
राम श्रद्धा हैं, राम आस्था हैं, कुछ तो है राम और उनके नाम में
राम श्रद्धा हैं, राम आस्था हैं। राम त्याग हैं, राम तपस्या हैं। राम कहां नहीं हैं, वो कण में भी हैं और पूरे ब्रह्मांड में भी। वो साकार हैं और निराकार भी। राम जीवन हैं और जीवन दर्शन भी। राम पथ हैं और प्रदर्शक भी। राम का जीवन एक कथा ही नहीं है, यह मानव को मानवता के साथ जीने की शैली है।
सत्य और समानता के ध्वजवाहक राम का जीवन एक ऐसा प्रबंधन है, जो हजारों वर्ष पहले भी प्रांसगिक था और आज भी है। हम उनको श्रद्धा से नमन करते हैं। हम कभी कभी बातें करते हुए और कभी मनन चिंतन करते हुए स्वयं से यह सवाल कर बैठते हैं कि राम राज कब आएगा। हम जब भी किसी कष्ट में हुए तो राम को जरूर याद किया। संवेदनाएं जताते हुए कहते हैं, हे राम। हजारों वर्षों पूर्व धरती पर अवतरित राम और उनकी व्यवस्थाओं पर हमें आज भी विश्वास क्यों हैं। आज तो उस समय से ज्यादा भव्यता और सुविधाओं – संसाधनों का समय है। अयोध्या के राजा राम आज भी हमारी श्रद्धा और उम्मीद क्यों हैं। कुछ तो है राम और उनके नाम में।
हम लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में जी रहे हैं। रामराज की सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था- राजतंत्र में भी लोकतंत्र की अवधारणा का आगे बढ़ना है। समानता, सम्मान, समाजवाद और संप्रुभता के पक्षधर राम की गवर्नेंस का तोड़ पूरे विश्व में नहीं मिलता। उनकी गवर्नेंस में हर व्यक्ति के लिए समानभाव न केवल प्रदर्शित होता है, बल्कि आचरण भी करता है।
आज हाशिये पर खड़े हर उस व्यक्ति के मुखमंडल पर आत्मसंतोष और खुशी होनी चाहिए, जैसी राम के व्यवहार से शबरी में देखी गई थी। राम हर द्वेष से परे हैं और उनका राजकाज भी। वह वास्तव में प्रजापालक हैं। वो भाग्य विधाता हैं और आज भी माने जाते हैं। उनके लिए जितने भरत प्यारे हैं, उतने ही श्री हनुमान।
राम चाहते तो रावण की लंका पर राज करते, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। राम उपनिवेशवाद के पक्षधर नहीं थे, वो मानवीय अधिकारों की अविरलता पर विश्वास करते थे। उन्होंने लंका के निवासियों की संप्रुभता को सम्मान दिया और वहीं के निवासी विभीषण को राजा बना दिया।
उन्होंने समाजवाद को आगे बढ़ाया, उन्होंने केवट को सम्मानपूर्वक नाव से नदी पार कराने का मूल्य चुकाया। श्रम का महत्व है, के सिद्धांत को राम ने आदर्श के साथ प्रस्तुत किया।
किसी भी द्वेष से परे श्री राम ने कैकेयी और मंथरा को अपनी माता कौशल्या के समान सम्मान दिया। उन्होंने उनको भी सम्मान दिया, जिनकी वजह से राज्यभिषेक के दिन ही वनवास पर जाना पड़ा। यह प्रसंग राम के महान और मर्यादा पुरुषोत्तम होने का प्रमाण है। राम राज में महिलाओं को सम्मान हमेशा प्राथमिकता में रहा। लंका पर विजयी उनकी सेना ने महिलाओं के सम्मान को बनाए रखा।
राम ने अधिकारों के विकेंद्रीयकरण को आगे बढ़ाया। उन्होंने आत्मनिर्भरता की अवधारणा को स्थापित किया। ऐसा इसलिए कि हर व्यक्ति प्रबंधन की महत्वपूर्ण इकाई हो। उन्होंने श्री हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, अंगद… को अधिकारों के साथ प्रबंधन का हिस्सा बनाया।उनका प्रबंधन चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुटता की रणनीति पर आधारित है। राम ने वनवासियों को एकजुट किया। उनको अन्याय के विरुद्ध और सत्य की जीत के लिए संगठित किया।
उनके प्रबंधन ने वन में ही एक ऐसी सेना का निर्माण कर दिया, जो अन्याय और असत्य के विरुद्ध पूरी ताकत से खड़ी थी। वानरों और भालुओं की सेना से विशाल समुद्र को पार किया और रावण जैसे शक्तिशाली राजा को उसी की धरती पर पराजित कर दिया।
राम अवतार हैं, वो चाहते तो क्षणभर में रावण का वध कर सकते थे। वो पथप्रदर्शक भी हैं, इसलिए उन्होंने मानव का जीवन जीया और जीवन में संघर्षों के समाधान का मार्ग बताया। उन्होंने स्वयं के समक्ष चुनौतिय़ां खड़ी कीं और व्यवस्था प्रबंधन से उन पर विजय हासिल करके दिखाई। राम उद्धारक भी हैं और संहारक भी। राम अहंकार से परे हैं, इसलिए धरती से अहंकारियों को दूर किया।
हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम के राज की कल्पना करते हैं, जिसमें स्वार्थ सिद्धि की जगह सर्वार्थ सिद्धि की बात हो।













