करौंदाः औषधीय गुणों से भरपूर और लाजवाब चटकारे
उत्तराखंड के बहुमूल्य उत्पादों की श्रृखंला में आज एक ऐसे जंगली फल के बारे में बताया जा रहा है जो कि खाया तो सभी ने होगा पर जानते कुछ ही लोग होंगे। कुछ समय पहले तक इस जंगली फल को राहगीरों द्वारा खूब आनंद से खाया जाता था। लेकिन आज इस जंगली फल का उपयोग या तो अचार के रूप में, या बाजारों में उपलब्ध इसके विभिन्न उत्पादों के रूप में ही देखा जाता है।
ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा एशिया मूल के Carissa पादप जीनस के अन्तर्गत लगभग 30 से अधिक प्रजातियां भारत में तथा 4 प्रजातियां चीन में पायी जाती है। करौंदा के नाम से जाने वाले इस जंगली फल का वैज्ञानिक नाम Carissa carandos जो कि भारत में पायी जाने वाली मुख्य प्रजाति है तथा इसकी एक अन्य प्रजाति C. opaca जो कि पाकिस्तान में खूब पायी जाती है ओर यह प्रजाति करौंदा नाम से ही जानी जाती है। यह Apocyanaceae कुल के अंतर्गत आते हैं। भारत में हिमालयी राज्यों के शिवालिक पर्वतों में खूब उगने के अलावा यह राजस्थान, गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी पाया जाता है। यह समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर तक की ऊॅचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है। यह सामान्यतः करौंदा नाम से जाना जाता है इसके अलावा इसे डैंग (थाईलैण्ड), करांडा (फिलीपीन्स), कार्जा टेंगा (असम), कोरोम्चा (बंगाल), बंगाल करंट (अंग्रेजी) आदि नामों से भी जाना जाता है।
इसका फल जुलाई से सितम्बर के बीच में उपलब्ध होता है तथा सामान्यतः अचार, जैम, जैली तथा चटनी आदि में उपयोग में लाया जाता है। आयरन तथा विटामिन सी का अच्छा प्राकृतिक स्रोत माने जाने के साथ-साथ विभिन्न शोध पत्रों में इससे अनेकों विशिष्ट औषधीय रासायनिक अवयव निकाले जाने की बात कही गयी है। इसमें टर्पिनोइड्स जो कि मुख्यतः सिस्क्यूटर्पीप्स होते है जैसे कि केरीसोन तथा करिन्डोन नये प्रकार के C31 टर्पिनोइड बताये गये है। इसके अलावा इसमें केरीसोल, लीनालूल, बीटा-केरियोफाइलीन, केरिसिक एसिड, यूर्सोलिक एसिड, केरीनोल, एसकोर्बिक एसिड, लूपिओल तथा बीटा सिटोस्टेरोल आदि पाये जाते है। इसमें अच्छे औषधीय रसायनों के मौजूद होने कारण इसका प्रयोग विभिन्न आयुर्वैदिक औषधियों में भी लिया जाता है जैसे कि मार्मा गुटिका, हरिदया महाकाशाया, काल्कांतका रसा, कशुद्राकर्वान्दा योगा तथा मर्चादि तरी आदि। इसका परम्परागत औषधीय उपयोग प्राचीन काल से ही लिया जाता है। छत्तीसगढ राज्य में वैद्यों द्वारा करौंदा से विभिन्न प्रकार के कैंसर का उपचार किया जाता है। विभिन्न औषधीय रूप में उपयोग होने के साथ-साथ राजस्थान में इसका हरी मिर्च के साथ मिलाकर बनाया जाता है और खाने में खूब पंसद किया जाता है। यह एक अच्छा एपिटाइसस भी है जो कि भूख बढाने हेतु प्रयोग किया जाता है। करौंदा ठंडा तथा एसिडिक होने के कारण गले में खराश, मुंह के अल्सर तथा त्वचा रोग में भी प्रयुक्त किया जाता है।
इसमें पाये जाने वाले विभिन्न औषधीय रसायनों की वजह से यह एंटीकैंसर, एंटी कन्वल्सेन्ट, एंटी ऑक्सीडेंट, एनाल्जेसिक, एंटी इन्फलामेट्री, एंटी अल्सर, एन्थेल्मिंटिक, कार्डियोवेस्कुलर, एंटी डायबेटिक, एंटी पायरेटिक, हिपेटोप्रेटिक्टिव तथा डाइयूरेटिक में प्रभावी होता है। वर्ष 2009 में ट्रोपिकल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में प्रकाशित एक शोध के अनुसार करौंदे की जड़ का एथेनोलिक एक्सट्रेक्ट को अच्छा एंटी कन्वल्सेंट बताया गया है। इसके अलावा विभिन्न शोध पत्रों में इसे अच्छा एंटी माइक्रोबियल तथा एंटी बैक्टीरियल बताया गया है।
विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फल होने के कारण पौषक भी है, इसमें कैलोरी- 364 किलो, प्रोटीन- 02 मिग्रा, वसा- 10ग्राम, कार्बोहाइड्रेटस-67ग्राम, कैल्शियम- 160 मिग्रा, फॉस्फोरस- 60 मिग्रा तथा आयरन- 39 मिग्रा प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है। इस विटामिन में विटामिन ए 1619 आईयू तथा एसकोर्बिक एसिड- 10 मिग्रा प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है। करौंदा का अपना अलग स्वाद तथा औषधीय गुणों के कारण बाजार में अच्छी मांग है जो कि विभिन्न कम्पनियों द्वारा अलग-अलग उत्पादों के रूप में लोगों तक पहुंचाया जाता है। इससे निर्मित अचार की बाजारों में अच्छी कीमत है जो कि लगभग 250 रुपये प्रतिकिलो तक है। इसके अलावा इसे विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में लिया जाता है। उत्तराखंड के इस बहुमूल्य जंगली उत्पाद का विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण कर इसको आगे अत्याधुनिक चिकित्सा विज्ञान से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि प्रदेश की यह बहुमूल्य संपदा केवल जैम, जैली एवं अचार तक ही सीमित ना रहे, बल्कि प्रदेश की आर्थिकी का एक बेहतर विकल्प भी बन सके।