Analysis

हींग बहुपयोगी और विशिष्ट खुशबू से है परिपूर्ण

 

अपनी अदभुत खुशबू के लिये प्रसिद्ध हींग को शायद ही कोई न जानता हो। हींग नाम लेते ही एक अलग सी महक स्वतः ही इसकी पहचान का अहसास करा देती है। इसी वजह से हींग अपने परिचय का मोहताज नहीं है।

Umbelifrea कुल का पौधा Ferula asafoetida को ही हींग के नाम से जाना जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में ही हींग को अनेकों भाषाओ में

डॉ. राजेंद्र डोभाल, महानिदेशक -UCOST उत्तराखण्ड.

अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे कि हिन्दी में हींग, कन्नड़ में हींगू, तेलगू में इंगुवा, तमिल में पेरू-गयान, मल्यालम में कयाम, अंग्रेजी में डेविल्स डंग आदि।

सम्पूर्ण विश्वभर में हींग की लगभग 170 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से लगभग 60 प्रजातियां केवल एशिया में जैसे – ईराक, तुर्की, भारत, अफगानिस्तान व ईरान तथा इसके अलावा यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में भी पायी जाती हैं। पौधे से निकलने वाले दूधिया द्रव्य (latex) को ही हींग के रूप में एकत्रित किया जाता है। हींग के पौधे का उत्पादन भारत में कश्मीर तथा उच्च हिमालयी क्षेत्रों जैसे कि हिमाचल तथा उत्तराखण्ड में होता है। हींग सामान्यतः 2,200 मीटर (समुद्र तल से) की ऊँचाई तक पाया जाता है। उत्तराखण्ड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लोगों द्वारा हींग की सीमित खेती कर स्थानीय बाजारों तथा शहरों तक पहुंचाया जाता है।

मुख्य रूप से हींग को मसालों की श्रेणी में रखा जाता है जिस वजह से इसे खाने को स्वादिष्ट बनाने में उपयोग किया जाता है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में हींग का उपयोग खाने में विशेष रूप से किया जाता है क्योंकि हींग गर्मी प्रदान करने तथा भोजन की पाचकता को बढ़ाने में उपयोगी है। इसमें उपस्थित विभिन्न रासायनिक अवयवों के कारण यह औषधीय गुणों से भरपूर है तथा परम्परागत रूप से

हींग का पौधा !

ही घरेलू उपचार में प्रयोग किया जाता है। अफगानिस्तान में हींग को गर्म पानी में एक्सट्रेक्स कर अल्सर, सूखी खांसी तथा हिस्टेरिया के उपचार हेतु प्रयोग में लाया जाता है। भारत में भी हींग के परम्परागत रूप से ऐसिडिटी तथा क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के उपचार में प्रयोग किया जाता है।

विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित हींग पर हुये शोध के अनुसार हींग में 40 – 64 प्रतिशत रेसिन जिसमें कि फेरूलिक एसिड, फेरूलसिनेइक एसिड, अम्बेल लाईफेरोन, एसारेसिनोटिनोलस, फर्नेफेरोलस ए, बी, सी आदि, 25 प्रतिशत गम जिसमें ग्लूकोस, गेलेक्टोस, 1 एरोबिनोस, रेम्नोस तथा ग्लूकाउरोनिक एसिड तथा 3-17 प्रतिशत वोलेटाइल ऑयल जिसमें डाईसल्फाईड्स मुख्य रूप से तथा 2 ब्यूटाइल प्रोपेनाइल डाइसल्फाइड आदि पाये जाते हैं। इसके अलावा हींग प्राकृतिक पोषक तत्वों से भरपूर है, इसमें कैल्शियम 690 मि0ग्रा0, फास्फोरस 50 मि0ग्रा0, आयरन 39.40 मि0ग्रा0, मैग्निशयम 80 मि0ग्रा0, मैगनीज 1.12 मि0ग्रा0, कॉपर 0.43 मि0ग्रा0 तथा जिंक 0.83 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम में पाये जाते हैं।

वर्ष 2014 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार हींग से दो प्रकार के इसेन्सियल ऑयल निकाले जाते हैं। एक ईरानी जो कि एंटी फंगल तथा दूसरा पठानी जिसको अच्छा एंटी बैक्टीरियल बताया गया है। एक अन्य शोध में हींग में उपस्थित फेरूल्सिनेइक एसिड को ब्लड में ग्लूकोस लेवल करने हेतु हेतु उपयोगी पाया गया जिस वजह से हींग का सेवन मधुमेह में किया जा सकता है। इसके अलावा अनेकों शोध पत्रों में हींग को एंटीस्पास्मोडिक,

हींग खाने को सुपाच्य बनाता है !

न्यूरोप्रोटेक्टिव, मैमोरीइनहान्सर, गेस्टिक प्रोटेक्टिव, अस्थमेटिक, डाइजेस्टिव तथा ब्लड में कोलेस्टेरोल की मात्रा कम करने हेतु पाया जाता है। वर्ष 2016 में जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल एण्ड कॉम्पलिमेंट्री मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र में हींग पर लगभग सभी शोधों को संकलित कर हींग को न्यूरोप्रोटेक्टिव, मैमोरी इंहान्सर, डाईजेस्टिव एन्जाइम, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी स्पास्मोडिक, हाइपोटेन्सिव, हिपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीमाईक्रोवियल, एंटीकैंसर तथाप एंटीओबेसिटी एक्टिव बताया गया है।

सम्पूर्ण विश्व में भारत में ही हींग की सबसे ज्याद मांग है तथा विश्वभर को हींग का बाजार अफगानिस्तान तथा ईरान द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। हींग की मांग मसालों के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधीय बाजार में भी है। हींग को अन्य रूप से ऑयल के रूप में भी विभिन्न ऑयल उद्योग द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। कच्चे हींग को मसालों के अलावा विभिन्न हेल्थकेयर पदार्थों में उपयोग किया जाता है। बाजार में हींग गोली तथा हींग पेड़ा आदि व्यवसायिक रूप में उपलब्ध है जिनका भारतीय बाजारों में मूल्य लगभग 55 से 60 रूपये प्रति 100 ग्राम तक है। इसके अलावा हींग को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विभिन्न नामों से अच्छी कीमत पर बेचा जाता है।

भारत देश विश्वभर में मसालों के लिये विषेश रूप से जाना जाता है तथा देश के अन्दर मसालों का एक बहुत बड़ा बाजार है। अतः प्रदेश में हींग की खेती को एक अलग स्थान देकर आर्थिकी का एक विकल्प बनाया जा सकता है। साथ ही हींग के विभिन्न औषधीय गुणों को देखते हुये प्रदेश में होने वाली हींग की खेती का वृहद वैज्ञानिक विश्लेषण करने की आवश्यक्ता है।

 

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button