Creativity
आज उमड़ घुमड़ कर बरस रे बदरा
- सत्यमहेश शर्मा
आज उमड़ घुमड़ कर बरस रे बदरा, बरखा रानी के पानी में, कागज कश्ती उतार दूं। जल धारा में गति को थोड़ी धार दूं। गहरे में जाऊं, गलबहियों से प्यार दूं। आज उमड़ घुमड़ कर, बरस रे बदरा, स्वागत में मन के तोरणद्वार दूं।
ठंडी पवन संग उड़ उड़ जाऊं, इंद्रधनुश के सतरंग चुराऊं, तितली बन फिर मुड़ मुड़ आऊं, फूलों संग घंटों बतियाऊं। भाव स्पंदन से श्रृंगार दूं, हृदय खोल सत्कार दूं। आज उमड़ घुमड़ कर बरस रे बदरा, ऐसा तुझे उपहार दूं, तू जीत ले, मैं हार लूं।
प्रेम बिछोहे में प्रियसी बन तड़पूं, मीत मिलन को रह रह तरसूं, दरवाजे की ओट से छुप कर, रसिया तुझे निहार लूं, तू घर आ, नजर तेरी उतार दूं, गेसुओं की मेरी छांव घनेरी, पलकों पे बिठा तुझे प्यार दूं। आज उमड़ घुमड़ कर बरस रे बदरा, संग मयूरा, मैं भी छम छम नाच लूं।