जलवायु व समुद्रतल से ऊंचाई के आधार पर फलों के पौधों का चयन करें। 1200 से 1600 मीटर के ऊंचाई वाले स्थानों में आडू,प्लम ,खुबानी के पौधे रोपें। 1600 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में आड़ू, प्लम, खुबानी, नाशपाती व अखरोट के पौधे लगाएं।
सेब उत्पादन के लिए उत्तराखंड के अधिक ऊंचाई वाले उत्तरी भाग जो 30 डिग्री उत्तरीय अक्षांश (North latitude) से ऊपर हों (जनपद उत्तरकाशी एवं टिहरी गढ़वाल, देहरादून के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र) जो हिमाचल प्रदेश के पास हैं या 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र।
उत्तराखंड भौगोलिक रूप से temperate zone नहीं है। उत्तराखंड राज्य 28 – 31 डिग्री उत्तरीय अक्षांश पर है जबकि हिमाचल प्रदेश 30 – 33 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर स्थित है।
हिमाचल प्रदेश में जितनी ठंड 1500 मीटर पर पड़ती है, उत्तराखंड में उतनी ही ठंड 2000 मीटर की ऊंचाई पर पड़ती है। यहां अब उतनी ठंड नहीं मिल पाती है, जितनी सेब के पौधों के लिए आवश्यक है।
जहां पर पूर्व में सेब के बाग लगे हों, उन स्थानों में सेब के नये बाग लगाने में सफलता नहीं मिलती है। उन स्थानों पर पर अखरोट व नाशपाती के फल पौधे रोपें।
भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण-
फलदार पौधे पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में लगाए जा सकते हैं। परन्तु जीवाँशयुक्त बलुई दोमट भूमि, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो, सर्वोत्तम रहती है।
जिस भूमि में उद्यान लगाना है, उसका मृदा परीक्षण अवश्य कराएं। जिससे मृदा में कार्बन की मात्रा , पीएच मान (पावर ऑफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन ) तथा चयनित भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।
पीएच मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है। यह पौधों के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। यदि मिट्टी का पीएच मान कम (अम्लीय) है तो मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलाएं।
यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय) है, तो मिट्टी में कैल्शियम सल्फेट (जिप्सम) मिलाएं।
भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है। साथ ही, हानिकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है। मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अधिकतर फल पौधों के लिए 5.5 – 7.5 के पीएच मान की भूमि उपयुक्त रहती है।
अच्छी उपज के लिए मिट्टी में जैविक/जीवांश कार्बन 0.8 तक होना चाहिए, लेकिन अधिकतर स्थानों में यह 0.25 – 0.35 प्रतिशत ही पाया जाता है।
कार्बन पदार्थ कृषि के लिए बहुत लाभकारी है, क्योंकि यह भूमि को सामान्य बनाए रखता है। यह मिट्टी को ऊसर, बंजर, अम्लीय या क्षारीय होने से बचाता है। जमीन में इसकी मात्रा अधिक होने से मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक ताकत बढ़ जाती है तथा इसकी संरचना भी बेहतर हो जाती है।
मृदा में जैविक कार्बन का स्तर बढ़ाने के लिए जंगल में पेड़ों के नीचे की ऊपरी सतह की मिट्टी व गोबर/ कम्पोस्ट खाद का प्रयोग अधिक करें।
फलों की किस्मों का चयन-
आडू़ – अर्ली अलवर्टा, रेड जून, पैराडीलेक्स एलिकजेंडर,क्रेफोर्ड अर्ली।
अखरोट में प्रयास करें कि कलमी पौधे मिल जाएं। विभागों या परियोजनाओं में दिए गए अखरोट के बीजू पौधों की विश्वसनीयता कम ही है।
सरकारी योजनाओं व परियोजनाओं में आड़ू व प्लम के पौधे सहारनपुर व मैदानी क्षेत्रों में स्थित पंजीकृत पौधशालाओं से क्रय किए जाते हैं। मैदानी क्षेत्रों में इनके पौधे एक ही वर्ष में तैयार हो जाते हैं, जिससे इनके उत्पादन में लागत कम आती है। पर्वतीय क्षेत्रों में इन पौधों के रोपण के बाद मृत्यु दर बहुत अधिक होती है, साथ ही ये लो चिलिंग किस्में हैं। जिनके फलों की बाजार में अपेक्षाकृत मांग कम रहती है।
सहारनपुर व अन्य मैदानी क्षेत्रों की पौधालयों में उगाए गए शीतकालीन फल पौधों को पर्वतीय क्षेत्रों में कदापि न लगाएं। शीतकालीन पौधे पर्वतीय क्षेत्रों की पंजीकृत पौधशालाओं से ही क्रय करें।
इस तरह करें पौधों का रोपण
बाग में 10 फीसदी परागण किस्मों का रोपण अवश्य करें।
बाग लगाने से पूर्व खेतों की सफाई करें तथा बाग रेखांकन (layout)कर ही लगाएं।
उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है।
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बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है।
रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है।
ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं।
बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं।
शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी
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राजेश पांडेय
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