Creativity

तितलियों का वैलेंटाइन !

सोनिया बहुखंडी

अचानक कई रंगों की तितलियां उड़ती है, इस प्यार भरे मौसम में… ख्याल धूप से सुलगने लगते हैं और हवा पागलपन से फड़फड़ाती है। पहाड़ आँखें तिरछी करके बगल के पहाड़ को प्यार से देखते हैं. नदियों का पहला सहवास पर्वतों के पैरों को सहला के शुरू होता है।

लेखक एवं कवि सोनिया बहुखंडी

रात में तारों की जंगली फसल उग आती है आसमान में और मैं चाँद का स्विच ऑन कर देती हूँ। ये इक पुरानी याद है, सिवाज रीगल की सबसे पुरानी शराब की तरह जिसका नशा आज तक हावी है, उतरता ही नहीं। ठीक 18 साल पुरानी शराब, जो मेरी होते हुए भी मेरे पास नहीं, जो अचानक बारिश के दिनों में मिली मुझे और ठण्ड तक मुझ पर काबू कर लिया।

इरा मुझे हॉस्टल में एक ग़ज़ल की तरह मिली थी, जिसे डार्क रेड लिपस्टिक बहुत पसंद थी उसके गोरे रंग पर फबती भी बहुत थी। अक्सर उसके जैसी तितलियों से भी सुन्दर लड़कियां अकेले में फायर शब्दों से खेलती थे…. जो मुझ जैसी गंवई लड़की को कम समझ आती थी। ऐसा कुछ था भी नहीं मुझमे ख़ास की वे शहरी तितलियां मुझे समूह में शामिल करती। ये नब्बे का दशक था जब गूगल, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया नहीं थे। लड़के याहू मैसेंजर में कुछ वैसी … बातें करते थे, कुछ लड़कियां मजे लेती थी, जो पर घंटे 30 रुपये दे सकती थी। मेरी अंग्रेजी की की फीस माफ़ थी इसलिए मैं मैसेंजर भी नहीं ज्वाइन कर पाई। अभी उत्तराखंड राज्य अलग नहीं हुआ था, और ना भुला था वह रामपुर तिराहा का काला दिवस जिसमे आंदोलनकारियों को बर्बर तरीके से मारा गया और औरतों की इज़्ज़त को बड़े समाजवादी तरीके से लूटा गया। पर जिस सन में मैं हॉस्टल गई…. राज्य के अलग होने के उदघोष होने लगे थे, पर सोलह के वसन्त में मैं कुछ कविताओं में ही उलझी थी, जो हॉस्टल के कॉमन रूम में बर्फ सी पिघलती थीं। सोचा था कि प्रेम से हटकर फायर पर भी कलम की आग लगे पर ये वो दौर था जब मुझे इसके मायने नहीं ज्ञात थे, क्या मालूम था ये वह चाबुक थी जो पुरुष की मानसिकता और कुछ पुराने ख्यालों टीचर्स को चुभती थीं। तितलियों के एक दूसरे को दिए गए लव बाइट्स की आग उनके गर्दन पर होती थी। ये आग ब्लॉक हॉलिडे में कुछ दिनों के लिए बुझ जाती। पर सर्दियों के जाते ही रंग फूटते। और नहा जाते सब। एक दिन वैलेंटाइन में मुझे भी पार्टी का ऑफर मिला। और मैं मानो ख़ुशी से फूली ना समाई। एक सुन्दर सा ड्रेस और एक गहरे रंग की लिपस्टिक…. जब मैं पहुँची तो शाम शबाब पे थी कुछ लड़के भी और लड़कियां भी।

बहुत दिनों से मधुकर मुझे कुछ कहना चाहता था। आज बिल्कुल सही दिन था, उसके दोस्त चिल्लाये मधु अनु आ गई। वो आवाज मुझ तक भी पहुँची थी। अचानक लाइट चली गई। उन दिनों जेनेरेटर होना मतलब घर में हाथी बाँधने सा था वैसे भी ये मधुकर का ही घर था, जहाँ सभी पार्टी एन्जॉय कर रहे थे। लाइट जाने से सबके मुँह में कंकड़ आया, मजा ख़राब हो गया। अँधेरे में कोई बोला की आज 8 घंटे की बिजली कटौती है। ohhhhhhhhh सभी बोले मधु और उसके दोस्त कैंडल लाने गए की अचानक किसी ने मुझे गले लगाया, और कहा “बी माय वैलेंटाइन्स” मैं कुछ कहती की

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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