Blog LiveFeaturedUttarakhand

82 साल के ‘युवा’ से सुनिए सवा सौ साल पुराने गांव की कहानी

1896 में बसा बखरोटी गांव सड़क नहीं बनने पर 1996 में खाली हो गया

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

मैंने कहा, आप तो युवा हो…, वो हंसते हुए कहने लगे, दिखने में तो हूं। फिर बोले, मैं अपने आप को युवा नहीं कह सकता, दूसरे कहें तो वो बात अलग है।

पर, हां…, एक बात है मैंने पहाड़ों को लांघा है, हिमाचल और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में घूमा हूं और आज भी पैदल चलने में सक्षम हूं। तेज चलने में तो युवाओं को पीछे कर सकता हूं।

हमने सुना है आपने पेंशन (वृद्धावस्था) नहीं लगवाई। वो बोले, पेंशन इसलिए नहीं लगवाई, क्योंकि हमें पहले देश को देखना और फिर अपने आप को। सभी पेंशन लेते रहेंगे तो वो (सरकार) पेंशन कहां से लाएंगे।

उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया, पेंशन लेने से लगेगा कि मैं बुजुर्ग हो गया। सभी बुजुर्ग, बुजुर्ग… कहेंगे तो एक दिन उनकी वाणी फलीभूत हो जाएगी। मुझे नहीं चाहिए पेंशन। मेरे बच्चे मेरा अच्छे से ध्यान रखते हैं।

ओह! माफ करना, मैं आपसे 82 साल के युवा का परिचय कराना ही भूल गया। आप हैं श्री बुद्धिप्रकाश जोशी जी। आप वर्ष 1972 से 1982 तक टिहरी गढ़वाल जिला की कोडारना ग्राम पंचायत के प्रधान रहे हैं। कोडारना ग्राम पंचायत में 11 गांव हैं, एक पूरब में तो दूसरा गांव पश्चिम में है… बहुत दूर-दूर। कौल, बखरोटी, कलजौंठी, भेड़ाखर्क, कोडारना, गुजराड़ा, कौल, कुशरैला… आदि।

जोशी जी के साथ हम उनके गांव बखरोटी जा रहे थे। लगभग सवा सौ पहले बसा बखरोटी, वो गांव है, जहां अब कोई नहीं रहता। सड़क, बिजली नहीं होने से यह गांव खाली हो गया। रही बात खेतीबाड़ी की तो जंगली जानवर कुछ नहीं छोड़ते। जोशी जी और उनके पुत्र परमानंद जोशी के साथ हम वहां जा रहे थे। मैं इस गांव में करीब एक साल पहले भी गया था, पर इस बार का भ्रमण जोशी जी के साथ हो रहा था, इसलिए गांव के बारे में बहुत सारी जानकारियां इकट्ठी हो जाएंगी।

गांव पर बात करने से पहले उनसे पूछे गए एक महत्वपूर्ण सवाल का जवाब जानिएगा।

मैंने उनसे पूछा, अच्छा यह बताओ… आपकी स्फूर्ति का राज क्या है। वो बोले, रोज सुबह चार बजे उठता हूं और रात दस बजे करेक्ट सो जाता हूं। घर का खाना खाता हूं। फल फ्रूट खाओ…। बाजार के खाने में कैमिकल मिला होता है। बाजार की चाऊमीन, पैकेट वाली सेवईं से दूर रहो। घर का गरमा गरम खाना खाओ। गरम खाना जल्दी पचता है, यह हमारे शरीर की ऊर्जा से तालमेल बैठाता है। ठंडा खाना पचाने में शरीर को ज्यादा समय लगता है। ठंडा एवं बासी खाना बीमारियों की जड़ है।

अचार खाना ही है तो बाजार की जगह घर में बनाकर खाओ। हरी मिर्च का अचार खाओ…, इसमें विटामिन सी होता है। घर में छोटी सी क्यारी बनाकर सब्जियां उगाओ। कैमिकल मिला कुछ भी खाने से परहेज करो। खाना खाते समय बार-बार पानी मत पियो। भोजन को ढंग से चबाओ…, भोजन में जल्दबाजी बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। खाने के बाद गुड़ खा सकते हो…, लाभ देगा। मैं तो ऐसा करता हूं। शरीर को स्वच्छ रखो… इसको जितना जरूरत हो… उतना ही आराम दो। ज्यादा आराम करना आलस को बढ़ा देगा।

और हां… सेब को छिलके सहित मत खाना। सेब हमेशा छीलकर खाना चाहिए। वो इसलिए, क्योंकि पेड़ों पर लगे सेबों को कीड़ों से बचाने के लिए छिड़काव होता है। सेब खाना अच्छी बात है, पर छीलकर खाओ।

वो ये सब बताते हुए पहाड़ के उबड़ खाबड़ कच्चे रास्ते पर आगे चले जा रहे हैं। मैं उनसे पीछे रह गया…उन्होंने मुझे हांफते हुए देखा तो हंसते हुए बोले… मैं अभी तक गांव पहुंच जाता, तुम्हारी वजह से अभी यहीं पर हूं। कोई बात नहीं मैं तुम्हारे साथ धीरे-धीरे ही चलूंगा।

मेरा चेहरा थकान में लाल हो गया। मन कर रहा था कि यहीं किसी पेड़ के नीचे लमलेट हो जाऊं। कुछ तो जान आएगी शरीर में। पर, थोड़ी हिम्मत बटोरकर अधूरे मन से… बैग से पानी की बोतल निकाली और उनसे कहा, आप पानी लेंगे..। उन्होंने कहा, पी लो…मुझे अभी पानी की जरूरत नहीं है। मैंने दो-तीन घूंट पानी डकारा, तब जाकर लगा कि शरीर में थोड़ी जान आ गई।

मैंने उनसे पूछा, कितना दूर है अभी गांव। वो बोले, यहां से एक किमी. रह गया। थोड़ा आगे एक पेड़ है, जिससे ठीक एक किमी. है गांव। मुझे इसलिए मालूम है, क्योंकि कच्चा रास्ता बनाने के लिए उस पेड़ पर दूरी का निशान लगाया था। निशान तो अब नहीं रहा, पर पेड़ को पहचानता हूं।

1975 में बनाया कच्चा मार्ग और पुश्ते अब भी मजबूत

वो बिना किसी दिक्कत के कदम आगे बढ़ा रहे थे और मुझे 1975 में बनाए कच्चे रास्ते को दिखा रहे थे। वैसे आपको बता दूं, जब जोशी जी प्रधान बने थे, तब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। जब यह कच्चा रास्ता कई जगह पुश्ते लगाकर बनाया जा रहा था, तब मैं एक साल का था। भगवान के लिए ही सही, अब आप मुझसे मेरी उम्र नहीं पूछना।

जोशी जी ने बताया, यह रास्ता छह फीट चौड़ा और डेढ़ किमी. लंबा है, जिस पर उस समय मात्र पांच हजार रुपये खर्चा आया था। ग्रामसभा के बजट से रास्ता बना था और इसके लिए पत्थरों की ढुलाई नीचे नदी से की गई थी। पेड़ों का छपान किया गया था। सारे पेड़ वन निगम के सुपुर्द किए गए थे। आप देख सकते हो, रास्ते पर हर पुश्ता आज भी अपनी जगह पर है, इतनी मुस्तैदी और मजबूती से रास्ता बनाया था। अब कई जगह मिट्टी ढहने से रास्ता संकरा हो गया है। सरकार इस रास्ते को चलने लायक बना दे तो हमारा गांव फिर से आबाद होने लगेगा। यहां तक सड़क बन जाए तो बहुत अच्छा हो जाएगा।

वो रास्ता दिखाते हुए कहते हैं, इस पर वाहन चलेंगे तो हम अपने खाली पड़े खेतों में फसल उगाएंगे। वहां रहने लग जाएंगे। यह बात सरकार से वर्षों से कह रहे हैं, पर कोई सुने तो।

इनसे सीखिएः अनुमानित लागत से बहुत कम खर्च में बना था टिहरी का पहला खच्चर मार्ग

पूर्व प्रधान बुद्धिप्रकाश जोशी जी, एक किस्सा साझा करते हैं। वो बताते हैं कि कोडारना के प्रधान रहने के दौरान उनको कौल गांव से कोडारना तक खच्चर मार्ग बनवाना था। इसकी लागत 80 बोरे खाद्यान्न थी। उस समय पारिश्रमिक के तौर पर खाद्यान्न बांटा जाता था। हमने मार्ग तैयार करा दिया। हमारी लागत आई 59 बोरे खाद्यान्न, जो श्रमिकों में बांटा जाना था। मार्ग की पूरी रिपोर्ट बनाकर 59 बोरे खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए आवेदन किया।

बताते हैं, ग्राम्य विकास विभाग के कुछ अधिकारियों ने उनसे कहा, लागत तो 80 बोरे है। 59 बोरे क्यों लेना चाहते हो। बाकी के 21 बोरे अपने पास रख लेना और बांट देना। मैंने उनको जवाब दिया, जब श्रमिकों को इतना ही बांटना है तो सरकार से ज्यादा क्यों लिया जाए।

बताते हैं, उस समय अपर जिलाधिकारी (एडीएम) के समक्ष 59 बोरे की मांग का आवेदन पहुंचा तो उन्होंने ज्यादा लागत एवं उसके विरुद्ध कम व्यय को देखकर खुद ही अंदाजा लगा लिया कि खच्चर मार्ग नहीं बना है। उन्होंने बिना किसी निरीक्षण के, उस फाइल में लिख दिया कि खच्चर मार्ग नहीं बना है, इसलिए खाद्यान्न उपलब्ध न कराया जाए।

जोशी जी ने बताया, मैं दूसरे दिन एडीएम के टिहरी स्थित दफ्तर पहुंचा और उनको बताया, जब ज्यादा खर्च नहीं हुआ है तो मैं ज्यादा खाद्यान्न क्यों लूं। आपने लिखा है, खच्चर मार्ग नहीं बना है। आपसे गुजारिश है कि मार्ग का निरीक्षण करा लें। एडीएम उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हो रहे थे। बकौल जोशी जी, उन्होंने एडीएम को संबोधित करते हुए आवेदन में लिखा कि उक्त खच्चर मार्ग केवल कागजों में ही बना है। वहां कोई काम नहीं किया गया है और खाद्यान्न भी ले लिया गया है, कृपया निरीक्षण करा लीजिए। महोदय, निरीक्षण नहीं किया गया तो इस चिट्ठी को लखनऊ भेजकर वहां से निरीक्षण दल भेजने की मांग की जाएगी।

जोशी जी बताते हैं, उनके इस आवेदन पर एडीएम नाराज होते हुए बोले, इसमें यह क्या लिख दिया है। उन्होंने उसी समय एसडीएम को मार्ग का निरीक्षण करने के निर्देश दिए। एसडीएम ने निरीक्षण किया और मार्ग को सही पाते हुए उस पत्रावली पर लिखा कि टिहरी गढ़वाल जिला का पहला खच्चर मार्ग बन चुका है। साथ ही, उन्होंने खाद्यान्न उपलब्ध कराने को स्वीकृति प्रदान की। तब विकासनगर से सरकारी ट्रक से खाद्यान्न कोडारना लाकर श्रमिकों में बांटा गया।

 बीडीओ को कमरे में बंद कर दिया था

जोशी जी बताते हैं, उनके गांव बखरोटी में तंबाकू, मद्यपान पर पूर्ण प्रतिबंध था। एक बार बीडीओ गांव में शराब के नशे में पहुंच गए। हमने उनको कमरे में बंद कर दिया था। सुबह उनको मुक्त किया। जोशी जी, हमें वो कमरा दिखाते हैं, जिसमें बीडीओ को बंद किया था। बताते हैं, बात जिलाधिकारी तक पहुंच गई। उन्होंने पूछा, आपने एक अधिकारी को कमरे में क्यों बंद किया।

जोशी जी बताते हैं, हमारा जवाब था कि उस अधिकारी ने शराब पीकर हमारे गांव में प्रवेश किया। ग्राम सभा हमारा अधिकार क्षेत्र है। हमारे गांव का नियम है कि वहां कोई नशा नहीं करेगा। बीडीओ ने गांव के नियम को तोड़ा था, इसलिए उनको कमरे में बंद किया। यदि आप हम पर कार्रवाई करेंगे तो इससे यह संदेश जाएगा कि आपके अधीनस्थ अधिकारी शराब पीकर गांवों में जाते हैं और आपका उन पर नियंत्रण नहीं है। बताते हैं, जिलाधिकारी ने ग्राम पंचायत को 250 रुपये का सामान पुरस्कार स्वरूप भेंट किया था।

सवा सौ साल पुराना है बखरोटी गांव, बागेश्वर से है रिश्ता  

देहरादून जिला में भोगपुर के पास एक गांव है बागी, जहां पर कुमाऊं मंडल के बागेश्वर से आया परिवार रहता था। पूर्व प्रधान जोशी जी बताते हैं, बागी गांव में रहने वाले हमारे पूर्वज को 1896 में यहां (बखरोटी में) बसने की अनुमति मिल गई। उनके पांच बच्चे थे। उन्होंने कड़ी मेहनत करके यहां खेतीबाड़ी और पशुपालन किया। पीढ़ी दर पीढ़ी यहां पंद्रह परिवार हो गए। मेरा बचपन यहीं बीता। पढ़ाई के लिए यहां से छह किमी. दूर भोगपुर जाता था। आठवीं क्लास तक पढ़ा और फिर खेतीबाड़ी को आजीविका का साधन बनाया। 1996 तक गांव खाली होने लगा। यहां तक सड़क नहीं है और पांचवीं तक का स्कूल भी बंद हो गया, क्योंकि रोजगार के सिलसिले में गए लोग अपने साथ बच्चों को भी शहर ले गए।

गांव वाले घर की हालत देखकर भावुक हो गए जोशी जी

पूरा पलायन कर चुके बखरोटी गांव के सभी मकान टूट गए हैं, खंडहर हो गए हैं। अपने घर का एक कमरा दिखाते हुए जोशी जी भावुक हो जाते हैं। कहते हैं, मेरा गांव बहुत सुंदर था, यहां पूरा जीवन बीता। हमारा गांव तो स्वर्ग है, हमारी जन्मभूमि है, हमारी धरती है। हम यहां फिर आना चाहते हैं। सरकार सड़क बना दे। हमें यहां फिर से खेती करनी है। बात करते हुए उन्होंने कमरे में जमीन पर पड़े मुसीके (बैलों के मुंह पर बांधे जाने वाली रस्सी से बनीं जालियां) दिखाते हुए खूंटी पर टांग दिए। उन्होंने अपने बचपन का कमरा भी दिखाया।

नरेंद्रनगर से दिखता है बखरोटीः बखरोटी गांव से नरेंद्रनगर दिखता है। रात को वहां जगमगाने वाली लाइटों से सुंदर नजारा पेश आता है। जोशी जी कहते हैं, यहां से बहुत अच्छा लगता है नरेंद्रनगर। पर, हमारे गांव में जगमगाहट कब होगी, पता नहीं।

1996 में गांव छोड़ा था, पानी का बिल आज भी देते हैं

जोशी जी ने हमें पानी के बिल की रसीद दिखाते हुए कहा, यदि हमें अपने गांव वापस लौटने की इच्छा नहीं होती तो हम खाली हो गए पानी का बिल क्यों देते। उन्होंने एक हालिया रसीद दिखाते हुए कहा, हम आज भी पानी का बिल चुकाते हैं। हमारे गांव में कई किमी. दूर स्रोत से पानी आता है।

हल्दी बोए खेतों को जानवरों ने खोद डाला

बखरोटी गांव के खेतों में हल्दी बोई गई है। हल्दी के बारे में कहा जाता है, इसे जंगली जानवर नहीं खाते। इसलिए खाली पड़े गांव में लोगों ने हल्दी बोई है। जंगली जानवरों ने हल्दी तो नहीं खाई, पर खेत खोद दिए हैं। खुदे हुए खेतों में हल्दी की कच्ची फसल बिखरी पड़ी है। जोशी जी बताते हैं, हमारे खेतों को ज्यादा पानी नहीं चाहिए। यहां मिट्टी बहुत अच्छी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां कितना भी खोद लो, एक भी पत्थर नहीं मिलेगा। एक साल में तीन-तीन फसलें होती थी यहां। क्या नहीं होता था हमारे गांव में। नींबू, आम, आंवला, अमरूद के इतने सारे पेड़ देख सकते हो।

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker