
Dehradun Free Library: सुमित प्रजापति ने बनाई 60 हजार किताबों की लाइब्रेरी, निशुल्क वितरण और पढ़ने की सुविधा
किराये का कमरा नहीं ले पाया युवक, लाइब्रेरी को बनाया घर, कंपीटिशन की तैयारी करके सरकारी नौकरी हासिल की
Dehradun Free Library
देहरादून, 12 जुलाई, 2025। राजेश पांडेय
Dehradun Free Library: “एक युवक शाम से पूरी रात लाइब्रेरी में ही रहता था। हमने सीसीटीवी में देखा कि वो रात को लगभग दो बजे तक पढ़ाई करता और वहीं सो जाता था। सुबह लाइब्रेरी के टॉयलेट- बाथरूम इस्तेमाल करता और फिर दिनभर के लिए चला जाता था। शाम को वापस लाइब्रेरी में आता और फिर सुबह ही वापस जाता। हमने कई दिन तक उस युवक को नोटिस किया कि वह पूरी रात यहीं लाइब्रेरी में बिताता है।”
“जब हमने उससे पूछा कि रात को तुम अपने घर क्यों नहीं जाते। उसने बताया कि देहरादून में मेरे पास कोई घर नहीं है और न ही मेरे पास इतने पैसे हैं कि कोई कमरा किराये पर ले पाऊँ। मुझे गांव में परिवार के लिए भी पैसे भेजने होते हैं। दिनभर किसी शोरूम में सिक्योरिटी गार्ड की सेवाएं देता हूं और कंपीटिशन की तैयारी कर रहा हूं। दिनभर ड्यूटी करके शाम को लाइब्रेरी में आ जाता हूं। मुझे यहां कंपीटिशन की तैयारी करने के लिए किताबें मिल जाती हैं और रात को रुकने का ठिकाना भी।”
जगतबंधु सेवा ट्रस्ट के संस्थापक सुमित प्रजापति रेडियो केदार से वार्ता में यह किस्सा साझा करते हुए बताते हैं, हमने युवक की लगन और मेहनत पर खुशी व्यक्त करते हुए उसको लाइब्रेरी और वहां मौजूद संसाधनों को इस्तेमाल करने की छूट दे दी। बाद में, उस युवक की मेहनत रंग लाई और सरकारी सेवा में उसका चयन हो गया। यह वाकया लगभग डेढ़ साल पहले का है।”
करीब 30 साल के सुमित देहरादून के चंद्रबनी क्षेत्र में लाइब्रेरी एवं रीडिंग रूम का संचालन करते हैं। प्रतिदिन 24 घंटे खुली रहने वाली इस लाइब्रेरी में 60 हजार से ज्यादा किताबें हैं। खास बात यह है कि यह लाइब्रेरी पूरी तरह से निशुल्क हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए यहां आने वाले युवा ही इसके संचालन एवं प्रबंधन में सहयोग करते हैं।

फिजिक्स में एम.एससी. गोल्ड मेडलिस्ट प्रजापति बताते हैं, लाइब्रेरी का संचालन वरिष्ठ नागरिकों के सहयोग से होता है। एक वरिष्ठ नागरिक, जो बाहर रहते हैं, ने हमें लाइब्रेरी के लिए जगह दी है। एक और सीनियर सिटीजन ने अपने जन्मदिन पर हमें एक सौगात देने के लिए कहा था। हमने उनसे लाइब्रेरी के विस्तार में सहयोग देने को कहा था। अभी तक हमारे पास लगभग सवा सौ युवाओं के लिए सीटिंग की व्यवस्था है। उनके सहयोग से यह लगभग दोगुनी यानी ढाई सौ युवाओं के लिए हो जाएगी। उम्मीद है कि अगस्त के दूसरे सप्ताह तक हमारी लाइब्रेरी इन संसाधनों से पूर्ण होगी।
पहले हरियाणा के करनाल में रहने वाले सुमित ने अपनी पढ़ाई वहीं की। कुछ साल पहले पिता के साथ देहरादून आ गए। पिता ट्रांसपोर्ट व्यवसायी हैं और सुमित उनको सहयोग करते हैं। बताते हैं कि हमारा ट्रस्ट कपड़े इकट्ठे करके आर्थिक रूप से वंचित परिवारों को निशुल्क वितरित करता था। एक बार, किसी ने कपड़ों के साथ हमें किताबों से भरा बैग भी दे दिया। किताबें हमारे किसी काम की नहीं थीं। हमने इनको किसी कबाड़ वाले को देने के लिए एक तरफ रख दिया। पर, एक दिन कुछ बच्चे हमारे पास आए, जिनको कपड़े नहीं बल्कि हमारे पास एक कोने में रखी किताबें चाहिए थीं। उन्होंने हमसे कहा, क्या ये किताबें हम ले जाएं।
सुमित ने बताया, मैंने उनसे कहा, हां…, तुम ये किताबें ले जा सकते हो। पर, क्या तुम इन किताबों को कबाड़ में बेचोगे। तो उन बच्चों से जो जवाब मिला, उसने मेरे जीवन को एक बड़ा उद्देश्य दे दिया। उन बच्चों का कहना था, भैया… हमारे लिए ये किताबें कबाड़ नहीं हैं। हमारे पास किताबें खरीदने के लिए पैसा नहीं है। ये किताबें हमारे काम की हैं। ये हमारी कक्षा की किताबें हैं।
रेडियो केदार को सुमित ने बताया, उस दिन से हमने सोच लिया कि अब कपड़ों से ज्यादा किताबों पर काम करेंगे। हमने अपने सभी स्वयंसेवियों से किताबें इकट्ठा करके एक लाइब्रेरी बनाने की अपील की। करीब पांच साल पहले वर्ष 2020 में स्थापित यह लाइब्रेरी आज तक निशुल्क चल रही है। हमारे पास स्कूलों के बच्चे अपनी पहले की कक्षा की किताबें देकर जाते हैं और आगे की पढ़ाई के लिए किताबें लेकर जाते हैं। ऐसा नहीं है कि हम उन्हीं को किताबें देते हैं, जिनसे हम किताबें लेते हैं। हमारे यहां आने वाला कोई भी बच्चा खाली हाथ नहीं जाता। अभी तक हम 35 हजार से अधिक किताबें निशुल्क वितरित कर चुके हैं। हम बाकायदा किताब पर स्टैंप लगाते हैं, जिसमें नंबर होता है। इसका पूरा रिकार्ड हमारे पास मौजूद है।
ऐसा नहीं कि सरकारी विद्यालयों की ही किताबें हैं, हम सीबीएसई सहित सभी बोर्ड की किताबें रखते हैं। किताबें लेने आने वाले बच्चों की संख्या फरवरी से बढ़ जाती है। हमारा उद्देश्य है कि किताबों के बिना किसी बच्चे की पढ़ाई न रुके। वहीं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने, शांत माहौल में पढ़ाई करने के लिए वर्तमान में लगभग सवा सौ युवा लाइब्रेरी में आ रहे हैं।
वो बताते हैं, जगतबंधु सेवा ट्रस्ट ने श्रीमहंत इंद्रेश अस्पताल के सहयोग से अपने सेवा कार्यों को बढ़ाया है। हम अस्पताल प्रबंधन के माध्यम से उत्तराखंड के गांवों में निशुल्क नेत्र चिकित्सा एवं ऑपरेशन शिविरों का आयोजन करते हैं। जरूरतमंदों को विशेष उपकरण भी वितरित किए जाते हैं।












