
खाली हो गए कलजौंठी गांव तक पहुंच रही सड़क, रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीद
सड़क पहुंचने से कलजौंठी सहित आसपास के गांवों के एक बार फिर से गुलजार होने की उम्मीद
कलजौंठी गांव से न्यूज लाइव की रिपोर्ट
टिहरी गढ़वाल का कलजौंठी गांव (Kaljaunthi village) संसाधनों के अभाव के चलते पलायन से वीरान हो गया। इन दिनों कलजौंठी तक सड़क पहुंचाई जा रही है। हालांकि, सड़क बनने और रिवर्स माइग्रेशन (Reverse migration) में समय लगेगा, पर करीब 70 वर्षीय बुजुर्ग रायचंद्र सिंह कंडारी आशा जताते हैं कि सड़क बनने के बाद पर्यटक आएंगे, यहां आजीविका के संसाधन विकसित होंगे, स्थानीय उत्पादों की मार्केटिंग होगी, होम स्टे (Home Stay) को बढ़ावा मिलेगा। कहते हैं, जब गांव में रोजगार मिलेगा,तो लोग शहरों में क्यों रहेंगे।
कलजौंठी नरेंद्रनगर विधानसभा की कोडारना ग्राम पंचायत (Kodarana Gram Panchayat) का हिस्सा है, जिसकी देहरादून शहर से दूरी लगभग 40 किमी. है। भोगपुर से होते हुए आप पहले कोल, कोडारना होते हुए कलजौंठी जा सकते हैं। कोडारना से कलजौंठी तक लगभग तीन किमी. का फोर व्हीलर लायक चढ़ाई-ढलान वाला कच्चा रास्ता है, पर यहां से बाइक या कार से आना जाना जोखिम भरा है। हमारा मानना है कि आप पैदल ही चलें तो ज्यादा बेहतर होगा। वहीं, गुजराड़ा से कलजौंठी लगभग डेढ़ से दो किमी. बताया जाता है, लेकिन यह पैदल मार्ग कठिन चढ़ाई और ढलान वाला है। वर्तमान में गुजराड़ा से कलजौंठी होते हुए आगराखाल तक सड़क निर्माण होने की जानकारी है।
कलजौंठी गांव के सड़क से जुड़ने की तैयारी पर रायचंद्र सिंह बेहद खुश और उत्साहित हैं। उनका मानना है, गुजराड़ा से आगराखाल तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) से लगभग सात मीटर चौड़ी सड़क बनने से गांव में फिर से बसावट हो जाएगी।
बताते हैं, बड़कोट से नरेंद्रनगर जाने वाले बाइपास पर स्थित गुजराड़ा से वाया कलजौंठी, खर्की, दिउली, कखिल,चल्ड गांव, सलडोगी, कसमोली होते हुए आगराखाल तक लगभग तीस किमी. सड़क बन रही है।
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उनको उम्मीद है, जो लोग यहां से शहरों में गए हैं, वो वापस लौटेंगे। खासकर वो लोग वापस लौटेंगे, जिनके पास शहर में ज्यादा काम नहीं है। सेवानिवृत्त लोग भी लौटेंगे। बेरोजगारी का सामना कर रहे युवा लौटेंगे। सड़क बनने से गांव के ये वीरान पड़े घरों में फिर से रौनक हो जाएगी। आबादी बढ़ेगी तो शिक्षा और स्वास्थ्य के इंतजाम भी होंगे। यहां से तिनली तक दस ग्राम सभाओं के लगभग पांच हजार लोगों की आजीविका संबंधी बहुत सारी दिक्कतें दूर हो जाएंगी। यहां टूरिज्म बढ़ेगा, लोग आएंगे, जाएंगे तो स्थानीय उत्पादों को घर पर ही बाजार मिल जाएगा। युवाओं के लिए आजीविका के साधन बढ़ेंगे तो वो फिर यहां से बाहर क्यों जाएंगे। यहां से उत्पादों को परिवहन करना आसान हो जाएगा। होमस्टे को बढ़ावा मिलेगा, जो आय का बेहतर साधन बनेगा।

सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए रायचंद्र सिंह कंडारी कलजौंठी गांव के उस हिस्से में रहते हैं, जो इन दिनों वीरान है। यहां लगभग सात-आठ मकान बने हैं, जिन पर झाड़ झंकाड़ उग आए हैं। यहां रायचंद्र सिंह ने अपना मकान रहने लायक बनाया हुआ है। वो यहां आते रहते हैं। उन्होंने रानीपोखरी में भी अपना मकान बनाया है, पर गांव से उनका प्यार बना है। इस वीरान इलाके में आकर कुछ दिन बिताते हैं। उनको पूरी उम्मीद है कि एक दिन उनके गांव से गए लोग वापस लौटेंगे।
वहीं, कलजौंठी गांव के पहले हिस्से में केवल दो मकान हैं, जिनमें करीब 78 साल के चंदन सिंह कंडारी उनकी पत्नी कमला देवी और उनके भाई पूरण सिंह व उनकी पत्नी रोशनी देवी, कुल चार लोग रहते हैं। चंदन सिंह कहते हैं, सड़क बहुत बाद में बन रही है, पूरा गांव खाली हो गया। स्कूल बहुत दूर था कोडारना और फिर भोगपुर में। रोजगार के साधन नहीं हैं, इसलिए लोगों ने गांव छोड़ा।
कंडारी बताते हैं, सिंचाई की गूलें पहले ही क्षतिग्रस्त हो गई थीं, इससे उनके खेतों तक पानी आना बंद हो गया था। अपने घर के सामने बंजर खेत और आम का बाग दिखाते हुए कहते हैं, हमने यहां बहुत खेती की, पर अब सब बंजर हो गया। खेतीबाड़ी और पशुपालन सब बंद हो गया।

बताते हैं, पहले इस गांव में दो सौ से ज्यादा लोग रहते थे, अब आप खुद देख लो, कितने लोग हैं यहां। अब सड़क बन रही है, पर मुझे नहीं लगता, यहां से शहरों में गए लोग इस गांव में लौटकर आएंगे। वो यहां क्यों आएंगे,यहां से स्कूल भी बहुत दूर है। रही बात खेती की तो पानी की व्यवस्था भी तो होनी चाहिए। स्रोत पर पानी बहुत है, पर वहां से पानी आएगा कैसे, सारी गूल टूटी है। हमने अधिकारियों से पाइप के जरिये सिंचाई का पानी पहुंचाने का आग्रह किया था, पर कुछ नहीं हुआ। अब तक पीने का पानी भी बहुत कम आ रहा है।

कंडारी कहते हैं, यह हमारी जन्मभूमि है, इसलिए यहां से कहीं जाने का मन नहीं करता। बच्चों के पास शहर में जाता हूं। बच्चे कहते हैं, हमारे साथ शहर में रहो। पर मेरा मन तो अपने गांव में लगता है। बच्चे गांव आते रहते हैं, जरूरत का सारा सामान हमारे तक पहुंचा देते हैं। वो हमारा बहुत ख्याल रखते हैं।