मैदान की हरी घास चरने का आनंद उठा रहे खरगोश ने हिरन से कहा, बहुत दिन से हम सियासत पर नजर रख रहे हैं। इससे हमें क्या फायदा होगा।
हिरन बोला, बात तो तुम्हारी सही है दोस्त। हम तो दोस्त हैं, बस इतना जानते हैं कि तुम मेरे साथ हो और मैं तुम्हारे साथ हूं। हम तो सियासी बनने से रहे।
खरगोश ने कहा, बंद करते हैं यह सियासत की बातें। हमें क्या लेना बड़े महाराज से और बड़कू महाराज व गुरु महाराज से।
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तभी फुंकनी यंत्र बोला, तुम ये फालतू की बातें क्यों सोच रहे हो। हमें सभी को सियासी होना होगा, क्योंकि इसी से जीवन आगे बढ़ता है। यह बात ठीक है कि हमें अपने साथियों के साथ कोई चाल नहीं करनी चाहिए, पर गुटों में बंटे इंसानों में एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ है, उनको तो सियासत की चालों में ही आनंद आता है। तुम्हें एक मजेदार बात बताता हूं।
हिरन ने कहा, जल्दी बताओ, मैं तो कब से कुछ नया सुनने के लिए आतुर था।
खरगोश बोला, हम ये कहां फंस गए। जिनकी हम बातें करते हैं, वो एक दूसरे की चालों में फंसे हों या न हों, पर हमें चक्करघिन्नी बनने से कोई नहीं रोक सकता। बताओ, फुंकनी यंत्र जी।
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फुंकनी यंत्र बोला, कबीले में ही देख लो, इंसान तो देवताओं के साथ ही सियासत करने लगे हैं। बड़कू महाराज, गुरु महाराज सभी खेल कर रहे हैं। अभी तक देवता ही उनका उद्धार करते आते हैं। हमारे कबीले के चुनाव में ही उनको देवता का आसरा है।
प्रजा तो देवता को पूजती है, उनको मानती है। ये सियासी लोग प्रजा को बताने की पूरी कोशिश करते हैं कि हम देवता के सबसे बड़े पुजारी हैं।
अब बड़े महाराज की बात सुनो, एक दिन कहते हैं किसी और को राज गद्दी दिलाना चाहता हूं। मैं उनको राजा बनाना चाहता हूं, जो वर्षों से अपने अधिकारों से वंचित रहे हैं।
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वो देवताओं से तरह-तरह के आशीर्वाद मांग रहे हैं। वो देवता के दरबार में जाते हैं और क्षमा मांगते हैं अपने उन पुराने कार्यों के लिए जो प्रजा हित में नहीं किए गए। फिर उनसे कहते हैं, मुझे राज गद्दी पर विराजमान होने का आशीर्वाद दो। वो देवताओं के समक्ष जा रहे हैं।
बड़े महाराज जिस तरह प्रजा से किए वादों को भूल जाते हैं, उसी तरह देवता से मांगे आशीर्वाद को भी भूल गए। वो एक दिन फिर देवता के दरबार में जाते हैं और उनसे कहते हैं, मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता। एक दिन फिर बहुत सारी प्रतिज्ञा लेते हैं।
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वो चाहते हैं कि प्रजा उनकी ओर देखे और कहे कि चुनाव के बिना ही हम आपको अपना राजा मानते हैं। आओ, आप गद्दी पर विराजमान होकर अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी करो। जब तक आप अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी नहीं करते, प्रजा आपको राजा की गद्दी पर ही बैठाकर रखेगी।
खरगोश बोला, ऐसा करके तो बड़े महाराज हम सभी, ओह… भूल गया, मेरा मतलब है कि प्रजा की सहानुभूति लेना चाहते हैं। मैंने सही कहा न… सहानुभूति शब्द सही है न।
हिरन ने पूछा, वाह… दोस्त सहानुभूति शब्द तो मैं पहली बार सुन रहा हूं।
फुंकनी यंत्र ने कहा, सियासत की बातें कर रहे हो, इस शब्द का तो सबसे पहले ज्ञान होना चाहिए। यहां सहानुभूति, क्षमा, वादा, घोषणा, मुद्दा, धन, यशगान, महिमा मंडन, अधिकारों का दुरुपयोग, सुरक्षा, लालच, भ्रष्ट आचरण, सभा, संवेदना, आंखें फेरना, भूलना-भुलाना, ध्यान नहीं है, क्रोध, हिंसा, दुर्व्यवहार, गिरगिट, घड़ियाल, धोखा, धर्म, जाति, दल बदलना, बागी, बगावत, जांच पर जांच, दोस्ती, दुश्मनी, पक्ष- विपक्ष, तोड़ना, गुटबाजी, अंतर्कलह, भितरघात, भ्रमण, हवाई दौरा, मौन, शांति, दंगा, आंखें पलटना, आंखें दिखाना, भय दिखाना, धमकाना, जुबानी जंग, प्रेम, सौहार्द्र, भाईचारा, इच्छा, अनिच्छा, महत्वकांक्षा, अतिमहत्वकांक्षा, सपने, हित, अहित जैसे बहुत सारे शब्द हैं, जिनका यहां मतलब है। ये सब किसलिए केवल प्रजा को दिखाने, बताने और जताने के लिए हैं।
खरगोश ने कहा, इतने भारी भरकम शब्द हैं सियासत में।
फुंकनी यंत्र ने कहा, ये शब्द दूसरों के सहारे लाभ हासिल करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। सभी के लिए इन शब्दों के मतलब अलग-अलग हैं।
खरगोश ने कहा हिरन भाई, अब कल मिलते हैं, किसी और सियासी बात के साथ।
हिरन ने कहा, ठीक है। यह कहते ही हिरन ने अपने ठिकाने के लिए लंबी छलांगे भर लीं।
* यह काल्पनिक कहानी है, इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।