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Uttarakhand Election 2022: AAP को लेकर चिंता में क्यों हैं हरीश रावत

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव अभियान में आम आदमी पार्टी (AAP ) गारंटी के साथ घोषणाएं कर रही है और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) की तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। उन्होंने तो यह तक कह दिया कि AAP को पहचानिए, क्योंकि यह वोट काटने वाली पार्टी है, यदि भाजपा (BJP) को हराना है तो सीधे कांग्रेस से जुड़िए, हमारे पास इनसे बेहतर योजनाएं हैं।
चाहे 18 साल से अधिक आयु की प्रत्येक महिला के खाते में एक-एक हजार रुपये जमा करने की घोषणा हो या फिर फ्री बिजली की गारंटी या नये जिलों की बात हो, AAP के हर चुनावी वादे पर पूर्व सीएम रावत मुखर होकर अपनी बात रख रहे हैं।
भाजपा पर सियासी हमलों के बीच AAP पर उनका फोकस क्यों हो रहा है, इसकी वजह रावत स्वयं अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट में करते हैं। इस पोस्ट का जिक्र करने से पहले कुछ और बातों पर आपका ध्यान दिलाता हूं।
उत्तराखंड में अभी तक मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस ही आमने-सामने रहे हैं। यहां क्षेत्रीय दल बहुत ज्यादा कमाल नहीं कर पाए और न ही प्रदेशभर में चुनाव को लेकर ज्यादा  सक्रिय हैं। पर, AAP की सक्रियता लगातार बढ़ रही है। आज से AAP नेता व दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) उत्तराखंड के चार दिन के दौरे पर हैं।  सिसोदिया अल्मोड़ा, हल्द्वानी, रुद्रपुर व बागेश्वर में संवाद व जनसभाएं करेंगे।
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं AAP संयोजक Arvind Kejriwal उत्तराखंड के चार चुनावी दौरे कर चुके हैं और हर बार बड़ा वादा करते दिल्ली लौटते हैं। वो अपने हर वादे को गारंटी बताते हैं और कहते हैं कि गारंटी देने का काम न तो पिछली सरकारों ने किया और न अपने वादे निभाए। उत्तराखंड में उनकी पार्टी की सरकार बनी तो मुफ्त बिजली दिए जाने, युवाओं को रोज़गार देने और मुफ्त तीर्थ यात्रा कराने की गारंटी देते हैं। AAP कार्यकर्ता हर वादे के लिए गारंटी कार्ड बांट रहे हैं।
दो दिन पहले ही काशीपुर में एक जनसभा में उन्होंने घोषणा कर दी कि उत्तराखंड में AAP की सरकार बनने पर 18 साल से अधिक आयु की हर महिला को प्रत्येक महीने एक हजार रुपये दिए जाएंगे। साथ ही, दावे के साथ उन्होंने यह भी कहा कि वह अपना वादा पूरा करेंगे। अगर नहीं कर पाए तो उनके खिलाफ मुकदमा कर देना। यहीं नहीं केजरीवाल ने उत्तराखंड में सरकार बनने की स्थिति में एक माह के भीतर छह जिले बनाने की बात भी कही। उन्होंने काशीपुर, रानीखेत, डीडीहाट, कोटद्वार, रुड़की और यमुनोत्री को जिला बनाने का वादा किया। राज्य में नये जिले बनाने की मांग लंबे समय से हो रही है।
केजरीवाल ने अपनी घोषणाओं में महिलाओं, बेरोजगार युवाओं, बुजुर्गों को शामिल किया है। रही बात राज्य में नये जिले बनाने की, बार-बार सरकारों में रहे भाजपा और कांग्रेस इस मांग को पूरा नहीं कर पाए। भाजपा नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 2011 में कोटद्वार, यमुनोत्री, डीडीहाट और रानीखेत को जिला बनाने की बात कही थी। पर, एक भी नया जिला नहीं बना। पिछले दिनों डीडीहाट जिले की मांग को लेकर करीब डेढ़ महीने तक आंदोलन चला। काशीपुर और रानीखेत की मांग भी उठती रही है।
अब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की नये जिलों की घोषणा पर प्रतिक्रिया को जान लेते हैं। अमर उजाला में प्रकाशित उनके बयान के अनुसार, उन्होंने 2016 में छह नहीं बल्कि नौ जिले बनाने के लिए काम शुरू कर दिया था। इसके लिए सौ करोड़ के बजट की व्यवस्था भी कर दी थी। इस बजट को विधानसभा के पटल पर रखकर पास भी करा दिया था। रावत खटीमा, गैरसैंण और बीरोंखाल को भी नया जिला बनाने की बात कहते हैं। वो बताते हैं कि जिला पुनर्गठन आयोग की संस्तुतियों के आधार पर वो आगे बढ़े थे।
उनका कहना है कि नरेंद्रनगर को भी जिला बनाने का प्रस्ताव था, पर कुछ तकनीकी कारणों से यह अटक गया था। रावत कहते हैं, दो नई कमिश्नरी अल्मोड़ा और टिहरी बनाने का भी प्रस्ताव था। उनका दावा है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है, तो इस काम को पुनः दो साल में पूरा करेंगे।
अब हम कांग्रेस नेता हरीश रावत के उस सोशल मीडिया पोस्ट पर नजर डालते हैं, जिसमें उन्होंने AAP को लेकर टिप्पणी की है और साथ ही, अपनी चिंता भी जाहिर कर दी। रावत लिखते हैं-
दिल्ली के मुख्यमंत्री जी उत्तराखंड आकर सुर्खियों में आने के लिए एक के बाद एक बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं, इन घोषणाओं का कहीं सर-पैर नहीं है, कोई गणित नहीं है। दिल्ली का बजट हमसे 5 गुना ज्यादा है और वहां अभी ये योजनाएं लागू नहीं हुई हैं, बिजली 200 यूनिट फ्री मिल रही है, साढे़ सात साल से सरकार में हैं और उत्तराखंड में वादे पे वादा धांसे जा रहे हैं।
उन्होंने लिखा- लक्ष्य केवल एक है कि भाजपा से नाराज होकर विपक्ष की तरफ आने वाले मददाता को अपने पास रोकना ताकि भाजपा की जीत सुनिश्चित हो सके। आप पार्टी को पहचानिये क्योंकि ये वोट कटवा हैं, यदि भाजपा को हराना है तो सीधे कांग्रेस से जुड़िये, हमारे पास इनसे बेहतर योजनाएं हैं और हमने वर्ष 2016 से 2017 तक उन योजनाओं को धरती पर उतारकर, आप तक पहुंचाकर देखा है। हम परखे हुये हैं, हमें फिर अवसर दीजिये।
इस पोस्ट में उनकी चिंता साफ दिखती है। बात यह है कि उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सत्ता में रहे हैं। भाजपा कांग्रेस की और कांग्रेस भाजपा की खामियों को जनता के बीच ले जाकर सत्ता तक पहुंचते रहे हैं। इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में AAP घोषणाओं और बड़े बड़े दावों के साथ उत्तराखंड की राजनीति में प्रवेश कर रही है।
दरअसल, हर चुनाव में अधिकतर वोट प्रतिशत भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटता रहा है। इस बार इन दलों के सामने सवाल यह है AAP के हिस्से में किसके वोट आएंगे। हालांकि यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा कि AAP को कितने वोट मिलेंगे या उसके कितने प्रत्याशी चुनाव जीतेंगे। पर पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपनी पोस्ट के माध्यम से चिंता जाहिर कर ही दी है। उनकी यह पोस्ट यह भी बताती है कि AAP की घोषणाएं कांग्रेस के पक्ष में आने वाले वोटों को अपने पक्ष में कर सकती है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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