
Pulmonary Aspergillosis: ऋषिकेश, 03 मई, 2025ः अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग ने एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस (ABPA) और क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (CPA) पर एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया। एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने ऑनलाइन प्रतिभाग करते हुए बताया कि ABPA और CPA का अक्सर गलत या कम निदान होता है। उन्होंने चिकित्सकों में जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया, ताकि सटीक निदान से रुग्णता और मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया जा सके। कार्यशाला में प्रोफेसर डॉ. रितेश अग्रवाल (PGIMER, चंडीगढ़) ने ABPA के निदान, उपचार, और ABPA-CPA ओवरलैप के मिथकों पर व्याख्यान दिया।
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंद्रपाल सिंह सहगल (PGIMER, चंडीगढ़) ने CPA के निदान और उपचार पर विस्तृत जानकारी साझा की, जबकि प्रोफेसर डॉ. रुचि दुआ (एम्स, ऋषिकेश) ने भारत में ABPA और CPA के बोझ पर चर्चा की। यह कार्यशाला चिकित्सकों को नवीनतम उपचार प्रोटोकॉल से अवगत कराने और मरीजों की बेहतर देखभाल सुनिश्चित करने के लिए आयोजित की गई। उत्तराखंड में बढ़ते श्वसन रोगों के बीच यह पहल स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
कार्यशाला में संकायाध्यक्ष (रिसर्च) प्रोफेसर शैलेन्द्र शंकर हांडू, पल्मोनरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर गिरीश सिंधवानी, कार्यशाला के सह-अध्यक्ष एवं जनरल मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रविकांत, पल्मोनरी विभाग की प्रोफेसर रुचि दुआ, प्रोफेसर मयंक मिश्रा, एडिशनल प्रोफेसर डॉ. प्रखर शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लोकेश कुमार सैनी आदि ने सहयोग प्रदान किया।
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फेफड़ों का एस्परगिलोसिस: कारण, लक्षण, और प्रकार
पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (Pulmonary Aspergillosis: एक गंभीर फेफड़ों का विकार है, जो एस्परगिलस नामक फंगस के कारण होता है। यह फंगस पर्यावरण में पाया जाता है। अस्थमा, सिस्टिक फाइब्रोसिस, सीओपीडी, या तपेदिक (टीबी) जैसे फेफड़ों के रोगों से पीड़ित लोगों में इसका जोखिम अधिक होता है।
लक्षणों में पुरानी खांसी, खून की खांसी (हेमोप्टाइसिस), वजन घटना, थकान, और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं।
इसके दो प्रमुख प्रकार हैं: एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस (ABPA), जो एस्परगिलस एंटीजन से एलर्जी के कारण होता है और अस्थमा या सिस्टिक फाइब्रोसिस वाले रोगियों में आम है, तथा क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (CPA), जो दीर्घकालिक संक्रमण है और पहले से फेफड़ों की बीमारी वाले रोगियों में देखा जाता है।
हाल ही में एम्स ऋषिकेश की कार्यशाला में इन विकारों पर गहन चर्चा हुई, जिसमें सटीक निदान की ज़रूरत पर बल दिया गया।
निदान, उपचार, और प्रबंधन
पल्मोनरी एस्परगिलोसिस का निदान सीटी स्कैन, रक्त परीक्षण जैसी इमेजिंग विधियों से किया जाता है। उपचार में एंटीफंगल दवाइयाँ या सर्जरी और दोनों शामिल हो सकते हैं।
प्रो. मीनू सिंह ने बताया कि चिकित्सकों में जागरूकता से सही निदान संभव है, जिससे रुग्णता और मृत्यु दर कम हो सकती है। जिन लोगों को फेफड़ों की बीमारी है, उनके लिए नियमित चिकित्सकीय निगरानी ज़रूरी है। समय पर निदान और उपचार से इसको बढ़ने से रोका जा सकता है। उत्तराखंड में, जहाँ श्वसन रोगों की चुनौती बढ़ रही है, एम्स ऋषिकेश जैसे संस्थान ABPA और CPA के प्रबंधन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।