AnalysisElectionFeaturedPoliticsUttarakhand

Uttarakhand Election 2022: यह भी तो बताओ, कर्ज में दबे उत्तराखंड में नये जिलों के लिए पैसा कहां से आएगा

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए घोषणाएं तो कर रहे हैं, पर यह नहीं बताया जा रहा है कि पहले से ही कर्ज में दबे उत्तराखंड के पास इतना धन कहां से आएगा? एक रिपोर्ट के अनुसार, एक जिला बनाने के लिए राज्य सरकार को 1000 करोड़ रुपये के बजट की आवश्यकता होगी। नये जिले बनाने के लिए राजनीतिक दलों ने कोई खाका जनता के सामने पेश नहीं किया।
जनता की मांग पूरी होनी चाहिए, पर अभी तक राजनीतिक दल सरकारों में रहने के बाद भी नए जिले क्यों नहीं बना पाए ? यह सवाल तो बनता है।
पहले यह जान लेते हैं कि किस राजनीतिक दल ने नये जिले बनाने को लेकर क्या घोषणा की।
कुछ दिन पहले काशीपुर में एक जनसभा में आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने घोषणा की, उत्तराखंड में सरकार बनने की स्थिति में एक माह के भीतर छह जिले बना देंगे। उन्होंने काशीपुर, रानीखेत, डीडीहाट, कोटद्वार, रुड़की और यमुनोत्री को जिला बनाने का वादा किया।केजरीवाल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तराखंड में चार दौरे कर चुके हैं और हर बार नई घोषणा करते हैं। एक माह में छह नये जिले बनाने की गारंटी देने वाले केजरीवाल ने यह नहीं बताया कि जिला बनाने के लिए बजट कहां से आएगा।
भाजपा नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 2011 में कोटद्वार, यमुनोत्री, डीडीहाट और रानीखेत को जिला बनाने की बात कही थी। पर, एक भी नया जिला नहीं बना। पिछले दिनों डीडीहाट जिले की मांग को लेकर करीब डेढ़ महीने तक आंदोलन चला। काशीपुर और रानीखेत की मांग भी उठती रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) तो यहां तक कहते हैं, उन्होंने 2016 में छह नहीं बल्कि नौ जिले बनाने के लिए काम शुरू कर दिया था। इसके लिए सौ करोड़ के बजट की व्यवस्था भी कर दी थी। रावत ने काशीपुर, रानीखेत, डीडीहाट, कोटद्वार, रुड़की, यमुनोत्री, खटीमा, गैरसैंण और बीरोंखाल को नया जिला बनाने की बात कही। वो बताते हैं कि जिला पुनर्गठन आयोग की संस्तुतियों के आधार पर आगे बढ़े थे। हालांकि उत्तराखंड में कांग्रेस ने दो बार पूरे समय सत्ता संभाली, पर वो वर्षों से उठ रही नये जिलों की मांग पूरी नहीं कर पाई।

अब उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में दस नये जिले डीडीहाट, रानीखेत, पंतनगर, काशीपुर, मंदाकिनी, लैंसडौन, रामगंगा, रवांई, प्रतापनगर, नरेंद्रनगर, विकासनगर, चंद्रनगर गैरसैंण बनाने की बात कही है। उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने 180 ब्लाक बनाए जाने को घोषणा पत्र में शामिल किया है।

अमर उजाला की वेबसाइट पर 27 अगस्त 2021 को प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि कैग की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2020 तक उत्तराखंड सरकार  65,982 करोड़ के कर्ज के तले दब चुकी थी। पिछले पांच सालों में कर्ज का यह ग्राफ लगातार बढ़ा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, एक जिला बनाने और उसके लिए प्रशासनिक व्यवस्थाएं जुटाने के लिए 1000 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। यह खर्च बढ़ भी सकता है। जिलों में अफसरों और कर्मचारियों की तैनाती के साथ ही, उनके लिए दफ्तर और आवास बनाने पर भारी भरकम धनराशि खर्च होगी। राज्य के हालात फिलहाल इतने बेहतर नहीं हैं कि तत्काल ये राशि जुटाई जा सके।
एक न्यूज चैनल की 18 दिसंबर की रिपोर्ट में राज्य पर 86 हजार करोड़ का कर्ज होने की जानकारी दी गई है। चैनल की वेबसाइट पर जिला बनाने के लिए जरूरी नियम और बजट के बारे में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के समय में मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद एक निर्णय हुआ था, जिसमें इस बात का उल्लेख है कि जिला बनाने के लिए क्या चाहिए?
एक जिला बनाने के लिए 12 विकास खंड (ब्लॉक) होने चाहिए। इसके अलावा एक जिले को पूरी तरह से स्थापित करने के लिए 300 करोड़ के बजट की व्यवस्था करनी होगी।
कांग्रेस ने दस नए जिले बनाने की घोषणा की है तो 3000 करोड़ की व्यवस्था करनी पड़ेगी। आम आदमी पार्टी ने छह जिले बनाने की घोषणा की है, इस हिसाब से 1800 करोड़ के बजट की आवश्यकता होगी। इन दोनों राजनीतिक पार्टियों ने यह नहीं बताया कि इस बजट की व्यवस्था कहां से होगी?
यहां यह बात ध्यान देने वाली है, जिला बनाने के उक्त नियम उत्तर प्रदेश के समय के हैं। जिला बनाने के लिए उत्तराखंड जैसे विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य में बजट इससे कहीं ज्यादा लगेगा।
न्यूज चैनल की रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में एक भी जिला बनाने की जरूरत क्यों नहीं हुई? बताया गया कि, तहसीलें दर्जनों बनाईं ,लेकिन कई को आज तक पूर्णकालिक तहसीलदार तक नसीब नहीं हुए।
नये जिलों के मामले में भाजपा (BJP) प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक (Madan Kaushik) के हवाले से कहा गया है, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पास घोषणा करने के अलावा कुछ नहीं है, जिले बनाने थे तो हरीश रावत ने अपनी पिछली सरकार में क्यों नहीं बनाए, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में क्यों नए जिले नहीं बनाए ?
वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत कहते हैं, हमारी सरकार आएगी तो हम रुड़की से लेकर डीडीहाट तक दस नए जिलों का गठन करेंगे। इसके लिए बजट की व्यवस्था करने के लिए हुनर चाहिए। हम बंदोबस्त कर लेंगे, उत्तराखंड प्रदेश की मांग है कि नई प्रशासनिक इकाइयों का गठन होना चाहिए।
आप नेता कर्नल अजय कोठियाल (Ajay Kothiyal) का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा केवल कोरी घोषणाएं करती है, आम आदमी पार्टी जो कहती है वो करके दिखाती है। हमने कहा है कि नए जिले बनाएंगे, सत्ता में आने के बाद करके भी दिखा देंगे।
राजनीतिक दल चाहते तो अब तक बन गए होते ये जिले
डीडीहाट जिला की मांग वर्ष 1960 से उठ रही है। वर्ष 2005 में जिले की मांग के लिए आंदोलन हुआ। वर्ष 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने डीडीहाट जिला बनाने की घोषणा की। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सरकार से लोगों को डीडीहाट जिले के गठन की उम्मीद थी। पर, ऐसा नहीं हो पाया। वहीं, रानीखेत जिला की मांग 1955 से उठ रही है। कोटद्वार को जिला बनाने की मांग 60 के दशक से उठ रही है। डॉ. निशंक ने कोटद्वार को भी जिला बनाने की घोषणा की थी। 1960 में उत्तरकाशी जिले का गठन किया गया था। तब यमुनाघाटी में जिला मुख्यालय बनाए जाने की मांग उठी थी। वर्ष 1971 से यमुना घाटी को अलग जनपद बनाने की मांग की जा रही है। पूर्व सीएम डॉ. निशंक ने यमुनोत्री को भी जिला बनाने की घोषणा की थी।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button