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पर्यावरण क्षेत्र में इनोवेशनः ड्रोन तकनीक से दुर्गम इलाकों में पौधारोपण बचाएगा समय

अबू धाबी पर्यावरण एजेंसी ने बहरीन में ड्रोन-आधारित मैंग्रोव रोपण तकनीक का प्रदर्शन किया

न्यूज लाइव डेस्क

अबू धाबी पर्यावरण एजेंसी (EAD) ने बहरीन में ड्रोन तकनीक का उपयोग करके मैंग्रोव पौधारोपण की नवीन तकनीक प्रदर्शित की है। पारंपरिक पौधारोपण की तुलना में ड्रोन तकनीक समय और संसाधनों की बचत करती है। यह उन दुर्गम क्षेत्रों में भी रोपण संभव बनाती है जहां मानव श्रम से काम करना मुश्किल होता है। इससे पर्यावरण संरक्षण को बड़े पैमाने पर जन-आंदोलन बनाने की क्षमता बढ़ती है।

एक हेक्टेयर मैंग्रोव सामान्य जंगल की तुलना में 5 गुना ज्यादा कार्बन सोख सकता है।

अबू धाबी मैंग्रोव इनिशिएटिव (ADMI) के तहत, EAD ने क्लाइमेट टेक कंपनी नबात के साथ मिलकर ड्रोन-आधारित मैंग्रोव रोपण तकनीक का प्रदर्शन किया। यह तकनीक बहरीन में लागू की गई, जहां ड्रोन की मदद से मैंग्रोव के बीजों को सटीकता के साथ रोपा गया।

मैंग्रोव तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं। ये जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करते हैं। ड्रोन का उपयोग इस प्रक्रिया को तेज, कुशल और कम श्रम वाला बनाता है।

ड्रोन मैंग्रोव के बीजों को हवा से सटीक स्थानों पर गिराते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पैदल पहुँचना मुश्किल है। यह तेजी से रोपण करता है और मानव श्रम की जरूरत कम करता है। अबू धाबी ने अपने 17,600 हेक्टेयर मैंग्रोव को पुनर्जनन में सफलता पाई, और अब बहरीन में इसे लागू किया। इस तकनीक से बड़े पैमाने पर मैंग्रोव बहाली संभव हो सकती है, जो जलवायु संकट से लड़ने में मदद करेगी।

इस प्रदर्शन में EAD के टेरेस्ट्रियल और मरीन बायोडायवर्सिटी सेक्टर के कार्यकारी निदेशक अहमद अल हाशमी, और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी रिसर्च काउंसिल के महानिदेशक शहाब इस्सा अबू शहाब शामिल थे। बहरीन के तेल और पर्यावरण मंत्री मोहम्मद बिन मुबारक बिन दैना ने भी इस पहल का स्वागत किया।

ड्रोन तकनीकी का प्रभाव 

यह तकनीक न केवल मैंग्रोव रोपण को बढ़ावा देगी, बल्कि अन्य देशों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है। EAD और नबात का लक्ष्य ड्रोन से एक करोड़ से ज्यादा पेड़ लगाना है, जो जलवायु संकट से लड़ने में मदद करेगा।

मैंग्रोव क्या है और ये कहां पाया जाता है

मैंग्रोव एक अनोखा और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है, जो तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह नमक सहन करने वाले पेड़ों और झाड़ियों का समूह होता है, जो समुद्र और जमीन के बीच की कड़ी के रूप में काम करता है। पर्यावरण, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में इनका बहुत बड़ा योगदान है।

दूसरे शब्दों में,  मैंग्रोव ऐसे पौधे हैं जो खारे पानी (समुद्री पानी) और मीठे पानी के मिश्रण वाले क्षेत्रों में उगते हैं, जैसे तटीय दलदल, नदी के मुहाने, और खाड़ी। ये पेड़ अपनी खास जड़ों के कारण नमकीन मिट्टी और पानी में जीवित रह सकते हैं। इनकी जड़ें ऊपर की ओर उठी होती हैं, जिसे “न्यूमैटोफोर” कहते हैं। ये जड़ें ऑक्सीजन लेने और मिट्टी को स्थिर करने में मदद करती हैं।

मैंग्रोव की प्रजातियाँ अलग-अलग होती हैं, लेकिन आमतौर पर इन्हें “मैंग्रोव वन” के रूप में जाना जाता है। मैंग्रोव के बीज पानी में तैरते हैं और सही जगह मिलने पर जड़ें जमाते हैं।

मैंग्रोव ज्यादातर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिलते हैं। दुनिया के बड़े मैंग्रोव क्षेत्र ये हैं-

  • भारत: सुंदरबन (पश्चिम बंगाल), भितरकनिका (ओडिशा), गोदावरी-कृष्णा डेल्टा (आंध्र प्रदेश)।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया: इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड।
  • अन्य: ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, मैक्सिको, और अबू धाबी जैसे खाड़ी देश।
  • वैश्विक आंकड़ा: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया में करीब 14.8 मिलियन हेक्टेयर मैंग्रोव वन हैं, जो मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में फैले हैं।

पर्यावरण के लिए मैंग्रोव का महत्व

मैंग्रोव को “तट का रक्षक” और “प्रकृति का कार्बन सिंक” कहा जाता है। इनके फायदे इस प्रकार हैं:

मैंग्रोव कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में बेहद कुशल होते हैं। एक हेक्टेयर मैंग्रोव वन सालाना 308 किलोग्राम कार्बन स्टोर कर सकता है, जो सामान्य जंगलों से कहीं ज्यादा है।

ये “ब्लू कार्बन” का हिस्सा हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी में कार्बन संग्रह का बड़ा स्रोत है।

मैंग्रोव की जड़ें मिट्टी को बांधकर कटाव रोकती हैं। ये सुनामी, तूफान और समुद्री लहरों से तट की रक्षा करते हैं। 2004 की सुनामी में भारत और इंडोनेशिया में मैंग्रोव वाले क्षेत्रों में नुकसान कम देखा गया।

मछलियाँ, केकड़े, झींगे, पक्षी और सरीसृप जैसे कई जीव मैंग्रोव में पनपते हैं। यह मछली पालन के लिए “नर्सरी” का काम करता है।

भारत के सुंदरबन में रॉयल बंगाल टाइगर जैसे दुर्लभ प्राणी भी मैंग्रोव पर निर्भर हैं।

मैंग्रोव प्रदूषण को छानते हैं और समुद्र में बहने वाले कचरे को रोकते हैं।

भारत में मैंग्रोव की स्थिति

India State of Forest Report 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव का क्षेत्रफल करीब 4,992 वर्ग किलोमीटर है, जो कि इससे पिछले वर्ष की तुलना में 17 वर्ग किमी. बढ़ा है।

सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है।

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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