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जंगल में इमरजेंसीः कहानियां जंगल की सैर कराएंगी, बच्चों को कुछ नया सिखाएंगी

"जंगल में इमरजेंसी" का ई बुक संस्करण www.amazon.in पर उपलब्ध है

newslive24x7 Desk

EDOSS Publishing की नई किताब “जंगल में इमरजेंसी” नाम सुनकर कुछ अजीब सा लगता है। यह भी कहा जा सकता है कि “इमरजेंसी शब्द का जंगल की जिंदगी में कोई मतलब नहीं है। वहां तो स्वछंद जीव रहते हैं, जो जहां चाहें, वहां घूमते हैं, अपने तरीके से जिंदगी जीते हैं। उनका जीने का अंदाज हम इंसानों से बहुत अलग है।”

क्या कभी हमने यह कल्पना की है कि “बढ़ते दखल की वजह से वनों के रक्षक, ये जीव हम इंसानों से बेहद खफा हैं।”

“वो हमारे बारे में क्या सोचते हैं? उनकी और हमारी जिंदगी में समान क्या है? क्या उनकी समस्याएं, हमारी समस्याओं की तरह ही मेल खाती हैं? क्या उनमें भी वही द्वंद्व चलता है, जो हमारी दिनचर्या में आम है?” आपको, हम सभी को ये सवाल कुछ अजीब से लग सकते हैं। हम कह सकते हैं कि “हमारे जीने के तरीके से उनका क्या वास्ता?”

पर, इन बातों और सवालों को समझने की कोशिश करते करते हमने कुछ कहानियां बुन लीं। और, इन छोटी छोटी कहानियों के संकलन (Short Stories Compilation ) का नाम “जंगल में इमरजेंसी” रखा है। बच्चों के लिए कहानियों (Children’s Stories )काफी शिक्षाप्रद एवं रूचिपूर्ण होंगी। “जंगल में इमरजेंसी” का ई बुक संस्करण (E book Edition) www.amazon.in पर उपलब्ध है। आप पुस्तक पढ़ने और बच्चों को पढ़ाने के लिए इच्छुक हैं तो आपकी सुविधा के लिए सीधे ई बुक का लिंक इस प्रकार है- https://amzn.in/d/6w8G9Ru है। कृपया अपनी टिप्पणी करना न भूलें।

इस संकलन में “जंगल में इमरजेंसी” शीर्षक से भी एक कहानी है, जिसमें इंसानों की टोली अपनी मौज मस्ती के लिए जंगली जीवों के सोने और जागने के समय को बदलने की कोशिश करती है। जंगल उस आपदा से त्रस्त हो जाता है, जिसको इंसानों ने पैदा किया है। जंगल के जीव इंसानों पर हमले की योजना बनाते हैं, पर फिर अपने इसी निर्णय में क्या बड़ा बदलाव लाते हैं, जानने के लिए इस कहानी को पढ़ा जा सकता है। यह कहानी चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णय लेने की शक्ति का संदेश देती है।

“बादलों से दोस्ती” कहानी कटते जंगल और पानी के संकट से जूझ रहे जीवों की बेहद मार्मिक और सूझबूझ भरे फैसलों को बताती है। पेड़ों, हवा और बादलों के बीच समन्वय को बताने की पहल है यह कहानी।

इनके साथ ही, मजेदार अंदाज वाला बिल्ला, शुरुआती दो कहानियों- “इंग्लिश की जंगल जर्नी” और “जंगल मांगे अपना हक” का नायक है, जो शहर में इंग्लिश सीखकर जंगल को शहर जैसा सुख देने की कोशिश में सबकुछ गड़बड़ कर देता है। दूसरी कहानी में बिल्ला शहर में इंग्लिश की धूम मचाता है।

इंसानों का एजुकेशन सिस्टम जानने के लिए जंगल का राजा शेर अपनी जिंदगी को जोखिम में डालकर शहर घूमने आ जाता है। शहर की चमक धमक को बहुत नजदीक से देखता है और फिर एक खास निर्णय पर पहुंचता है, जानने के लिए पढ़ें- “शेर चला शहर”

इसी तरह “जंगल में सरकार”, कहानी इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करती है कि , यदि जंगल में राजनीति होती तो उसका स्वरूप क्या होता। क्या राजनीति का तरीका हर जगह एक जैसा ही होगा। मजेदार कहानी है, जिसमें अवैध रूप से बनी पक्षियों की सरकार के कारनामों से जीवों की जिंदगी पर पड़े असर को बताया गया है।

कहानी “घोंसले की तलाश” रोजी रोटी और आवास के संकट से जूझ रहे कौए की व्यथा को प्रस्तुत किया गया है, जो मेंढकों के शोर से परेशान है। उसके साथ होने वाली घटनाएं पर्यावरण परिवेश में हो रहे नकारात्मक बदलावों की ओर इशारा करती हैं।

“जंगल में इमरजेंसी” की ग्यारह कहानियों में साहसी नन्हा पौधा, पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, टर्रू की छलांग, संजीवनी वाला भालू आपको प्रभावित करेंगी। ये कहानियां बच्चों को संदेश देंगी। साथ ही, उनको पर्यावरण के प्रति सार्थक योगदान देने के लिए सक्षम बनाएंगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

किताब के बारे में-
प्रकाशकः EDOSS Publishing
ई बुक संस्करण प्रथम (2024)
प्रकाशकः डॉ. हिमांशु शेखर
लेखकः राजेश पांडेय
पेज: 68, मूल्य 49 रुपये
पुस्तक पढ़ने के लिए लिंक- https://amzn.in/d/6w8G9Ru

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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