
डोईवाला क्षेत्र में बारिश से गेहूं की फसल को नुकसान, एक किसान की आपबीती
किसान उमेद बोरा ने खेतों में भीगे पड़े गेहूं के गट्ठरों की तस्वीरें साझा की हैं, जो इस नुकसान की गंभीरता को दर्शाती हैं
Simlas Grant Wheat Crop Damage 2025 : देहरादून, 2 मई 2025: उत्तराखंड के देहरादून जिले में गेहूं की कटाई के दौरान किसानों के लिए मुसीबत बन गई। सिमलास ग्रांट में बेमौसमी बारिश और तेज हवाओं ने खेतों में कटी और खड़ी गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुँचाया है। स्थानीय किसान उमेद बोरा ने अपने खेतों में भीगे पड़े गेहूं के गट्ठरों की तस्वीरें साझा की हैं, जो इस नुकसान की गंभीरता को दर्शाती हैं।
बारिश का कहर, फसल पर संकट
मई 2025 की शुरुआत में देहरादून में मौसम ने अचानक करवट ली। मौसम विभाग ने बारिश, गरज और तेज हवाओं की चेतावनी जारी की थी। सिमलास ग्रांट, जो देहरादून के डोईवाला ब्लॉक का एक प्रमुख कृषि क्षेत्र है, में गेहूं की कटाई जोरों पर थी। लेकिन लगातार बारिश ने कटाई को ठप कर दिया और कटी फसल भीगने से खराब हो गई (Simlas Grant Wheat Crop Damage 2025)।
वहीं, खेतों में थ्रेसर से लगभग 60 फीसदी फसल से गेहूं और भूसा भी निकाल लिया गया था। गेहूं सुरक्षित रख लिया, पर भूसा और लगभग 40 फीसदी कटा गेहूं खेतों में ही पड़ा है।
उमेद बोरा, जो सिमलास ग्रांट के पूर्व प्रधान एवं उन्नत किसान हैं, ने लगभग 5 बीघा खेत में गेहूं बोया था। वो बताते हैं, “मैंने अपनी पूरी मेहनत इस फसल में लगाई थी। कटाई शुरू हो चुकी थी, और गट्ठर खेतों में रखे थे। लेकिन बारिश ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। गेहूं भीग गया है, और अब न तो मंडी में इसके अच्छे दाम मिलेंगे, न ही इसे बचा पाना आसान है।”
गेहूं काटने के लिए नहीं मिलते श्रमिक, बेहतर मशीनों की कमी
उमेद बताते हैं, आसपास के गांवों में सैकड़ों बीघा तक गेहूं की फसल है। पर, श्रमिकों की कमी की वजह से किसानों को खेत से गेहूं की फसल लेने में देरी हो जाती है। अभी भी दरांती से ही गेहूं काटा जाता है। इसमें समय लगता है। गेहूं काटने की मशीन महंगी है, कम जोत वाले किसान व्यक्तिगत रूप से मशीन नहीं खरीद सकते। उन्होंने सरकार से मांग की, ग्राम स्तर पर महंगे कृषि यंत्र व मशीनें उपलब्ध कराए जाएं।
नुकसान का आकलन
उनका कहना है, सिमलास ग्रांट और आसपास के इलाकों में गेहूं की फसल को 30 से 50% के बीच तक नुकसान हुआ है। फसल पहले से ही तेज हवा में लेट गई थी। खेत में पड़ा भूसा और फसल भींग गए। अगर बारिश और हुई, तो बची-खुची फसल भी बर्बाद हो जाएगी। इससे गेहूं काला पड़ने पर किसी काम का नहीं रहेगा। “
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लागत और लाभ का हिसाब
किसान उमेद बोरा, गेहूं की खेती में लागत और लाभ का हिसाब लगाने से मना करते हैं। वो कहते हैं, छोटी जोत के किसान हिसाब नहीं लगाते। कम जोत वाले किसान सोचते हैं कि पशुओं के लिए भूसा मिल गया और घर में इस्तेमाल के लिए अनाज। एक मोटा अनुमान लगा लीजिए, एक बीघा में औसतन दो से तीन कुंतल गेहूं मिलता है। लागत के लिए बीज से लेकर जुताई, बुवाई, कटाई और थ्रेसिंग के साथ ही खाद, पानी का खर्चा। किसान अपना श्रम नहीं जोड़ता, नहीं तो लागत बहुत ज्यादा हो जाती है।
किसानों की चुनौतियाँ
वो बताते हैं, सिमलास ग्रांट के किसान पहले से ही बढ़ती लागत और मुनाफा नहीं होने से जूझ रहे हैं। इस बारिश ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। उमेद बोरा ने बताया, “खाद, बीज और मजदूरी में हजारों रुपये खर्च हुए। अब नुकसान हुआ, तो मुआवजा ही एकमात्र उम्मीद है। लेकिन पिछले अनुभवों से लगता है कि मुआवजा मिलना या नहीं मिलना बराबर ही है।”
सरकारी सहायता की माँग
किसानों ने जिला प्रशासन और कृषि विभाग से तत्काल सर्वेक्षण और मुआवजे की माँग की है। उमेद बोरा ने कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार नुकसान का आकलन करे और हमें उचित मुआवजा दे। साथ ही, भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ।”