Video: सूर्याधार झील से आगे बढ़कर है एक गांव, जिसकी हैं बहुत सारी कहानियां
सेबूवाला गांव में मछली पालन, कृषि एवं पर्यटन की बहुत सारी संभावनाएं
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
सूर्याधार झील (Suryadhar Lake) एक समय बहुत चर्चा में रही। पर, अभी हम इस झील पर बात नहीं कर रहे हैं। हमारी चर्चा का केंद्र है, इससे करीब ढाई किमी. आगे एक गांव, जिसके बारे में बहुत सारे लोग नहीं जानते। देहरादून जिले का यह छोटा सा गांव है, पर यहां संभावनाएं बड़ी हैं, जिनके आधार पर हम कह सकते हैं, स्वरोजगार, कृषि एवं पर्यटन गतिविधियों को लेकर इसको आदर्श गांव बनाया जा सकता है। इस गांव में तरक्की की बहुत सारी कहानियां हैं, जिनका जिक्र करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तरक्की इन्हीं के इर्द गिर्द और इन्हीं के योगदान से बुनी जा सकती हैं।
जाखन नदी से अंग्रेजों ने निकाली थी भोगपुर नहर
इस गांव को नाम सेबूवाला है, जो देहरादून जिला की सिंधवाल ग्राम पंचायत का हिस्सा है। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे गांव के बीच से होकर बहने वाली जाखन नदी, जो अनुपम नजारा पेश करती है, वो आपको बहुत कम देखने को मिलेगा। यह वही जाखन नदी है, जो सूर्याधार झील का निर्माण करते हुए डोईवाला ब्लाक के कई गांवों की हजारों हेक्टेयर भूमि का सींचती है। जाखन नदी से ही निकली एक धारा भोगपुर नहर है, जिसे अंग्रेजों ने बनाया था। बसंतपुर, भोगपुर होते हुए कभी सड़क के दोनों ओर बहती हुई दिखने वाली यह नहर अब भूमिगत हो गई है। भोगपुर से दो भागों में बंटकर बिशनगढ़, डांडी, बड़कोट माफी, झीलवाला, लिस्टराबाद, घमंडपुर सहित तमाम गांवों के खेतों में सिंचाई इसी नहर से होती है।
सूर्याधार झील से आगे बसंतपुर होते हुए भोगपुर जा रही अंग्रेजों के जमाने में बनाई गई नहर। फोटो- डुगडुगी
मुगलों के जमाने से बसा हुआ गांव !
सेबूवाला गांव को मुगलों के जमाने से बसा हुआ बताया जाता है, पर इस तथ्य के प्रमाण के तौर पर इतना ही कहा जाता है कि मुगलों के जुल्म से तंग आकर उस समय कुछ परिवार दिल्ली से आकर यहां बस गए थे। जिस जगह पर यह गांव है, वहां कभी घना जंगल था और उसमें शेर रहते थे। सैकड़ों वर्ष पहले आए लोगों ने जंगल काटकर रहने के लिए यहां बस्ती बनाई। हो सकता है, तब इस बस्ती को शेरोंवाला कहा जाता हो। बाद में समय के साथ-साथ शेरोंवाला नाम सेबोवाला और फिर सेबूवाला में तब्दील हो गया हो। फिलहाल तो हम यही जानते हैं, टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित पहाड़ की तलहटी में बहने वाली नदी के किनारे बसे गांव का नाम सेबूवाला (Sebuwala) है।
लगभग डेढ़ किमी. पैदल रास्ता
सेबूवाला आने के लिए सबसे पहले सूर्याधार झील पहुंचना होगा और फिर झील की दाईं ओर आगे बढ़ते हुए कंडोली गांव पहुंचेंगे।
कंडोली गडूल ग्राम पंचायत का गांव है, जहां से सेबूवाला और इठारना सहित कई गांवों के लिए पगडंडीनुमा रास्ता है। कंडोली से करीब छह किमी. के कच्चे, संकरे रास्ते पर इठारना जा सकते हैं। कंडोली और सेबूवाला के बच्चे इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए इठारना इंटर कालेज ही जाते हैं।
कंडोली गांव तक कार से पहुंच सकते हैं। यहां से करीब डेढ़ किमी. पैदल चलना पड़ता है। कंडोली से सेबूवाला तक तीखा ढलान है और फिर पुल से जाखन नदी पार करके गांव में पहुंच सकते हैं।
नहीं छोड़ेंगे अपना गांव, यहां खींचा है भविष्य की योजनाओं का खाका
पहले सेबूवाला में पांच-छह परिवार रहते थे, पर अब दो परिवार ही स्थाई तौर पर रहकर खेतीबाड़ी, पशुपालन एवं मत्स्यपालन कर रहे हैं। मेहर सिंह और परिवार के सदस्य यहां से करीब दस किमी. दूर भोगपुर में भी व्यवसाय के सिलसिले में नियमित रूप से आते जाते रहते हैं। उनका कहना है, हमने अपने गांव से पलायन नहीं किया।
यह भी पढ़ें- पलायन क्यों? अपनी ही बेची फसल को दोगुने में खरीदता है किसान
मेहर सिंह बताते हैं, पहले तो जाखन नदी पर पुल भी नहीं था। नदी पार नहीं कर सकते थे, इसलिए बच्चों की पढ़ाई के लिए भोगपुर में रहे, पर गांव से नियमित रूप से संपर्क बनाए रखा। वो अपना गांव नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि यहां स्वरोजगार एवं जैविक कृषि की बहुत सारी संभावनाएं हैं। उन्होंने भविष्य के लिए बहुत सारी योजनाओं का खाका खींचा है, जिनमें गांव को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना प्रमुख रूप से शामिल है।
मछली पालन से सालभर में दो से तीन लाख की बचत
मेहर सिंह ने वर्ष 2006 में यहां एक तालाब से मछली पालन शुरू किया था। इसके लिए मत्स्यपालन विभाग से सहयोग भी मिला था। बीच में बच्चों की शिक्षा के लिए उनको भोगपुर में ही रहना पड़ा, क्योंकि जाखन नदी को प्रतिदिन पार करने की दिक्कत थी। इस वजह से मत्स्यपालन प्रभावित हो गया। पर, बाद में फिर गांव लौटकर उन्होंने मछली पालन फिर से शुरू किया और अब उनके पास चार तालाब हैं, जिनमें से दो में तीन-तीन हजार मछलियां हैं। वहीं दो अन्य तालाब में मरम्मत कार्य चल रहा है, जिनमें लगभग छह हजार मछलियां पालने की क्षमता है।
मेहर सिंह बताते हैं, उन्होंने अमेरिकन कार्प, कॉमन कार्प और रोहू मछलियां पाली हैं। इनका आहार महंगा है और सब्सिडी भी ज्यादा नहीं मिलती। लागत निकालने के बाद भी, उनको सालभर में लगभग दो से तीन लाख रुपये की बचत की संभावना रहती है।
यह भी पढ़ें- 82 साल के ‘युवा’ से सुनिए सवा सौ साल पुराने गांव की कहानी
बहते जल में मछली पालनः जाखन नदी का साफ पानी तालाबों प्रवाहित होता है। मेहर सिंह कहते हैं, उनका मत्स्यपालन ठीक उसी तरह है, जैसे नदी में मछलियां पलती हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि मछलियां उसी तालाब में रहती है, जहां उनको डाला गया है। यहां पानी की कोई कमी नहीं है। उन्होंने तालाब की सुरक्षा के लिए ऊपर जाल भी नहीं बिछाया है। बताते हैं, यहां कोई खतरा नहीं है। चील, बाज जैसे पक्षी यहां नहीं हैं। आज तक कोई ऐसी घटना नहीं हुई कि किसी पक्षी ने मछलियों पर हमला किया हो। साफ पानी के तालाब में तैरती मछलियां आसानी से देख सकते हैं। सर्दियों के इन दिनों में मछलियां सतह पर रहना पसंद करती हैं।
साफ पानी में काई भी नहीं जमती और ऑक्सीजन का स्तर भी बराबर रहता है, इसलिए उनको बतख पालन की जरूरत भी महसूस नहीं हुई। पानी बराबर बदलता रहता है, इसलिए काई भी नहीं जमती।
बताते हैं, मत्स्यपालन विभाग के संपर्क में रहते हैं। किसी रोग की दशा में दवाइयां मिल जाती हैं। मछलियों के मूवमेंट में भी कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने पिछली जुलाई में मछलियों के लगभग तीन हजार बच्चे तालाब में डाले थे, जिनसे एक साल में उत्पादन मिल जाएगा। उनका कहना है, हमारा गांव स्वरोजगार के लिए आदर्श गांव है।
नदी का पानी पाइप में टेप करके खेतों को हराभरा किया
जाखन नदी भले ही गांव के पास से होकर बहती हो, पर यह खेतों से बहुत नीचे है। वहां से पानी को खेतों तक पहुंचाना बहुत आसान नहीं था। ग्रामीणों ने गांव से लगभग दो सौ मीटर पहले उस स्थान पर पानी को टेप किया, जहां नदी का स्तर गांव से ऊंचा है। जहां से पानी टेप किया जा रहा है, वो स्थान गडूल ग्राम सभा का हिस्सा है। नदी ने गडूल और सिंधवाल ग्राम पंचायतों का परिसीमन किया है।
यहां लगभग सात-आठ दशक पहले से पानी टेप किया जा रहा है, जो निरंतर जारी है। गांव की ऊंचाई पर नदी के आरपार तारों से बांधकर बिछाए पाइप देख सकते हैं, जिनमें हर समय गांव तक पानी पहुंचता है।
यह भी पढ़ें- Video: तीस फीट गहराई, आधा शरीर ठंडे पानी में, आठ घंटे काम
यही पानी गूल के माध्यम से खेतों और मछली तालाबों में पहुंच रहा है। जब पानी की जरूरत नहीं होती, तब बंधा लगाकर उसको वापस नदी में ही प्रवाहित कर देते हैं। बहुत शानदार और इंजीनियरिंग का कमाल है, नीचे बहती नदी के ऊपर बिछे पाइप में पानी के बहाव को देखना।….. जारी