तुम छू लेना आसमां…..
सोच पा रही हूँ सखी
क्या सोचती हो तुम
सोचते हुए अतल गहराइयों तक चली जाती हो।
क्यूं-क्या हुआ ऐसा, पूछती हो उससे।
कुछ दिया नहीं ऐसा!
पर तुमने भी – तो उससे कभी कोई
शिकायत नहीं की, जिरह नहीं की,
शायद इसीलिए तुम्हारी और परीक्षा
का एक दौर शुरू हुआ है।
कमजोर नहीं पड़ना, हिम्मत नहीं हारना,
ना ही हारने देना
लड़ना है वक्त, साथ हैं लड़खड़ाते कदम
हिम्मत नहीं हारना।
जीवट रही हो तुम हरदम
लड़खड़ाना मत,
हौसलों की उड़ान साथ लिए
तुम दौड़ पड़ना फिर से
उन पहाड़ के शिखरों तक,
जिनको गुरूर है कि, तुम छू नहीं सकती
उनके नील गगन को छूते मस्तक ।
कमजोर नहीं पड़ना, हिम्मत नहीं हारना।
सबको साथ ले लेना,
अकेले में जी घबराये तो।
डरना नहीं,
आवाज देना अपनों को!
क्या मिला ये मत सोचना!
जो है सब अच्छा है,
जो होगा सब अच्छा होगा।
इसी सोच के साथ रोज जगना;
जगाते रहना जीने की चाह,
फिर आयेंगे चाह के परिणाम
नई ऊर्जा भरी स्फूर्ति के रूप में
बस जगाते रहना जीने की चाह।
- अनिता मैठाणी