
मंडुवे और झंगोरे की नमकीन से उद्यमिता की राह पर बड़ासी गांव की महिलाएं
बड़ासी गांव की महिलाओं को आईडीबीआई व भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान से मिला भरपूर सहयोग
राजेश पांडेय। डोईवाला
सरिता पंवार स्वयं सहायता समूह नई किरण से जुड़ी हैं और महिलाओं को आत्मनिर्भरता के लिए उद्यमिता से जुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। नई किरण समूह से जुड़ी छह महिलाओं ने स्थानीय संसाधनों पर आधारित उत्पाद बनाने के लिए लघु उद्यम की शुरुआत की है।
महिलाएं रोजाना गांव के एक भवन में लगी मशीनों से मंडुवा, पोहा, मूंगफली और झंगोरा की नमकीन बनाती हैं। ट्रेनिंग के बाद पांच माह से चल रहा उद्यम सफल हो रहा है। प्रतिमाह लगभग पांच से छह हजार रुपये प्रत्येक महिला को बचत के रूप में मिल जाते हैं।

रविवार दो मार्च 2025 को ग्राम यात्री मोहित उनियाल के साथ हम भारत के लोग संवाद कार्यक्रम में सरिता बताती हैं, ” हम प्रतिदिन नमकीन और मंडुवा के बिस्किट बनाते हैं। उत्पादों की मार्केटिंग का जिम्मा उनके पास है। वर्तमान में हम हिलांस के लिए उत्पाद बना रहे हैं। परेड ग्राउंड में हमने स्टाल लगाया है। मंडुवा, झंगोरा से बने उत्पादों की डिमांड है। ये उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बेहतर हैं।”
मंडुवा एक पौष्टिक अनाज है जो कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर होता है। यह पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है और इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में किया जाता है। झंगोरा भी एक पौष्टिक अनाज है जो प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है। यह आसानी से पच जाता है और मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है।

बड़ासी गांव देहरादून शहर से लगभग बीस किमी. की दूरी पर है। गांव के सबसे आखिरी हिस्से में स्वयं सहायता समूह नई किरण की सदस्यों ने एक कमरे में लघु उद्यम लगाया है। यहां नमकीन बनाने, नमकीन ड्राय करने, बिस्किट बनाने की यूनिट लगाई गई है। यह यूनिट लगभग ढाई लाख रुपये लागत की है।
सरिता बताती हैं, “कुछ माह पहले तक महिलाएं घर के कामकाज, पशुपालन में ही व्यस्त रहती थीं। इस तरह के किसी उद्यम से महिलाएं नहीं जुड़ी थीं। समूह से जुड़ने के बाद, हमें आईडीबीआई के गिरधर सिंह बिष्ट मिले, जो महिलाओं के समूहों को नमकीन बनाने की ट्रेनिंग दिलाते हैं। आईडीबीआई के सहयोग से हमें भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद (Entrepreneurship Development Institute of India, Ahmadabad- EDII) से नमकीन बनाने की यूनिट मिली। आईडीबीआई ने हमें नमकीन बनाने का 25 दिन का प्रशिक्षण दिया। बड़ासी की 40 महिलाओं ने प्रशिक्षण हासिल किया। छह महिलाएं ही इस लघु उद्यम से जुड़ीं। हमारे लिए सबसे राहत की बात यह है कि हमें इस पूरी यूनिट का कोई पैसा नहीं देना पड़ा। शुरुआत में नमकीन बनाने का कच्चा माल भी बैंक की तरफ से मिला।”

समूह के बनाए उत्पादों की मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभाल रहीं सरिता REAP Project (Rural Enterprise Acceleration Project) ग्रुप मोबिलाइज़र पद पर हैं। उनका कार्य महिला समूहों को स्थानीय संसाधनों पर आधारित आजीविका के लिए प्रोत्साहित करना एवं उनको सहयोग प्रदान करना है। बताती हैं, “परियोजना समूहों के उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराने की काम करती हैं। इस यूनिट में हम स्थानीय रूप से मिलने वाले मंडुवा, झंगोरा के उत्पादों पर फोकस कर रहे हैं। यहां परियोजना से 735 महिलाएं जुड़ी हैं। मैं प्रतिदिन महिलाओं से मिलती हूं।”
“महिलाएं प्रतिदिन यूनिट पर आकर लगभग नौ से दस किलो नमकीन बनाती हैं। बिस्किट भी बनाए जाते हैं। हम दूसरे दिन ये सभी उत्पाद बिक्री कर देते हैं। हमारे पास स्थानीय स्तर पर मिलने वाले खाद्य पदार्थों, खासकर मिलेट से बने उत्पादों का बाजार उपलब्ध है,” सरिता बताती हैं।
“देहरादून के परेड मैदान में लगने वाले मेलों में हमारे उत्पादों के स्टॉल लगते हैं। महिलाएं हर्बल कलर, कैंडिल भी बनाती हैं, जिनकी हम मार्केटिंग करते हैं,” सरिता पंवार ने बताया।
समूह के सदस्य पूनम मनवाल कहती हैं, “अच्छा लगता है, साथ मिलकर हम नमकीन बिस्किट बनाते हैं। हम बहुत खुश हैं।”
नई किरण स्वयं सहायता समूह की सदस्य ममता सोलंकी बताती हैं, “हमने पहले ट्रेनिंग ली और फिर काम शुरू कर दिया। पहले तो हमें लगा कि ट्रेनिंग हासिल करने के बाद कुछ नहीं होगा। बस सर्टिफिकेट मिल जाएगा। पर, ट्रेनिंग के बाद यूनिट स्थापित होना और फिर अपने ही गांव में नमकीन, बिस्किट बनाकर आय हासिल करना, हमारे लिए बहुत खुशी की बात है।”
संगीता मनवाल बताती हैं, “हम प्रशिक्षण प्राप्त करके इस यूनिट में निरंतर नमकीन और बिस्किट बना रहे हैं।”
अनिता मनवाल, जो ग्राम संगठन की अध्यक्ष हैं, का कहना है “समूह ने हमें कुछ सीखने और कुछ करने की दिशा दिखाई। हम आत्मनिर्भर हैं। हमें सभी को अपने परिवारों से बहुत सहयोग मिल रहा है।”
बड़ासी निवासी एवं सामाजिक सरोकारों के लिए प्रयासरत आनंद मनवाल बताते हैं, “महिलाओं को उद्यमिता से जोड़ना शानदार पहल है। सरकार इस दिशा में पहल करके पहाड़ के दूरस्थ गांवों से पलायन पर रोक लगा सकती है।”
ग्राम यात्री मोहित उनियाल का कहना है, “लघु उद्योग सशक्तीकरण का बेहतर माध्यम हैं, पर इनको सरकार से सहयोग मिलना अत्यंत आवश्यक है। पहाड़ के उत्पादों को वैल्यू एडिशन के साथ बाजार तक पहुंचाना होगा। जैसे कि मंडुवे और झंगोरे का इस्तेमाल नमकीन व बिस्किट बनाने में किया जा रहा है, यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी पहल है।”
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