो। तुम तो समझदार हो, फिर भी ऐसी हरकत। सोच समझ कर खाया पीया करो। तुम एक काम करो।
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-1ः सत्ता, सियासत और बगावत
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-2ः भट्टी पर खाली बर्तन चढ़ाकर छोंक लगा रहे बड़े महाराज
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-3ः बड़बोले महाराज ने बगावत नहीं, सियासत की है
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-4ः बड़े महाराज की भट्टी पर पानी फेंक गए बड़कू महाराज
खरगोश ने पूछा, क्या करना जल्दी से बताओ। मेरा तो दम ही निकल रहा है। आह! क्या करूं। हे देवता जी, अब तो तुम्हारा ही आसरा है।
हिरन ने कहा, कुछ मीठा खा लो, तुम्हारे पेट में जो भी कड़वा है, उसका असर कुछ कम हो जाएगा। ऐसा लगा रहता है, उल्टी होने से पेट में मौजूद जो भी विकार हैं, बाहर निकल जाएंगे। तुम्हें केवल एक काम करना है, खूब पानी पियो। हो सके तो कुछ खट्टे मीठे फल खा लो।
खरगोश को हिरन की सलाह पसंद आ गई और उसने आसपास मौजूद खट्टे मीठे फल खाए और खूब पानी पीया। करीब एक घंटा भी नहीं लगा, जीभ से लेकर पेट तक घुला कड़वापन खत्म हो गया।
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-5ः देवता के यहां भी सियासत कर आए अक्कड़ महाराज
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-6: गुणी महाराज के सियासी गुण दिखने लगे
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-7: मौन उपवास में भी जोर- जोर से बोल रहा है बड़े महाराज का मन
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव -8: सियासत में सब दिखावा, दिखावे से प्रभावित करने के प्रयास
खरगोश बोला, हिरन भाई दोस्त तो दोस्त होता है, तुमने दोस्ती वाली सलाह दी। मैं एक दम फिट हो गया। सारा कड़वापन खत्म हो गया, यहां तक कि मन में घुला भी।
हिरन ने पूछा, मन में कड़वापन, क्या बात करते हो। तुम्हारे मन में कड़वापन, मैं नहीं मान सकता। चलो मान लिया कि हम सियासत की बातें करते-करते सियासी हो रहे हैं, पर हम मन में कड़वापन नहीं रखते। हमारा मन तो साफ रहता है। वहां किसी की हिम्मत नहीं है, कुछ उल्टा सीधा प्रयोजन साध सके।
खरगोश बोला, बात तुम्हारी सही है, पर मैं जो सुनकर आया हूं, वो तुम्हें बताता हूं। ध्यान से सुनो…।
लोग कह रहे थे कि कबीले के चुनाव में दो बातें बड़ी खास हो रही हैं- एक तो, सियासत करने वाले कुछ लोग जुबान को नीम के घोल में डुबोकर चला रहे हैं। यह घोल इतना कड़वा हो जाता है कि खुद उनकी जुबान लड़खड़ा रही है। उनको पता ही नहीं चलता कि इस कड़वेपन से प्रजा असहज हो रही है।
दूसरे वो लोग हैं, जो चाहते हैं कि सामने वाला इतना कड़वा हो जाए कि प्रजा को असहज कर दे। यहां दोनों तरफ से प्रजा को असहज किया जा रहा है। ये वो प्रजा है, जिसके लिए सियासत में बड़े बड़े गुटों को छोटे-छोटे खेमों में बांटा जा रहा है।
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव -9: सवाल पर सवाल की सियासत
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-10ः बड़े महाराज की दो कदम आगे, एक कदम पीछे की सियासत
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-11: पहाड़ में राज दरबार के सियासी वादे का सच क्या है
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-12ः खुद के लिए मांगी मन्नतों को भूल रहे बड़े महाराज
मेरा प्रश्न है कि, जिस प्रजा के लिए तुम यह सबकुछ कर रहे हो, उसी को दुखी क्यों करते हो।
हिरन ने कहा, फुंकनी यंत्र बताएगा, उसको आवाज लगाओ।
खरगोश बोला, फुंकनी यंत्र तुम मुझे सुन रहे हो, क्या तुम मुझे सुन रहे हो।
कोई जवाब नहीं मिलने पर खरगोश बोला, लगता है यह मौन उपवास पर चला गया। यह भी हो सकता है, मेरे लगातार उल्टियां करने से आसपास बहुत कड़वा होगा और यह छोटा सा यंत्र गश खा गया। यह कहते ही खरगोश की हंसी छूट गई।
हिरन ने कहा, यह भी क्या करे। सियासत करने वाले बार-बार रंग बदलेंगे तो इसको चक्कर नहीं आएंगे तो क्या होगा। यहां क्या कहते हैं, उसको हां… याद आया, गिरगिट के पास भी इतने रंग नहीं हैं, जितने सियासी मुखौटों के बदलते हैं। ऐसा करते हैं वटवृक्ष के पास चलते हैं।
दोनों वट वृक्ष को प्रणाम करके उनके सामने बैठ जाते हैं।
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-13: बड़े महाराज ने इतना आशीर्वाद बांट दिया कि गुट ही बंटने लगा
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-14ः धुआं उगल रही है गीले कोयले से गरमाई सियासत
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-15ः न तो यहां कोई अभिमन्यु है और न ही चक्रव्यूह तो फिर शोर क्यों
यह भी पढ़ें- कबीले में चुनाव-16: प्रतिशोध की सियासत वाले अग्नि परीक्षा के पात्र नहीं हो सकते
वटवृक्ष शांत हवाओं से बात रहे हैं और उनसे पूछ रहे हैं कि जंगल में सबकुछ ठीक ठाक चल रहा है न। हवाएं कह रही हैं, अभी तक तो सबकुछ ठीक है।
पर, बड़बोले महाराज के बोल प्रजा पर तोहमत गढ़ रहे हैं। वो तो कह रहे हैं प्रजा को अपनी तरक्की पसंद नहीं है। प्रजा अपना ख्याल रखने वालों को पसंद नहीं करती। कबीले के चुनाव के केंद्र में रहकर जिसको निर्णय सुनाना है, उसके बारे में यह बातें हम हवाओं को भी पसंद नहीं आईं।
वटवृक्ष ने खरगोश और हिरन से पूछा, क्या जानना चाहते हो। क्या तुमने हवा की बातें सुनी हैं।
खरगोश बोला, हम भी यही जानने आए थे। क्या प्रजा के पास जाकर मीठी मीठी बातें, अच्छे अच्छे वादे करने से पहले कड़वा नीम चबाना चाहिए।
कबीले में चुनाव-17ः अब शक्तियों एवं महत्वकांक्षाओं को प्रदर्शित करती हैं पद यात्राएं