agricultureBlog LiveFeaturedUttarakhandVillage Tour

जब घरों को गाड़ियों में ले जा सकते हो, तो क्या पीठ पर ढोए जाने वाले हल नहीं बना सकते?

पहाड़ में कृषि के लिए आसानी से खेतों तक पहुंचाए जाने वाले सस्ते हल की जरूरतः महिला किसान

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

“मैं अपने मायके से लौट रही थी, शाम हो गई और अभी सिल्ली गांव में ही थी। मुझे अपने दो छोटे बच्चों को लेकर तीन किमी. और चलना था। कुछ सूझ नहीं रहा था, दोनों बच्चों को गोद में लेकर कैसे इतनी दूरी तय करूंगी। आसपास कोई मदद के लिए भी नहीं दिख रहा था। मेरे पास एक बैग था। मैंने छोटे बच्चे को बैग में इस तरह बैठा दिया कि उसको सांस लेने में कोई दिक्कत न हो। दूसरे बेटे को गोद में लेकर बुडोली गांव तक का कठिन रास्ता पार कर लिया। गांव में लोग मुझे बच्चे को बैग में ले जाते हुए देख रहे थे। पर, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, क्योंकि मैंने अपनी समस्या का हल निकाल लिया था।”

“मेरा बेटा बैग से बाहर निकलने को ही तैयार नहीं हो रहा था, उसने तो बैग को झूला समझ लिया था,” उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के बुडोली गांव की रहने वालीं सविता रावत हमारे साथ एक किस्सा साझा कर रही थीं। इस बात के माध्यम से वो हमें बता रही थीं कि जिस तरह मैंने अपनी समस्या का समाधान किया है, क्या सरकार सीढ़ीदार खेतों तक हल पहुंचाने और उसको चलाने की समस्या को दूर नहीं कर सकती।

सविता सवाल उठाती हैं, जब घरों को गाड़ियों में ले जा सकते हैं तो क्या हमारे वैज्ञानिक पीठ पर ढोए जाने वाले हल नहीं बना सकते।

रुद्रप्रयाग के बुडोली गांव में ,संवाद के दौरान कृषि पर बात करते हुए महिला किसान सविता रावत। फोटो- हिकमत सिंह रावत

वो कहती हैं, ” यहां खेतों में हल लगाने के लिए कोई तैयार नहीं है। महिलाएं खेतों तक न तो हल पहुंचा पाती हैं और न ही हल लगा पाती हैं। सरकार को इसके लिए कोई योजना बनानी चाहिए। हर किसी के पास गोशाला नहीं है, चारा बड़ी मुश्किल से जुटता है, इसलिए लोग बैल नहीं पाल सकते।

यह भी पढ़ें- Uttarakhand: दो लीटर दूध बेचने के लिए रैजा देवी का संघर्ष, बाघ और हमारा रास्ता एक ही है
यह भी पढ़ें-सरिता बोलीं, विपदा आए तो मेरी तरह चट्टान बनकर खड़े हो जाओ

मुझे पावर टिलर का नहीं पता। मैं तो इतना जानती हूं कि सरकार के पास बड़े वैज्ञानिक हैं, वो रिमोट से चलने वाले हल, पीठ पर लादकर ले जाने वाले हल, बैग में रखने वाले हल बना सकते हैं, जो सस्ते हों, हर कोई खरीद सके और आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाए जा सकते हों। फसल कटाई के बाद हम काफी थक जाते हैं। हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल होता है हल कौन लगाएगा।”

ट्रैक्टर तो प्लेन (मैदानी क्षेत्रों) की खेती में कारगर हैं, पर पहाड़ के उबड़ खाबड़ सीढ़ी वाले खेतों में नहीं। जब खेतों में हल नहीं लगेगा तो पशुओं के लिए चारा कहां से लाएंगे, सविता रावत कहती हैं।

यह भी पढ़ें-  मुझे ऐसा लगा, जैसे मैंने अपने बक्से से पैसे निकाले हों
यह भी पढ़ें- खेतीबाड़ी पर बात करते हुए गीता की आंखें नम क्यों हो गईं

” कोई चाहता है कि मैं पांच खेत, दस खेतों में अनाज उगाऊं, पर जब वहां तक हल ही नहीं पहुंच पाएगा, वहां हल ही नहीं लगेगा तो खेती कैसे होगी। लोग कह रहे हैं कि पत्थर तोड़ लेंगे पर हल नहीं चलाएंगे। सरकार को इस समस्या की ओर देखना होगा। यह केवल मेरे गांव की बात नहीं है, पहाड़ के हर गांव की समस्या है,” सविता बताती हैं।

क्या कृषि यंत्र महिलाओं के अनुकूल नहीं हैं, पर बुडोली गांव की अंजू देवी कहती हैं, ” महिलाएं खेती में सब काम कर सकती हैं। हम खेत तक हल पहुंचा तो सकते हैं, पर लगा नहीं सकते, क्योंकि हल महिलाओं के अनुकूल नहीं हैं।”

यह भी पढ़ें- बात तरक्की कीः खट-खट वाले ताना बाना से बदल रहा इन महिलाओं का जीवन
यह भी पढ़ें- हम आपको “राम की शबरी” से मिलवाते हैं

इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कांति कहती हैं, “आप हिसाब लगा लो, हल लगाने वाले एक दिन की सात सौ रुपये दिहाड़ी लेते हैं। तीन दिन में इक्कीस सौ रुपये हो गए, पर इन खेतों में कठिन मेहनत के बाद भी हजार रुपये का भी अनाज नहीं मिलेगा तो क्या होगा। लंगूर, बंदर, सूअर कुछ भी नहीं छोड़ रहे। हालत यह है कि अनाज बाजार से खरीदना पड़ता है।”

वो कहती हैं, “हमारे गांव और पास में ही सिमली में पावर टिलर भी हैं। मेरे मायके बावई में स्वयं सहायता समूहों को पावर टिलर मिला है। इनसे खेती की जा रही है। महिलाएं भी खेतों में पावर टिलर चला रही हैं।”

रुद्रप्रयाग जिला के बुडोली गांव के एक घर में महिलाओं से कृषि पर चर्चा की गई। फोटो- हिकमत सिंह रावत

कांति का कहना है, “हल वालों के लिए अपने बैलों को पालन बड़ी चुनौती है। वो उनकी सालभर सेवा करते हैं, उनके लिए चारा जुटाते हैं। बैलों को गुड़, तेल, अनाज खिलाना पड़ता है। उनकी अपनी समस्या है। हल लगाने वाले दिहाड़ी बढ़ाने की बात कह रहे हैं, किसान पैसा बढ़ाने से मना कर रहे हैं। पहले जिन लोगों के पास काम नहीं था, वो खेतों में हल लगाते थे।”

दरअसल, हो यह रहा है, पहाड़ के लिए कृषि यंत्रों को डिजाइन करते समय उनकी उपयोगकर्ता महिला कृषकों से सुझाव लिए जाने चाहिए, ताकि उनसे यह पता चल सके कि पहाड़ के विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले खेतों में उनके समक्ष क्या समस्याएं आती हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड में 64 प्रतिशत महिलाएं अपनी भूमि पर कृषि करती हैं, जबकि 8.84 प्रतिशत महिलाएं खेतों में श्रमिकों के रूप में कार्य कर रही हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में पुरुषों के रोजगार के लिए घरों से दूर जाने की वजह से कृषि कार्य में महिलाओं की जिम्मेदारी बढ़ गई। पर्वतीय जिलों में विषम भौगोलिक परिस्थितियों में कृषि आसान कार्य नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भूमि, प्रौद्योगिकी और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच हो, तो अन्य लोगों के अलावा, कृषि उपज में 20-30 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, इस प्रकार खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान होता है। अधिकतर विकासशील देशों में महिलाएं लगभग 60-70 प्रतिशत खाद्य उत्पादन करती हैं।

देहरादून के भोगपुर क्षेत्र के पास एक किसान खेत में इस्तेमाल के बाद पावर वीडर की सफाई करते हुए। यह फोटो जुलाई 2021 का है। फाइल फोटो- राजेश पांडेय

“पहाड़ में खेती के लिए पावर टिलर (Power tiller) और पावर वीडर (power weeder) के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से खरीदारी पर सब्सिडी दी जा रही है। यह अच्छी बात है। पर, इन यंत्रों को पहाड़ के उन खेतों तक कैसे पहुंचाया जाए, जो सड़क से काफी दूर हैं, यानी जिन खेतों तक पहुंचने में काफी ऊँचाई तक जाना होता है या फिर काफी नीचे ढलान तक, यह एक सवाल है। ये उतने हल्के भी नहीं होते, जिनको कोई एक व्यक्ति अकेले दूर के खेतों तक पहुंचा सके। महिलाओं के लिए इनको खेत तक पहुंचाना मुश्किल होगा,” सामाजिक कार्यकर्ता हिकमत सिंह रावत कहते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार नार्दर्न गैजेट के संपादक एसएमए काजमी का कहना है, “पहाड़ में महिला कृषकों के लिए खेतों तक हल पहुंचाना मुश्किल होता है। यह बात सही है, पहाड़ की कृषि में महिलाओं का सबसे ज्यादा योगदान होने के बाद भी अधिकतर कृषि यंत्र उनकी सुविधा के अनुसार नहीं होते। कृषि यंत्रों को डिजाइन करने से पहले महिलाओं के सुझाव जरूर लिए जाने चाहिए, जबकि ऐसा कम ही होता है, जो कि चिंताजनक बात है। पावर टिलर व पावर वीडर खेती में इस्तेमाल हो रहे हैं, पर इनके लिए ईंधन की आवश्यकता होती है। पहाड़ के कई दूरस्थ इलाकों से पेट्रोल पंप बहुत दूर हैं। वहां से बड़ी मात्रा में ईंधन खरीदना, उसको ट्रांसपोर्ट व स्टोरेज करना ग्रामीणों के लिए समस्या है। इसका खर्च अलग से वहन करना होता है। ईंधन के दाम बढ़ने से फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी।”

“सरकार को चाहिए कि पर्वतीय इलाकों में आसानी से खेतों तक ले जाए जाने वाले, सस्ते दाम पर मिलने वाले कृषि यंत्रों को डिजाइन कराए। इससे महिला किसानों को सुविधा होगी, वहीं खेती का क्षेत्रफल बढ़ने की संभावना भी होगी, ” एसएमए काजमी कहते हैं।

हम यहां रहते हैं-

 

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button