Blog LiveFeaturedstudy

हकीकत ए उत्तराखंडः मैं सच में नहीं जानती, नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी को !

धौलखंड नदी की तपती रेत पर खड़े होकर भाबड़ से बान बनाई जा रही है। कड़ी धूप में दिनभर पसीने बहाने के बाद, इतना भी नहीं बचता कि दो वक्त के भोजन का इंतजाम हो जाए। रही बात सरकार की, तो इनका साफ कहना है, जब कुछ मिलता ही नहीं तो फिर मांग कर क्या फायदा। इसलिए वो न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानते हैं और न ही कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी को। उन्होंने तो पुष्कर सिंह धामी का नाम भी नहीं सुना।

जिस क्षेत्र की हम बात कर रहे हैं, वो हरिद्वार जिले में आता है, पर देहरादून शहर से ज्यादा नजदीक है। बुग्गावाला पार करके हजारा टोंगिया में पहुंच सकते हैं, जहां धौलखंड नदी बहती है।

हजारा टोंगिया के निवासियों से मुलाकात के दौरान हमें उनका वर्षों पुराना कुआं देखने को मिला। रेत से भरा यह कुआं, जमीन में कम, जमीन से कई फीट ऊंचा उठा है। बीच नदी में स्थित यह कुआं अब किसी काम का नहीं है।

हजारा टोंगिया की बबली से वरिष्ठ पत्रकार योगेश राणा ने बात की। बबली ने बताया कि वो बान बना रहे हैं। बान यानी चारपाई को बुनने के लिए इस्तेमाल होने वाली रस्सी, जिसको बंडल बनाकर बेचा जाता है। बान बनाने के लिए मोहंड के आसपास के गांवों से भाबड़ लाते हैं, जो प्रति धड़ी सौ रुपये के हिसाब से मिल जाता है। एक धड़ी में पांच किलो होते हैं। गांवों में खेतों के किनारे उगने वाली ऊंची घास को भाबड़ कहते है, इसके रेशे बहुत मजबूत होते हैं।

इन रेशों को एक दूसरे पर लपेटना बहुत मेहनत का काम है। रेशों को चोटी की तरह गूंथते हुए कई मीटर लंबा बान तैयार किया जाता है। हमने रेशों को गूंथने की प्रक्रिया को देखा। बबली बताती हैं कि एक दिन में चार लोग करीब आठ से दस घंटे काम करने के बाद भी एक धड़ी बान नहीं बना पाते। इसमें समय लगता है।

” सौ रुपये की पांच किलो भाबड़ से पूरा एक धड़ी बान नहीं बन पाता। इसमें कुछ भाबड़ खराब भी हो जाती है। बाजार में हमसे एक धड़ी बान सिर्फ 300 रुपये में खरीदा जाता है। पूरे दिन मेहनत करने के बाद सभी खर्चे निकालकर हम चार लोगों को 200 रुपये भी नहीं बचते। आप समझ लो, एक व्यक्ति को 50 रुपये ही बच पाते हैं, इससे क्या होता है,” बबली हमें पूरा गणित बताती हैं।

उनका कहना है, इसके अलावा यहां कुछ और काम नहीं है। थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी है, वो जानवर नहीं छोड़ते।

बबली हर चुनाव में मतदान करती हैं, पर उन्होंने नहीं बताया, पिछली बार किनको वोट दिया था। कहती हैं, मेरे ध्यान में नहीं है। उनका कहना है कि लोग वोट मांगने आते हैं।

क्या आप सरकार का मतलब जानती हैं ?, पर बबली का कहना है, मुझे नहीं पता। क्या आप नरेंद्र मोदी जी को जानती हैं, पर भी उनका जवाब ‘ना’ में था। इसी तरह की प्रतिक्रिया उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बारे में भी दी। न तो वो पुष्कर सिंह धामी को जानती हैं और न ही विधायक को। उनका साफ कहना है, ”न जी, मैं तो किसी को नहीं जानती, न ही मैं घर से बाहर कहीं जाऊं, मुझे घर के काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। घर के बहुत काम हैं, खेती है और पशुओं की देखभाल भी करनी होती है।”

बबली बताती हैं, उनके घर में शौचालय नहीं है। न ही, कोई उनके घर या आसपास शौचालय और आवास की योजना के बारे में बताने पहुंचा।

अगर, सरकार आपके पास आए तो आपकी उनसे क्या मांग होगी ?, के सवाल पर बबली का कहना है, जब कुछ मांगों तो मिलता ही नहीं, फिर मांग कर क्या फायदा।

आजीविका के लिए कड़ी धूप में बान बना रहीं बबली तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का पहुंचना आवश्यक है ? आज तक उनसे सरकार की व्यवस्थाएं किन वजहों से दूर रहीं, इसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह पता तो लगाया जाना चाहिए। महिला सशक्तीकरण के नारों को दीवारों पर लिखने, कागजों पर जगह देने या प्रेजेंटेशन में सजाने से ज्यादा बेहतर होगा कि धरातल पर शत प्रतिशत उतारा जाए।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button