पहाड़ों से घिरे गांव में बारिश की बूंदे, धान की रोपाई और लोकगीत गुनगुनातीं महिलाएं
बरसात के मौसम में हरियाली से लकदक पहाड़ों से घिरे बेहद सुंदर गांव सेबूवाला में धान की रोपाई
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
बरसात के मौसम में हरियाली से लकदक पहाड़ों से घिरे बेहद सुंदर गांव सेबूवाला से होकर जाखन नदी बह रही है। नदी से ऊंचाई पर स्थित सीढ़ीदार खेतों में धान की रोपाई चल रही है, किसान उत्साहित हैं, क्योंकि इस बार बारिश ने साथ दिया है। धान की पौध रोपने के लिए जरूरत के अनुसार पानी चाहिए। मिट्टी पानी से भरे दलदले खेतों में देर तक खड़े होने का अनुभव शानदार है, यह हमें प्रकृति के पास लेकर आने का मौका देता है।
धान की शरबती किस्म की आर्गेनिक खेती करने वाला सेबूवाला इस बार रोपाई को लेकर पिछले दो साल की तरह निराश नहीं है। इसकी वजह यह कि किसान इस साल बारिश पर निर्भर नहीं हैं।
ठीक दो साल पहले, सेबूवाला को जाखन से हर मौसम पानी उपलब्ध कराने वाला लगभग 80 साल पुराना सिंचाई सिस्टम पहाड़ से आए मलबे ने तबाह कर दिया था। यह मलबा पहाड़ पर बन रही सड़क का था। ग्रामीणों ने लगभग दो साल तक इस निकासी को ठीक कराने के लिए संघर्ष किया और आखिरकार उनको सफलता मिल ही गई, एक बार फिर उनके खेतों तक पानी 24 घंटे आ रहा है। पर, एक डर फिर से सता रहा है, वो यह कि अगर जाखन में पानी बढ़ा तो सिंचाई तंत्र कहीं फिर से ध्वस्त न हो जाए।
रविवार सुबह नौ बजे बादल छाए हैं, बारिश की सौ फीसदी संभावना है। वातावरण में थोड़ी उमस है, पर किसान चुनौती का सामना करते रहते हैं, इसलिए उनको बारिश की परवाह नहीं है।
सेबूवाला में किसान देवेंद्र सिंह और उनके भाई मेहर सिंह मनवाल और उनकी माताजी बैसाखी देवी ने रोपाई की पूरी तैयारी की है। पौध रोपे जाने के लिए खेतों में रखी है और बैलों की जोड़ी चारा खाने में मस्त है, उनको पूरा दिन मिट्टी पानी से भरे खेतों में सेवाएं देनी हैं। उनके साथ किसान परिवारों को अंधेरा होने तक खेतों में रहना है।
एग्रीकलचर में कलचर शब्द हमारी संस्कृति को भी व्यक्त करता है। खेती भी एक संस्कृति है, इससे जुड़ाव हमें अन्न देता है और अन्न जीवन को आगे बढ़ाता है।
धान रोपाई के बैल खेत में आ चुके हैं। गीता देवी और उर्मिला पूजा की थाली, जिसमें धूप रोली और मीठे गुलगुले का प्रसाद लेकर खेत में पहुंचे हैं। देवेंद्र और गीता बैलों की पूजा करते हैं और खेत में गंगाजल का छिड़काव। धूपबत्ती जलाकर ईष्टदेवता का स्मरण करते हैं।
मिलजुलकर एक दूसरे के खेतों में रोपाई करने की साझा संस्कृति आज भी गांवों में जीवंत है। पड़ोस में रहने वाले किसान परिवार भी देवेंद्र और मेहर सिंह को रोपाई में सहयोग करने पहुंचे हैं।
उर्मिला मनवाल तिलक लगाकर उनका स्वागत करती हैं और मीठे गुलगुले का प्रसाद बांटती हैं। पड़ोसी किसान परिवार यह सहयोग निशुल्क करते हैं। यह साझा व्यवस्था है, जब उनके खेतों में रोपाई होगी, तब देवेंद्र और मेहर सिंह मनवाल परिवार के साथ जाकर उनको सहयोग करेंगे। एक दूसरे को सहयोग करने से किसी भी किसान को कृषि कार्यों में मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता।
यहां रोपाई से पहले पानी से भरे खेतों को तैयार करने की जिम्मेदारी देवेंद्र और उनके भतीजे अंकित की है। देवेंद्र बैलों की जोड़ी और अंकित पावर टिलर से खेत को रोपाई के लिए तैयार कर रहे हैं। यहां खेती के पुराने और आधुनिक यंत्रों को एक साथ देखने का मौका मिलता है। बीच-बीच उनको और भी ग्रामीण सहयोग करते हैं।
धान के पौधों की रोपाई से पहले पडलिंग (Puddling) की प्रक्रिया बेहद जरूरी होती है। जुताई के बाद खेत में पानी भरकर लकड़ी के प्लाऊ या कल्टीवेटर की मदद से मिट्टी को अच्छी तरह मथा जाता है। इससे मिट्टी नरम हो जाती है और इससे रोपाई में आसानी होती है। किसान फावड़ों से भी खेतों को मथते हैं, ताकि रोपाई बेहतर हो सके।
खेत तैयार होते ही महिलाओं ने रोपाई शुरू कर दी। मिट्टी पानी से भरे खेतों में धान की पौध रोपते हुए महिलाएं प्रसन्न नजर आ रही हैं। उनके एक हाथ में धान की पौधों का गुच्छा है और दूसरे हाथ से रोपाई कर रही हैं। वो धान की एक-एक पौध को धरती को सौंप रही हैं।
उर्मिला बताती हैं, पौध रोपना आसान काम नहीं है। इसके लिए अभ्यास करना होता है। हम पौध को ज्यादा गहराई में नहीं बोते, सिर्फ पौध को, मिट्टी को सौंपते हैं। कुछ दिन में ही ये पौधे खेत में मिट्टी की मजबूत पकड़ से लहलहाने दिखते हैं। यह कमाल की बात है, मिट्टी, पानी और पौध के बीच सामंजस्य है, जिससे हमें अन्न मिलता है।
बुजुर्ग वीर सिंह रावत जी कंडोली गांव में रहते हैं, यह उनकी जिम्मेदारी है कि रोपाई कर रही महिलाओं के पास पौधों की कमी न हो। रावत जी, रोपाई वाले खेत की मेढ़ पर धान की पौध लेकर खड़े हैं। वो देख रहे हैं कि किस महिला के पास पौध खत्म हो रही हैं। रावत जी उनके पास पौधों का गुच्छा फेंकते हैं। महिलाएं इन गुच्छों को खेत में गिरने से पहले ही लपक लेती हैं। वास्तव में यह नजारा कमाल का है।
वहीं, बच्चे खेत के एक छोर पर रखीं धान की पौध रावत जी के पास लेकर आ रहे हैं। सभी को अपनी जिम्मेदारी पता है।
बादलों से घिरे पहाड़ों की तलहटी में बसे सेबूवाला में मौसम तो बारिश वाला है। बूंदाबांदी शुरू हो गई। पर, रोपाई चलती रही। मेहर सिंह कहते हैं, थोड़ी देर में बारिश बंद हो जाएगी। कुछ समय रूकने के बाद फिर बारिश होगी। यह सब चलता रहेगा। सच में, बारिश रूक गई, पर रोपाई निर्बाध चलती रही।
82 वर्षीय बैसाखी देवी ने धान रोपाई में भरपूर सहयोग दिया। उनका कहना है, इस साल पानी मिल गया, नहीं तो पिछली बार की तरह निराश होना पड़ता।
करीब आधा घंटे में बारिश पहले से तेज थी। बच्चों ने देवेंद्र सिंह के घर पर रखीं बरसातियां, छाते लाने के लिए दौड़ लगा दी। उन्होंने खेतों की मेढ़ों, पत्थरों पर बैठे लोगों को छाते पकड़ाए और रोपाई कर रही महिलाओं को बरसातियां दीं।
हरियाली से भरपूर पहाड़ों से घिरे गांव में हल्की बूंदाबांदी, दूर तक दिखते हरेभरे सीढ़ीदार खेत, पानी लेकर पहुंचतीं गूलें, शोर मचाती जाखन नदी, रंग बिरंगी बरसातियों में पौधे रोपतीं महिलाएं, गढ़वाली लोकगीतों को गुनगुनाती महिलाएं, मेढ़ों और पत्थरों पर रंगीन छाते संभाले लोग, घंटी बजाते बैलों की जोड़ी से खेतों में मिट्टी की मथाई …, सभी दृश्यों को एक फ्रेम में देखने का मौका मिल जाए तो यह कभी नहीं भूलने वाले पल होंगे। हमने कोशिश की, पर बहुत ज्यादा सफल नहीं हो सके।
गीता देवी घर जाकर सभी के लिए चाय और नाश्ते की तैयारी करती हैं। बारिश से वातावरण में ठंडक है और पानी से भरे खेतों में खड़े रहने वालों को चाय मिल जाए तो क्या कहने। दोपहर में भोजन की व्यवस्था भी की गई।
शाम तक खेतों में रोपाई चलती रही।
मेहर सिंह मनवाल बताते हैं, इस बार हमें पर्याप्त पानी मिला। यहां खेती आर्गेनिक है। हम गोबर-पत्तियों की खाद इस्तेमाल करते हैं। नदी का पानी है, जो पूरी तरह स्वच्छ है। हमारे पास उतना ही अनाज पैदा होता है, जितनी हमारी जरूरत है। बिक्री नहीं करते। बिक्री इसलिए भी नहीं, क्योंकि यहां से शहर तक अनाज लेकर कैसे जाएंगे।