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बातें स्वरोजगार कींः बाड़ाकोटी जी से जानिए, गायों को पालने का सही तरीका

”उत्तराखंड में डेयरी फार्मिंग की बहुत संभावनाएं हैं। हमने कोविड-19 के दौरान विदेश से वापस लौटे 20 युवाओं को डेयरी सेक्टर में काम शुरू करने में सहयोग किया। हम डेयरी फार्मिंग को स्वरोजगार बनाने वालों की मदद के लिए हर समय तैयार हैं। पूरे ध्यान से जानकारियों एवं सावधानियों के साथ डेयरी व्यवसाय शुरू करने से लाभ जरूर मिलेगा, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगता है, ” प्रगतिशील कृषक ललित बाड़ाकोटी कृषि एवं इससे जुड़ी रोजगार की गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।
बाड़ाकोटी उत्तराखंड के पहले किसान हैं, जिन्हें डेयरी फार्मिंग के लिए किसान क्रेडिट कार्ड प्रदान किया गया था। उत्तराखंड आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2020-21 में डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों का जिक्र किया गया है।

देहरादून जिला के बालावाला में डेयरी का संचालन कर रहे बाड़ाकोटी उत्तराखंड प्रोगेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन (पीडीएफए) में सचिव हैं। एसोसिएशन के राज्यभर में पांच हजार से भी ज्यादा डेयरी फार्मर सदस्य हैं।
वो, पशुपालन से डेयरी फार्मिंग के अपने सफर पर जानकारी देते हैं, डेयरी फार्मिंग से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने के लिए अपने प्रस्तावों का जिक्र करते हैं और साथ ही, इससे जुड़ी चुनौतियों पर भी बात करते हैं।
कहते हैं, संयुक्त परिवार के समय हम पशु पालते थे और सब्जियां भी उगाते थे। परिवार अलग- अलग होने पर पशुओं को बेचना पड़ा। हमें दूध खरीदना पड़ गया। एक बार स्थिति यह आई कि सब्जियां उगाने के लिए खाद नहीं मिली। हमें निर्णय लेना पड़ा कि पूरे मनोयोग एवं जिम्मेदारियों के साथ गायें पाली जाएं। गाय पालन ने धीरे-धीरे डेयरी फार्मिंग का रूप ले लिया।

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इसके बाद हमने आसपास के पशुपालकों, जो दुग्ध व्यवसाय करते हैं, को आय बढ़ाने के लिए सब्जियां उगाने का सुझाव दिया। धीरे-धीरे यह इलाका शहर में तब्दील हो रहा है। अधिकतर घरों में गमलों या छोटी क्यारियों में फूल और सब्जियां उगाए जाते हैं। उनको जैविक खाद की जरूरत होती है। पशुपालक उनको गोबर की खाद उपलब्ध कराते हैं। हम वर्मी कम्पोस्ट भी तैयार करते हैं। लोगों को घर पर ही सब्जियां मिल जाती हैं और पशुपालकों की खाद से आय होती है।
देहरादून के बालावाला में प्रोगेसिव डेयरी फार्मर ललित बाड़ाकोटी जी की डेयरी। फोटो- सक्षम पांडेय
बताते हैं कि गोबर से बायोगैस प्लांट चलता है। इससे रसोई में चूल्हा जलाने के लिए गैस की आपूर्ति हो जाती है। तीन परिवारों को लगभग पूरे साल गैस उपलब्ध हो जाती है। केवल सर्दियों के महीनों में गैस कम होती है।
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एसएचसी से एक लाख की इंटरलोनिंग पांच मिनट में
बालावाला में वर्ष 2017 में बहुद्देशीय डेयरी कृषक स्वयं सहायता समूह बनाया गया, जिसमें दस सदस्य हैं। समूह के बैंक खाते में दस लाख रुपये से अधिक जमा हैं। यह स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) अपने सदस्यों को एक लाख रुपये तक का ऋण बहुत कम ब्याज पर उपलब्ध कराता है।
”डेयरी संबंधी या अन्य आवश्यकताएं पूरी करने के लिए समूह का कोई भी सदस्य आवेदन करने के पांच मिनट के भीतर ऋण प्राप्त कर सकता हैं। इसमें बैंक की तरह जमीन या मकान बंधक रखने या बड़ी औपचारिकताएं पूरी करने की जरूरत नहीं होती। महीनों की किश्तों में लोन चुका भी दिया जाता है,” बाड़ाकोटी बताते हैं।

इस लोन को गाय, भूसा, चारे के लिए बीज या फिर डेयरी के लिए कोई उपकरण खरीदने, निर्माण करने में उपयोग किया जाता है। समूह के स्तर पर भी डेयरी उपकरण, गायों के लिए मैट, कर्मचारियों के लिए शूज, तसले, फावड़े, बछड़े-बछड़ियों को दूध पिलाने की निप्पल- बोतल को थोक में एक साथ खरीदा जाता है, जो सही दाम पर डेयरी फार्मर्स को उपलब्ध कराते हैं।
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उत्तराखंड में पंजाब की तर्ज पर प्रोगेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन (पीडीएफए) का लगभग एक दशक से संचालन किया जा रहा है। पूरे प्रदेश से पांच हजार किसान जुड़े हैं। एसोसिएशन कोविड के समय सभी किसानों से ऑनलाइन माध्यमों से जुड़ा रहा। डेयरी फार्मिंग के इच्छुक युवाओं को निशुल्क प्रशिक्षण एवं नई जानकारियां उपलब्ध कराते हैं। हम नहीं चाहते कि जो दिक्कतें हमने झेलीं, किसी ओर को उनका सामना करना पड़े।
नगर निगम में शामिल गांवों में डेयरी फार्मिंग के सामने बड़ी चुनौतियां
शहरी क्षेत्रों में संचालित डेयरी फार्मिंग पर नगर निगम एवं स्थानीय प्रशासन के स्तर पर कार्रवाइयां होती रही हैं। नगर निगम क्षेत्र में आए बालावाला जैसे बड़े ग्रामीण इलाको में डेयरी फार्मिंग के सामने चुनौतियों के सवाल पर पीडीएफए के सचिव बाड़ाकोटी का कहना है, नगर निगम के रुख को देखते हुए इस सेक्टर में काम करना बड़ा मुश्किल लग रहा है।
यहां जिनके पास पर्याप्त स्थान है, वो अपने परिसर में ही पशु पाल रहे हैं, गोबर- गोमूत्र या पानी तक सड़क पर नहीं जाता, पर किसी ने शिकायत कर दी तो नगर निगम की टीम तुरंत चालान काट देती है। स्थिति यहां तक है, डेयरी में कोई कमी नहीं होने के बाद भी इस बात के लिए चालान काटा दिया जाता है कि बछड़े बछड़ियों के टैग नहीं लगे हैं।
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उनका सुझाव है कि नगर निगम कोई सुदृढ़ नीति बनाए, क्योंकि कोविड-19 लॉकडाउन के बाद स्वरोजगार से जुड़े लगभग 70 फीसदी से अधिक लोग डेयरी सेक्टर में काम कर रहे हैं। इनमें पहले से और अब शुरू करने वाले लोग शामिल हैं। पढ़े लिखे युवा इस सेक्टर में कार्यरत हैं।
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मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के ऋण के लिए कहां से लाएं एनओसी 
बाड़ाकोटी बताते हैं, डेयरी फार्मिंग के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ऋण हेतु बैंक में आवेदन करते हैं तो वहां नगर निगम व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाणपत्र लाने को कहा जाता है। जबकि, नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास इस कार्य के लिए एनओसी देने का कोई नियम नहीं है। इससे इस क्षेत्र में काम कर रहे या काम करने के इच्छुक लोगों को बहुत दिक्कतें हो रही हैं। इस स्थिति में आवेदकों को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा।
हमने बैंक प्रबंधकों से बात की। उनसे कहा, यदि एनओसी संबंधी आदेश बैंक का है तो लिखित में उपलब्ध कराओ। फिर नगर निगम और पाल्युशन कंट्रोल बोर्ड के समक्ष जाएंगे।
वहीं, पाल्युशन कंट्रोल बोर्ड की गाइड लाइन में कहीं यह नहीं लिखा है कि गाय के गोबर से कोई प्रदूषण होता है। हालांकि, हमारा यह मानना है कि गाय का गोबर, गोमूत्र नालियों में न जाए। उसका ट्रीटमेंट उसी खेत या उसी स्थान पर हो जाए।
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वहीं, करीब एक-डेढ़ साल पहले विज्ञप्ति जारी की गई थी कि डेयरी फार्मर्स को पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड और नगर निगम से एनओसी लेनी होगी। मेरी जानकारी के अनुसार, नगर निगम ने ऐसी कोई एनओसी नहीं दी है।
सरकार के लिए डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के प्रस्ताव
”हमने पूर्व में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री को प्रस्ताव दिया था कि लुधियाना की तरह डेयरी नगर की स्थापना करके वहां शहरी क्षेत्र की सभी डेयरियों को स्थान आवंटित किया जाए।
दूसरा प्रस्ताव छत्तीसगढ़ की तर्ज पर डेयरियों का कच्चा गोबर खरीदा जाए और उससे कम्पोस्ट बनाकर बेचा जाए।
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अगर, नगर निगम डेयरियों को किसी एक स्थान पर नहीं बसाता तो पीडीएफए का एक ओर प्रस्ताव है। हमें शहर के दो कोनों में जगह दे दी जाए, हम सारा गोबर अपने पैसों से एक जगह इकट्ठा कर देंगे।” सचिव बाड़ाकोटी ने शहरी क्षेत्रों में डेयरी फार्मिंग से प्रदूषण की शिकायतों को दूर करने के लिए पीडीएफए के प्रस्ताव बताए।
बताते हैं कि हमने मेयर को प्रस्ताव दिया था कि अगर हमें शहर में दो स्थानों पर जगह मिल जाती है, तो हम गोबर से गोकाष्ट (गोबर की लकड़ी) बनाकर शहर के शवदाह गृहों को दे सकते हैं। साथ ही, शहर के घरों में किचन गार्डन के लिए वर्मी कम्पोस्ट बनाकर बेचा जा सकता है।
हालांकि, उनका कहना है कि सड़कों के किनारे गंदगी फैलाने वाली डेयरियों पर कार्रवाई के लिए नगर निगम से कहा था। उनसे यह भी कहा था कि इनके लिए पशुओं की संख्या निर्धारित की जाए।
राजनेताओं का जमीनी अनुभव कम है और अफसर हल्के में लेते हैं किसानों के सुझाव
लगातार दिए गए प्रस्तावों पर कार्यवाही नहीं होने की क्या वजह होगी, के सवाल पर उनका कहना है कि ”हम किसानों के बीच में जाते रहे हैं, काफी समय से यह देखा जा रहा है कि यहां के अधिकारी किसानों के सुझावों को बहुत हल्के में लेते हैं। किसानों के साथ बैठकें ही नहीं होतीं। एक बार देहरादून के मुख्य विकास अधिकारी बंशीधर तिवारी जरूर यहां आए थे, उन्होंने जिला स्तर से अधिकारियों को बुलाकर किसानों की बात सुनी थी। बाद में उनका स्थानांतरण हो गया, फिर कोई नहीं आया।
प्रोगेसिव डेयरी फार्मर ललित बाड़ाकोटी , डेयरी से निकले गोबर से वर्मी कम्पोस्ट को बिक्री के साथ सब्जियों की खेती में भी इस्तेमाल करते हैं। फोटो- सक्षम पांडेय
समय-समय पर किसानों, डेयरी फार्मिंग, बागवानी, कृषि, पोल्ट्री फार्मिंग, मत्स्य पालन, सब्जी उत्पादन से जुड़े लोगों की बैठकें होनी चाहिएं। उनकी दिक्कतों एवं सुझावों को जानना चाहिए। उनके कार्यों को कैसे बेहतर बनाया जाए, चर्चा हो।  जो लोग बेहतर कार्य कर रहे हैं, उनको जो सुविधा चाहिए, दी जाएं। इससे उनकी आय में वृद्धि होने के साथ ही अन्य लोगों में भी यह संदेश जाएगा कि सरकारी स्तर पर उसी की मदद हो रही है, जो अच्छा कार्य कर रहा है। इससे और लोग भी प्रेरित होंगे।”
रही बात राजनेताओं की, तो उनमें से अधिकतर के पास जमीनी अनुभव कम है। इसलिए अधिकारी उनको जैसा कहते हैं, वो वैसा मान लेते हैं। किसान एवं किसी भी क्षेत्र के काम व्यावहारिक नहीं होते। जबकि काम सुविधाजनक एवं सरल होने चाहिए।
दुधारू पशुओं के साथ बछड़े-बछड़ियों पर भी ध्यान देना बहुत आवश्यक
पशुओं के बच्चों पर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। फोटो- सक्षम पांडेय
पशुपालन में सावधानियों एवं सतर्कता के संबंध में प्रोगेसिव डेयरी फार्मर ललित बाड़ाकोटी का कहना है कि आम तौर पर पशुपालक बच्चों (बछड़े-बछड़ियों) की तरफ ध्यान नहीं देते। उनका ध्यान दूध देने वाली गाय की तरफ होता है। हम प्रयास करते हैं कि बच्चे अच्छी नस्ल के तैयार हों। उन पर उतना ही ध्यान देते हैं, जितना कि गाय की तरफ होता है।
जब हम गाय की बछिया की तरफ ध्यान नहीं देते तो उसको हीट में आने में काफी समय लगता है। हमने अपनी बछिया की पूरी केयर की। यह पूरे इलाके में रिकार्ड है कि 21 माह की बछिया गाभिन हो गई थी। वो छह साल में पांचवी बार गाभिन हो गई है। मिनरल्स, कैल्शियम, समय- समय पर जो भी फूड सप्लीमेंट्स हैं, इनको दिए जाते हैं। पशुओं में डी वार्मिंग समय समय पर होती है। साथ ही, पशुओं के आसपास साफ सफाई होनी चाहिए।
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पीएफडीए बैठकों में पशुपालकों को प्रशिक्षण देता है। पशुओं को पालने संबंधी जानकारियों को लेकर जागरूकता होनी चाहिए। कई बार पशुओं को सड़क चलते बुल से क्रास करा दिया जाता है। जबकि अच्छे सीमेन का प्रयोग करना चाहिए, चाहे वो देशी हो या विदेशी ब्रीड हो। यहां पशुओं की ब्रीडिंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
पशुओं की सही केयर होगी तो उनको सड़कों पर छोड़ने की नौबत नहीं आएगी। सड़कों पर घूमने वाले पशुओं को लेकर सरकार के स्तर से कोई नीति तो बनाई जानी चाहिए।
पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
पशुपालन विभाग, पशु चिकित्सक, पैरावेट्स, फार्मासिस्ट के फोन नंबर आपके पास होने चाहिए। कुछ सामान्य दिक्कतों, जैसे बुखार आदि में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों की जानकारी होनी चाहिए। वैसे तो आपको किसी भी समस्या पर तुरंत चिकित्सक या पैरावेट्स को फोन करना चाहिए।
घरेलू उपचार पशुओं के लिए भी होते हैं। खाने का सोडा, नमक, सेंधा नमक, काला नमक…पशुओं के इलाज में इस्तेमाल होते हैं। मनुष्यों के उपचार में प्रयोग होने वाली चीजें पशुओं के इलाज में भी उपयोगी हैं, फर्क सिर्फ मात्रा का होता है।
सामान्य तौर पर दूध देने वाले पशु को थनैला रोग हो जाता है। उसके थनों में सूजन आ जाती है। दूध कम हो जाता है। पशु को बुखार भी हो जाता है। ऐसा सफाई नहीं होने से होता है। पशुओं की दवाइयों, वैक्सीनेशन का पूरा शेड्यूल होता है। किसानों की बैठकों में पशुपालन के अनुभवों को साझा किया जाता है। उनसे बहुत सारे नुस्खों की जानकारी मिलती है।
पशुओं के मूवमेंट से बेहतर होगी दूध की गुणवत्ता एवं सेहत
बाड़ाकोटी कहते हैं कि पशुओं का मूवमेंट बहुत जरूरी है। इससे उनकी सेहत और दूध की गुणवत्ता बेहतर होते हैं। दूध ज्यादा मिलेगा और पशुओं में रोग की आशंका बहुत कम हो जाती है। वो भी पशुओं को सुबह करीब एक घंटा खुला छोड़ते हैं। बताते हैं कि हमने हरिद्वार में गो पालन का निर्णय लिया है, जहां सभी गायें खुली रहेंगी।
उत्तराखंड डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के सचिव ललित बाड़ाकोटी ने डेयरी फार्मिंग से स्वरोजगार पर विस्तार से बात की। फोटो- सक्षम पांडेय
खेतों में कैमिकल वाली खाद डाले जाने से पशुओं के चारे में यूरिया मिला होने के सवाल पर कहते हैं कि उनका यह प्लान है कि घास पूरी तरह जैविक हो। इसके लिए चारे में गोबर की खाद का ही इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं। बताते हैं, ज्यादा दूध देने वाली गो प्रजातियों के साथ दिक्कतें होती हैं। हम देशी गाय पालन पर फोकस कर रहे हैं।
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पशुपालन लाभ का सौदा है, घाटा तो हो ही नहीं सकता
पशुओं को मिनरल्स एवं पौष्टिक पदार्थ नियमित रूप से खिलाने चाहिए। इससे उनका स्वास्थ्य बेहतर होता और दूध की क्वालिटी अच्छी होती है। फोटो- सक्षम पांडेय
अगर हम देशी गाय की बात करें, तो उसके गोबर और गोमूत्र आजीविका का बेहतर विकल्प हैं। गोबर और गोमूत्र का पूरा उपयोग करने से प्राप्त आय में लागत एवं लाभ का अनुपात 40:60 का हो सकता है।
उनके पास, वर्तमान में सात गायें दूध देने वाली हैं। बाकी बछड़े-बछड़ियां हैं। लगभग 80 किलो दुग्ध उत्पादन हो रहा है, जो 53 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है।
कहते हैं, पशुपालन लाभ का सौदा है। घाटा तो किसी भी व्यवसाय में नहीं है। बहुत सारे ग्राहक यहां दूध लेने आते हैं, जो सुबह सुबह गाय को प्रणाम करते हैं, स्पर्श करते हैं। गाय जिस दिन से दूध देना शुरू करती है, तभी से वो अपना और पशुपालक का पूरा खर्चा उठाती है।
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पशुपालकों को गाय के दूध पर ही नहीं, बल्कि उसके बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर भी ध्यान देना चाहिए। बच्चे को भी उसकी मां गाय का दूध पिलाना चाहिए। हमारे यहां एक गाय थी, जो दोनों समय 33 किलो दूध दे रही है। इसी तरह देहरादून में पीडीएफए के एक मेंबर के यहां एचएफ (होलेस्टीन फ्रीजियन) गाय 47 किलो दूध देती है।
अगर आप बछिया को अच्छी तरह से पालेंगे तो आपको पशु खरीदने के लिए हरियाणा- पंजाब पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। हम एक-डेढ़ साल से हरियाणा- पंजाब नहीं काट रहे। यहीं भी बछिया तैयार हो जाती हैं। पशुपालन घाटे का काम नहीं है।
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पहले लोग कहते थे कि पशुओं के साथ पशु जैसा बनना पड़ता है, ऐसा कुछ नहीं है। आप समय-समय पर चारा-पानी दीजिए। हम सुबह चार बजे चारा-पानी करते हैं, शाम को चार बजे फिर।
पहाड़ में समूह बनाकर करें पशुपालन, अच्छे परिणाम मिलेंगे
पहाड़ में बद्रीगाय हैं, पर वहां अकेला व्यक्ति डेयरी फार्मिंग करे तो सफलता की संभावना कम है। वहां युवाओं को समूह बनाकर गो पालन करने की आवश्यकता है। हमने वहां सुझाव दिया है कि 20 युवा मिलकर लगभग 40 गायों को पालें।
पर्वतीय क्षेत्र में वहां की बद्रीगाय को ही पालें। हम उनको रखरखाव के तरीके बता देंगे तो दुग्ध उत्पादन लगभग दोगुना होगा। यानी कोई गाय एक किलो दूध देती है तो सही रखरखाव से दो किलो उत्पादन मिल सकता है।
उत्तराखंड डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के सचिव ललित बाड़ाकोटी से गाय के गोबर के उपयोगों पर चर्चा की। फोटो- सक्षम पांडेय
कृषि, बागवानी एवं पशुपालन में तमाम संभावनाओं के बाद भी पहाड़ के गांवों से पलायन की वजह क्या है, आखिर चूक कहां हो रही है, पर उनका कहना है कि जरूरत है मनोबल बढ़ाने की। पहाड़ में कृषि, बागवानी हों या डेयरी उत्पाद, मार्केटिंग मुश्किल काम होता है। एक ही व्यक्ति पशुओं के रखरखाव से लेकर उत्पादन व मार्केटिंग पर ध्यान नहीं दे पाता। उनका काफी समय लग जाता है। तभी हम समूहों में कार्य करने पर जोर दे रहे हैं।
गोबर गैस प्लांट का पिट, जिसमें ताजा गोबर डालकर घोल तैयार किया जाता है। फोटो- सक्षम पांडेय
उनका कहना है कि मैं एक युवा को जानता हूं, वो पहले होटल में काम करता था। वो दूध बेचने के लिए कई किमी. चलता है। उसका काफी समय घर से शहर आने-जाने में लग जाता है। यदि एक गांव में एक-एक व्यक्ति तीन-तीन गायें पाले, तो 20 लोगों के समूह में लगभग सौ लीटर दूध उत्पादन हो सकता है तो उसे बल्क में लाया जाए। समूह में सभी एक दूसरे को सहयोग करें।
सलाह देते हैं कि सरकार को विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है। अफसरों को पहाड़ के गांवों में दौड़ाने की जरूरत है। जो किसान पलायन नहीं करके अपने गांवों में बेहतर कार्य कर रहे हैं, उनको आवश्यकता पड़ने पर घर-गांव पहुंचकर सुविधाएं दी जानी चाहिएं।
गोबर से खाद और रसोई गैस, गो मूत्र से कीटनाशक
वर्मी कम्पोस्ट पिट। फोटो- सक्षम पांडेय
गाय आर्थिकी का आधार है। गोबर जैविक खाद तथा गोमूत्र कीटनाशक बनाने में काम आता है।
प्रगतिशील डेयरी फार्मर ललित बाड़ाकोटी ने हमें गोबर गैस बनाने की पूरी प्रक्रिया दिखाई, जिसमें एक छोटे पिट में गोबर डाला जाता है। पानी मिलाकर गोबर का घोल तैयार होता है। घोल पाइप के जरिये गैस प्लांट तक पहुंचता है, जहां इससे गैस बनती है। गैस पाइप के जरिये चूल्हे तक पहुंचकर ईंधन का काम करती है।
बाड़ाकोटी बताते हैं कि गोबर गैस में बदबू नहीं आती। इससे कोई खतरा भी नहीं है। यह साल में दस माह अच्छी लौ देती है। केवल सर्दियों के दो महीनों में गैस कम बनती है। गर्मियों में प्लांट में इतनी गैस उत्पादित होती है, हम इस्तेमाल भी नहीं कर पाते।
बताते हैं, तीन परिवारों के चूल्हे जलाने के लिए जितनी गैस की जरूरत होती है, उससे ज्यादा उत्पादित हो जाती है। कुल मिलाकर वर्ष में 30 हजार रुपये  तक की बचत हो जाती है।
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वहीं, गैस प्लांट से बाहर निकाले गोबर को वर्मी कम्पोस्ट पिट में डाल देते हैं, जहां केचुएं गोबर को डिकम्पोज करके कम्पोस्ट बनाते हैं। इसको सब्जियों की क्यारियों में इस्तेमाल करने के साथ बिक्री भी किया जाता है। क्यारियों में इस्तेमाल करने के साथ ही लगभग 50 हजार रुपये का वर्मी कम्पोस्ट बिक जाता है। इसकी बहुत डिमांड है। वहीं सालभर में सब्जियों का लगभग 30 हजार का खर्चा बच जाता है। साथ ही, कच्चा गोबर भी प्रति ट्राली एक हजार रुपये की दर से सालभर में लगभग 30 हजार रुपये का बिक जाता है।
पीडीएफए के सचिव ललित बाड़ाकोटी की उपलब्धियां
प्रगतिशील डेयरी कृषक ललित बाड़ाकोटी कृषकों के लिए प्ररेणा स्रोत हैं। कोविड -19 संक्रमण के समय लॉकडाउन के दौरान भी कई व्यक्तियों को डेयरी व्यवसाय के लिए प्रेरित किया। 20 विदेशी प्रवासियों तथा विभिन्न जनपदों के 250 उत्तराखंड प्रवासियों को डेयरी उद्यम शुरू करने में मदद की।
बालावाला क्षेत्र में बहुउद्देशीय डेयरी कृषक स्वयं सहायता समूह का गठन किया है, जिसमें समूह के सदस्यों ने लगभग 10 लाख रुपये जमा किए हैं। ऐसे पशु जो बीमारी के कारण खड़े नहीं हो पाते, उनके लिए स्वयं सहायता समूह के माध्यम से दो पशु लिपट मशीनें भी खरीदी गई हैं, जिनसे कई पशुओं की जान बचाई जा चुकी है।
ललित बाड़ाकोटी उत्तराखंड के प्रथम पशुपालक हैं, जिन्हें डेयरी उद्यम के अंतर्गत प्रथम किसान क्रेडिट कार्ड दिया गया है।
इनके अथक प्रयासों से संभव हुआ है कि डेयरी उद्यम में कार्यरत कृषकों को 600 यूनिट बिजली तक घरेलू रेट पर बिल जमा करना होगा, जो पहले व्यावसायिक रेट पर जमा करना होता था।   – स्रोतः उत्तराखंड आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2020-21

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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