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21 नवंबर वर्ल्ड टेलीविजन दिवसः बुद्धु बक्से का स्मार्ट होने तक का सफर

न्यूज लाइव रिपोर्ट

बचपन में जिस टेलीविजन को आप देखते थे, वो मेज से हटकर दीवार पर टंग गया है। पहले हम शटर वाले भारीभरकम ब्लैक एंड व्हाइट टीवी को घर का एक महत्वपूर्ण संसाधन मानते थे। पर, अब टेलीविजन की जगह देश दुनिया दिखाने वाले कई और उपकरण आ गए हैं, जिनकी वजह से इसकी अहमियत पहले से थोड़ी कम हो गई है, पर फिर भी यह हर घर में रहता है। बुद्धु बक्सा कहे जाने वाले टीवी को स्मार्ट होना पड़ा है, क्योंकि इसको बदलते वक्त के साथ कदमताल जो करना है। यह स्मार्ट होकर इंटरनेट से जुड़कर लाइव और अपडेट रहता है।

बदलती तकनीकी के साथ-साथ अब टेलीविजन भी नये स्वरूप में है। टेलीविजन इन्टरनेट से जुड़ गया है। टेलीविजन अब भी लोगों की पसंद बना है, हालांकि अब लोग फिल्में, समाचार, धारावाहिक, मनोरंजक कार्यक्रम, समाचार सुनने के लिए इंटरनेट आधारित मोबाइल फोन, लैपटॉप, टैब का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस (World Television Day) है। इस बहाने ही सही टेलीविजन के सफर पर एक नजर डालना तो बनता है-

टेलीविज़न के आविष्कार और विकास में समय-समय पर कई आविष्कारकों का योगदान शामिल रहा है। चलती छवियों को प्रसारित करने के साधन के रूप में टेलीविजन की अवधारणा एक व्यक्ति के काम के बजाय एक क्रमिक विकास है। हालाँकि, टेलीविज़न के शुरुआती विकास में एक प्रमुख व्यक्ति फिलो फ़ार्नस्वर्थ थे।

फिलो फ़ार्नस्वर्थ, एक अमेरिकी अविष्कारक, को अक्सर पहली पूरी तरह कार्यात्मक ऑल-इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजन प्रणाली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। 1927 में, 21 साल की उम्र में, फ़ार्नस्वर्थ ने अपने टेलीविज़न सिस्टम का उपयोग करके पहली छवि प्रसारित की। यह टेलीविजन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अन्य आविष्कारक और योगदानकर्ता थे, जिन्होंने टेलीविजन प्रौद्योगिकी के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति की। इनमें व्लादिमीर ज़्वोरकिन और जॉन लोगी बेयर्ड जैसे आविष्कारक शामिल हैं।

व्लादिमीर ज़्वोरकिन: एक रूसी-अमेरिकी इंजीनियर, ज़्वोरकिन को प्रारंभिक टेलीविजन कैमरा ट्यूब, आइकोनोस्कोप के विकास पर उनके काम के लिए जाना जाता है। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जॉन लोगी बेयर्ड: एक स्कॉटिश आविष्कारक, बेयर्ड को 1920 के दशक में पहली कार्यशील टेलीविजन प्रणाली का प्रदर्शन करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने एक यांत्रिक प्रणाली का उपयोग किया, जो छवियों को प्रसारित करने और प्राप्त करने के लिए घूमने वाली डिस्क पर निर्भर थी।

टेलीविज़न प्रणाली का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 1927 में हुआ, जब फिलो फ़ार्नस्वर्थ ने एक डॉलर चिह्न की छवि प्रसारित की। 1930 के दशक में पहले नियमित टेलीविज़न प्रसारण की शुरुआत के साथ, प्रौद्योगिकी आगे बढ़ती रही।

वर्किंग टीवी के अविष्कार होने के बाद इस 1 दिसंबर 1928 को मीडिया के सामने दिखाया। उस दौरान टीवी ब्लैक एंड व्हाइट होता था। फिर साल 1928 में ही जॉन लोगी बेयर्ड ने कलर टेलीविजन का आविष्कार किया। हालांकि, पब्लिक के लिए कलर में ब्रॉडकास्टिंग साल 1940 में हुई थी।

टेलीविज़न प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति हुई। यांत्रिक प्रणालियों से इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों में परिवर्तन हुआ। 20वीं सदी के मध्य तक, टेलीविजन एक व्यापक और प्रभावशाली माध्यम बन गया, जिसने वैश्विक स्तर पर मनोरंजन, समाचार प्रसार और संचार को बदल दिया। रंगीन टेलीविज़न, रिमोट कंट्रोल और अन्य नवाचारों के विकास ने टेलीविज़न के विकास में योगदान दिया जैसा कि हम आज जानते हैं।

वर्ल्‍ड टेलीविजन डे 

पहला विश्व टेलीविजन फोरम 21 नवंबर 1996 में शुरू हुआ, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ल्‍ड टेलीविजन डे का नाम दिया। इसके बाद से 21 नवंबर को हर साल वर्ल्‍ड टेलीविजन डे मनाया जाता है।

भारत में टेलीविजन पहली बार 15 सितंबर 1959 को यूनेस्को (UNESCO) की मदद से शुरू किया गया था। तब से टेलीविजन उद्योग में प्रौद्योगिकी और समय की प्रगति के साथ परिवर्तन देखा गया है। सबसे पहले, सामुदायिक स्वास्थ्य, यातायात, ट्रैफिक नियम, नागरिकों के कर्तव्यों और अधिकारों जैसे विषयों पर केंद्रित कार्यक्रम सप्ताह में दो बार प्रतिदिन एक घंटे के लिए प्रसारित किए जाते थे।

आकाशवाणी भवन में टीवी का पहला ऑडिटोरियम भवन बनाया गया, जिसका उद्घाटन राष्‍ट्रपति डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद ने किया था। इसके बाद साल 1972 में टीवी की सर्विस मुंबई और अमृतसर पहुंची। 1975 तक देश में टीवी की सेवाएं सात शहरों में शुरू हो गई थी। 1980 तक टीवी देश के हर हिस्से में पहुंच गया था। भारत में पहला कलर्ड टीवी 15 अगस्त 1982 में आया था।

भारत का पहला डेली सोप यानी टीवी सीरियल (India’s first Television Serial) ‘हम लोग’ (Hum log) था। इस सीरियल को फिल्‍म अभिनेता अशोक कुमार ने बनाया था। इस सीरियल में मनोज पाहवा, सीमा पाहवा, दिव्या सेठ शाह, सुषमा सेठ, लवलीन मिश्रा, जयश्री अरोड़ा, राजेश पुरी, विनोद नागपाल, जैसे कई कलाकारों ने महत्‍वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं थीं। इस सीरियल का लास्ट एपिसोड 17 दिसंबर 1985 को टेलीकास्ट हुआ था। इस पॉपुलर टीवी शो के बाद टीवी पर कई अन्‍य और सीरियल्‍स का प्रसारण का भी सिलसिला शुरू हो गया था।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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