Startup: युवा डॉक्टर्स चला रहे ऑर्गेनिक डेयरी, जितनी लागत- उतना लाभ
बीस भैंसों से शुरू हुआ कारोबार, दो सौ लीटर बिक रहा प्रतिदिन
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
उत्तराखंड के हरिद्वार जिला स्थित चिड़ियापुर इलाके से सटा उत्तर प्रदेश का रामदास वाली गांव। बिजनौर जिले के इस गांव में तीन युवा बीएएमएस डॉक्टर्स ने करीब एक साल पहले डेयरी फार्मिंग की शुरुआत की, वो भी पूरी स्टडी के साथ। फिलहाल डेयरी वाला एरिया लगभग सवा बीघा है, जिसमें 20 भैंसे और एक गाय को रखा गया है। गन्ने की फसल कट जाने के बाद डेयरी को लगभग 50 बीघा में करने की योजना है, जिसमें लगभग 200 भैंसे रखने का प्लान है।
बी.ए.एम,एस. की डिग्री हासिल करके इंटर्नशिप कर रहे देहरादून के डॉ. सौरभ, श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) की डॉ. अदिति और बिजनौर के डॉ. अंकित मौर्य ने डेयरी फार्मिंग को शुरू किया है। इन युवाओं की आयु 25 से 29 साल तक है। बताते हैं, “उन्होंने विस्तार से अध्ययन करने के बाद ही डेयरी फार्मिंग की शुरुआत की।”

डॉ. अंकित बताते हैं, “यहां गांव में चारे की कोई समस्या नहीं है। पर, हम पशुओं को आर्गेनिक चारा ही देंगे। हम गोबर और अन्य वेस्ट से वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं। नब्बे दिन में केंचुआ गोबर से वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर देता है। वैसे, गोबर की खाद आर्गेनिक ही है। गोशाला से निकलने वाला पानी उन्हीं खेतों में जा रहा है, जो हमारी प्रस्तावित योजना का हिस्सा हैं।”
कहते हैं, “हमने पहले दिन से ही पशुओं को आर्गेनिक आहार दिया है, यहां डेयरी में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो दूध की गुणवत्ता को प्रभावित करता हो। हालांकि यह महंगा है, पर हम बाजार से दाना और अन्य आहार भी आर्गेनिक ही खरीद रहे हैं। एक वर्ष के भीतर हम सबकुछ अपने खेतों में आर्गेनिक ही उगाएंगे।”
डॉ. अंकित, जिनके पास इस पूरे प्रोजेक्ट की खास जिम्मेदारी है, बताते हैं, ” इस इलाके का तापमान भैंसों के मुफीद है। वैसे ज्यादा तापमान में भी भैंसों का दूध कम हो जाता है। पर, यहां तापमान इनके लिए सही है। उनके अनुसार, चारे में यूरिया की मात्रा ज्यादा होने से भैंसे दूध ज्यादा देती है, पर यूरिया दूध की गुणवत्ता और पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। इसलिए हमने यूरिया से पूरी तरह तौबा की है।”

बताते हैं, “आर्गेनिक चारा मतलब आर्गेनिक दूध, जिसका अच्छे स्वास्थ्य से सीधा संबंध हैं। हमने आयुर्वेद में चिकित्सा विज्ञान को पढ़ा है, इसलिए डेयरी फार्मिंग हमारे लिए उपभोक्ताओं के बेहतर स्वास्थ्य से जुड़ा व्यवसाय है। विस्तार के साथ-साथ हम अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स पर भी काम करेंगे।”
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डॉ. सौरभ का कहना है, “इस डेयरी में कोई भी कार्य मशीनों से या आर्टिफिशियल तरीके से नहीं करने का निर्णय लिया गया है। हम भैंसों का दूध भी हाथों से निकालते हैं, न कि Milking Machine से। हमारे पास कुशल स्टाफ है, जिनका अनुभव लगभग 30 से 40 साल का है। तीन व्यक्ति आसानी से 20 भैंसों का दूध दुह लेते हैं। हाथ से दूध दुहने का सकारात्मक असर भैंसों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे उनको आराम मिलता है। यह दूध की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है।”
वो बताते हैं, “Artificial insemination (AI) यानी कृत्रिम गर्भाधान की बजाय भैंसों के प्राकृतिक गर्भाधान पर फोकस है। इसके लिए हमारे पास एक भैंसा भी है। वहीं, हम इनके मेल बच्चों को भी पालेंगे, जिनका उपयोग प्राकृतिक गर्भाधान में किया जाएगा। हालांकि कुछ स्टडी कृत्रिम गर्भाधान को नस्ल सुधार एवं दूध उत्पादन में वृद्धि के लिए सही मानते हैं, पर हमारे पास अच्छी नस्ल का भैंसा है।”

दुग्ध उत्पादन और मार्केटिंग के सवाल पर डॉ. अंकित का कहना है, “रोजाना लगभग दो सौ लीटर दूध का उत्पादन है। हमारे पास 20 भैंसे, एक गाय और 12 कटड़े-कटड़ियां (भैंसों के बच्चे) हैं। उत्तराखंड की आंचल डेयरी की गाड़ी प्रतिदिन सुबह-शाम यहां आती है, जो प्रति लीटर 60 रुपया के हिसाब से दूध खरीदती है। यह रेट दूध की क्वालिटी पर निर्भर करता है। हम प्रतिमाह लाभ हानि का हिसाब लगाते हैं। कुल मिलाकर औसतन सौ लीटर दूध का पैसा लाभ माना जा सकता है। हालांकि, अभी तक पूरे व्यवसाय पर लगभग 25 लाख रुपये से अधिक का निवेश किया जा चुका है।”

डॉ. अदिति बताती हैं, “हालांकि बीएएमएस पासआउट होने के बाद इन्टर्नशिप और मेडिकल में ही आगे की पढ़ाई के लिए तैयारी चल रही है। हमारे पास समय का अभाव है, पर हम तीनों आपस में डेयरी फार्मिंग को मैनेज कर रहे हैं, क्योंकि यह व्यवसाय हम आगे बढ़ाना चाहते हैं। हालांकि बाधाएं तो हर कार्य में आती हैं।”
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“हम डेयरी और आयुर्वेदा को Align करना चाहते हैं। यह तो पहले से ही तय था कि हम बिजनेस करना चाहते थे और इसके लिए एक शानदार आइडिया का इंतजार कर रहे थे। डॉ.अंकित के पास भूमि है और उनका इस फील्ड में अनुभव भी है, उन्होंने हमें डेयरी फार्मिंग से जुड़ने को कहा।”

एक सवाल पर, डॉ. सौरभ बताते हैं, “जिस तरह इंसानों को मूवमेंट की आवश्यकता होती है, उसी तरह पशुओं को भी। डेयरी की सबसे पहली आवश्यकता है, पर्याप्त जगह, जो यहां उपलब्ध है। मनोस्थिति सही रहने का अवसर पशुओं के स्वास्थ्य और दूध की गुणवत्ता पर भी पड़ता है।”