आज बहुत गर्मी हो रही है, घास चरने में व्यस्त खरगोश ने हिरन से कहा।
हिरन बोला, सर्दियों के मौसम में तुम्हें गर्मी लग रही है। तुम्हें तो गर्मी लगेगी ही, तुम्हारे बालों से तो लोग सर्दियों में बचने के लिए कपड़े बनाते हैं। मैंने तो कबीले में एक व्यक्ति को यह कहते सुना है कि खरगोश के बालों की टोपी भी बहुत कमाल की होती है।
पर, मुझे देखो न, ऐसे ही घूमता रहता हूं। जब हमारे राजा शेर जी, जंगल में सरकार बनाएंगे तो हमें बहुत सारी सुविधाएं मिलेंगी।
खरगोश ने हिरन को देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहने लगा, लगता है तुम्हें तो नौकरी मिल जाएगी।
हिरन बोला, नौकरी क्या होती है। यह क्या बला है भाई।
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खरगोश बोला, ज्यादा मत बनो। तुम नौकरी के बारे में भी जानते हो और सहायता का भी तुम्हें खूब पता है। ज्यादा जानकारी चाहिए तो फुंकनी यंत्र से बात करो। उससे ज्यादा ज्ञानी हमारे बीच में कोई नहीं है।
खरगोश ने आवाज लगाई, फुंकनी यंत्र बोलो कुछ।
फुंकनी यंत्र ने जवाब दिया, पहले तो तुम कहीं भी, कभी भी, मुझसे कुछ भी पूछने की आदत छोड़ दो। मेरा भी समय है। मैं तुम्हारी नौकरी नहीं कर रहा हूं। आगे से ध्यान रखना, पूछो क्या जानना चाहते हो।
हिरन बोला, भाई लगता है, तुम्हें भी गर्मी लग रही है, इसलिए ज्यादा गर्म हो रहे हो।
फुंकनी यंत्र ने कहा, काम की बात करो। गर्मी तो लगेगी ही, बड़े महाराज कबीले की सियासत को भट्टी पर चढ़ाकर पका रहे हैं। ऊपर से कोयले पर कोयला डालकर भट्टी को जबरदस्त तरीके से सुलगाने में जुटे हैं। वो यह भी नहीं देख रहे कि कोयला गीला है, लकड़ियों ने नमीं पकड़ रखी है। इससे धुआं अलग से उठ रहा है। उनको तो इस तरह के धुएं की आदत है। वो तो यह भी ध्यान नहीं रख रहे हैं, यह धुआं उनके गुट के लिए घुटन पैदा कर रहा है।
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खरगोश ने कहा, मेरे प्यारे दोस्त, तरीके से समझाओ। पहेलियां मत बुझाओ।
फुंकनी यंत्र बोला, सुनो… बड़े महाराज को हर हाल में राजा की गद्दी पर विराजमान होना है। वो या तो मौन उपवास कर रहे हैं या फिर खूब बोल रहे हैं। वो न तो बोलने से पहले सोच रहे हैं और न ही बोलने के बाद किसी की कोई परवाह कर रहे हैं।
वो कहते हैं न, तीतर के आगे तीतर, तीतर के पीछे तीतर, बताओ कितने तीतर। तुम्हारे में कोई बताएगा कितने तीतर।
खरगोश बोला, यह तो आसान है, जवाब है – दो तीतर।
हिरन बोला, मेरे हिसाब से तीन तीतर।
फुंकनी यंत्र ने कहा, तुम दोनों सही हो, पर मेरे हिसाब से एक भी नहीं।
खरगोश ने पूछा, वो कैसे।
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फुंकनी यंत्र बोला, बड़े महाराज जो बोलते हैं। बोलने से पहले जो बोलते हैं। बोलने के बाद जो बोलते हैं। इन सभी बोलों का हिसाब लगाया जाए तो वो कुछ भी नहीं बोलते हैं।
हिरन बोला, मेरा सर पक रहा है। कोई मुझे बचाओ, मैं यहां कहां फंस गया। लगता है फुंकनी यंत्र तुम अपना गुस्सा हम पर निकाल रहे हो। क्या फालतू की बातें कर रहे हो। तुम जो बोलोगे, हम मान लेंगे। थोड़ा बहुत सियासत तो हम भी जानते हैं।
खरगोश बोला, हिरन भाई, फुंकनी यंत्र का दिमाग आज काम नहीं कर रहा है। और हां, फुंकनी यंत्र, तुम्हारे लिए यह अंतिम मौका है, आसान शब्दों में समझाओ। आसान विषय को जटिल मत बनाओ।
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फुंकनी यंत्र बोला, बड़े महाराज ने गुणी महाराज के गुट को निशाने पर लिया है। अब सुनते रहना, वो क्या कहते हैं-
इन्होंने किसी की नौकरी लगाई है तो बताएं। अगर ये बता देंगे तो मैं सियासत छोड़ दूंगा।
वो बड़कू महाराज के बोल पर कहते हैं, अगर मेरे राजा रहते किसी को अवकाश देने वाला पत्र दिखा दें तो मैं सियासत छोड़ दूंगा।
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वो कहते हैं, गुणी महाराज का गुट पांच वर्ष के पापों पर क्षमा मांग ले तो मैं सियासत छोड़ दूंगा।
वो अधिकारों से वंचित व्यक्ति को राज गद्दी दिलाने की बात कहते हैं।
फिर, अपनी बात भूलते हुए देवता से आशीर्वाद मांगते हैं कि उनको राज गद्दी पर विराजमान करा दो।
वो बड़बोले महाराज को कुछ न कुछ बोलने के लिए प्रेरित करते हैं, फिर मौन साध लेते हैं।
गुरु महाराज के देवता के दरबार वाले चलचित्र एवं छाया चित्र पर बोलते हैं। फिर मौन हो जाते हैं।
रही बात गुणी महाराज के गुट की तो उन्होंने नौकरी वाले बोल पर उत्तर दे दिया। गुणी महाराज के गुट वाले अब उनसे सियासत छोड़ने को कह रहे हैं।
बड़े महाराज कहते हैं, गुणी महाराज वालों ने माताओं और बहनों की सहायता करना बंद कर दिया। मुझे राजा बना दोगे तो यह सहायता पुनः शुरू करा दूंगा।
क्या तुम मेरी बात समझ रहो हो, हिरन जी, खरगोश जी। क्या इतनी आसान सी बातों से भी तुम्हारा दिमाग पक रहा है।
खरगोश ने कहा, अभी तक तो दिमाग नहीं पक रहा।
फुंकनी यंत्र बोला, शाबास, तो सुनो। बड़े महाराज ने सियासत छोड़ दूंगा, कहने से पहले बोला, सियासत छोड़ दूंगा। सियासत छोड़ दूंगा बोलने के बाद फिर बोला- सियासत छोड़ दूंगा। फिर भी उन्होंने सियासत नहीं छोड़ी।
हिरन बोला, इतनी मेहनत करने के बाद कोई ऐसे ही सियासत छोड़ देगा। तुम भी न फुंकनी यंत्र। मैं तो पहले ही कह रहा था, अब तो सच में ही नमी वाले कोयले का धुआं तुम्हारे दिमाग में घुस गया है।भाई, दिमाग लगाओ… बड़े महाराज जो भी कुछ बोल रहे हैं या सोच रहे हैं या फिर कर रहे हैं, वो सिर्फ और सिर्फ राज गद्दी पर विराजमान होने के लिए हैं।
कल तुम्हीं कह रहे थे कि सियासत में जो भी कुछ कहा जाता है, वो भूलने के लिए होता है। सियासत उस वाद्ययंत्र की तरह है, जिसमें से परिस्थितियों के अनुसार ध्वनियां निकलती हैं या निकाली जा सकती हैं।
अगर सामान्य शब्दों में कहो तो बड़े महाराज सियासत रूपी वाद्य यंत्र को अपने अनुसार प्रयोग करते हैं। सियासी होने का मतलब झूठ और सच के फर्क को पाटने जैसा है। यहां जो कहा जाता है, उसको बदला जा सकता है।
सियासत ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है,जहां जुबान से निकले बोल सामने वाले को जख्मी करके वापस लिए जा सकते हैं। या कहें कि आसानी से भुलाए जा सकते हैं।
फुंकनी यंत्र बोला, तुम तो बहुत समझदार हो गए हिरन जी।
खरगोश और हिरन एक साथ बोले, धीरे-धीरे ही सही, पर हम सियासत और उसकी चालों को समझने लगे हैं।
खरगोश बोला, फुंकनी यंत्र क्या तुम मौन उपवास पर नहीं जाओगे।
फुंकनी यंत्र बोला, कल फिर करेंगे कबीले में चुनाव को लेकर गरमाई सियासत पर बात।
इसके बाद खरगोश और हिरन अपने ठिकानों की ओर दौड़ लगा लेते हैं।
- यह कहानी काल्पनिक है। इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।