तो ‘निर्’ भय से कह मैं तेरी हूँ,
‘अ’ज्ञान बनादे मुझको तेरा, ज्ञान है मुझको मेरी हूँ
तो ‘निर्’ भय से कह मैं तेरी हूँ, और ‘अ’ भय से कह मैं तेरी हूँ
तू सन्नाटे सा चिल्लाता है, मैं आँधी होकर भी मूक हूँ
हाय जिस किरण पे चलता तू, वो छाँव उपजती धूप हूँ
एक प्रत्युत्तर की आशा में, मेरी वाणी सिंघनाद भरती है
‘मेरी प्रियंवदा” सुनने को ये प्रियतम प्रियतम करती है
अभिसारयुक्त कर तनमन को, समर्पित तुझको दे रई हूँ
तो ‘निर्’ भय से कह मैं तेरी हूँ, और ‘अ’ भय से कह मैं तेरी हूँ
रो कर दिनरात मेरे उच्छवास, पीड़ा से गहरे हो गए हैं
शलभों से जलके प्रेमभाव, मृत्यु में गहरी सो गए हैं
पत्थर सा निष्क्रिय नहीं है प्रेम, हृदय का विक्रय नहीं ह प्रेम
फिर क्यों जीवित मानुस सा, तेरा सक्रिय नहीं है प्रेम
मात्र इस जन्म में दुर्भाग्य से, भाग्य की हेरा फेरी हूँ
तो ‘निर्’ भय से कह मैं तेरी हूँ, और ‘अ’ भय से कह मैं तेरी हूँ