Creativity
कब टूटेंगी ये वर्जनायें
कब टूटेंगी ये वर्जनायें
जो चस्पा कर दी गयी हैं उसके जन्म के साथ
जाने किसने
क्या
जब इस मिथक से हटकर कुछ करने की सोचती हैं
हममें से ही कुछ तो हममें से ही कुछ उसे
टटोलती हैं शक-ओ-सुबह से!
मन में एक लडखड़ाता सा विश्वास
या यूं कहें अविश्वास लिए
कि- क्या ये कर पायेगी
तब ये नहीं हो पाता हमसे कि
हम सब साथ दें चल पड़ें अपना नहीं तो
उसका ही साथ दें जो कर रही है ये प्रयास कि
टूटे वो वर्जनायें
जिसे हम अब और नहीं ढो सकते।
हाँ ढोना ही नहीं चाहते।
- अनीता मैठाणी