
डोईवाला। न्यूज लाइव
कांग्रेस परवादून जिलाध्यक्ष मोहित उनियाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनियाल ने स्थानीय निकाय चुनाव में डोईवाला पालिका परिषद व ऋषिकेश नगर निगम क्षेत्र में हार की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इस्तीफा दिया है। उन्होंने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को अपना इस्तीफा भेजा है। हालांकि उनका कहना है कि पार्टी ने उनको जो जिम्मेदारी सौंपी थी, उसका निर्वहन पूरी जिम्मेदारी से निभाया।
मोहित उनियाल कांग्रेस के राष्ट्रीय पैनल में प्रवक्ता रहे हैं। मोहित युवा कांग्रेस और एनएसयूआई में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा में लगभग साढ़े तीन हजार किमी. पैदल चलने वाले मोहित उनियाल उत्तराखंड में भी ग्राम यात्राएं करते रहे हैं। कांग्रेस की हरिद्वार से श्रीकेदारनाथ धाम तक की पद यात्रा में उनियाल प्रमुखता से शामिल हुए थे। उनका मानना है कि पद यात्राएं स्थानीय जनता से मिलने, उनकी समस्याओं और सुझावों को जानने का उपयुक्त माध्यम होती हैं।
“हम शर्मिंदा है” मुहिम के तहत उनियाल ने घर से स्कूल तक आने जाने में लगभग 12 से 16 किमी. (हल्द्वाड़ी से धारकोट, कंडोली से इठारना, हल्द्वाड़ी से रंगड़ गांव ) पैदल चलने वाले स्कूली बच्चों के साथ उनके गांव से स्कूलों तक की पद यात्राएं की। उनका कहना है कि समस्याओं के समाधान की पहल ग्राउंड जीरो पर जाकर करनी होगी। घर में बैठकर जनता के मुद्दे नहीं उठाए जा सकते। हमारा कर्तव्य है कि हम जनता के बीच रहें।
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उनियाल का कहना है, ऋषिकेश नगर निगम एवं डोईवाला नगर पालिका परिषद के चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों की हार की संपूर्ण जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया है।
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वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनियाल को डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित किया था। पर, इसके दो दिन बाद ही पार्टी संगठन ने उनसे टिकट वापस ले लिया था। उनियाल ने उस समय पार्टी के इस निर्णय का विरोध नहीं किया था। बल्कि, अपने समर्थकों एवं संगठन के कार्यकर्ताओं ने पार्टी प्रत्याशी के लिए कार्य करने का आह्वान किया था।
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टिकट वापस लिए जाने के दूसरे दिन सुबह मोहित उनियाल कार्यकर्ताओं और समर्थकों से मुलाकात के बाद डोईवाला विधानसभा के दूरस्थ गांव बड़कोट की पद यात्रा पर चले गए थे। उनियाल का कहना था कि जनता की सेवा ही तो करनी है, जो किसी भी पद पर रहे बिना भी हो सकती है। केवल विधायकी का चुनाव लड़ना ही जीवन का अंतिम मकसद नहीं हो सकता। यदि वो अभावों में जी रहे किन्हीं दो बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी सही तरह से निभा लेते हैं तो भी जीवन का बड़ा उद्देश्य पूरा हो जाता है।