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ग्राम यात्राः उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पास इस गांव में इतनी वीरानी क्यों है

गांव के पास से होकर गुजरेगी सड़क, पर क्या वापस लौटेंगे लोग

राजेश पांडेय। डोईवाला

“जब भी कोई गांव में आता है तो मुझे बहुत खुशी होती है। आप लोग आए तो अच्छा लगा।”

कलजौंठी गांव में करीब 80 साल के चंदन सिंह कंडारी हमसे कहते हैं, थोड़ी थोड़ी चाय पीकर जाना।

हम उनसे गांव के दूसरे हिस्से में चलने का आग्रह करते हैं।

हम आपको बताते हैं, गांव के पहले और दूसरे हिस्से की आंखों देखी…

कलजौंठी के बारे में
टिहरी गढ़वाल की नरेंद्रनगर विधानसभा में आने वाली कोडारना ग्राम पंचायत का कलजौंठी गांव दो हिस्सों में बंटा है। दोनों के बीच में लगभग तीन सौ मीटर की दूरी है।

पहले हिस्से में दो मकान हैं, जिनमें बुजुर्ग चंदन सिंह कंडारी, उनकी पत्नी कमला देवी, भाई पूरण सिंह अपनी पत्नी रोशनी देवी के साथ रहते हैं। इनके बच्चे रोजगार के सिलसिले में शहरों में रह रहे हैं। बच्चे इनका ख्याल रखते हैं, जरूरी सामान भेजते हैं और गांव आते जाते रहते हैं। चंदन सिंह कंडारी हमें अपने घर के सामने आम का बागीचा और खेत दिखाते हुए कहते हैं, पानी बिना सब सूखा पड़ा है। सिंचाई की गूल टूट गई हैं। अब तो पीने का पानी भी बहुत कम आता है। उन्होंने पशु पालने बंद कर दिए हैं, क्योंकि फसल नहीं होने पर पशुओं के लिए चारे का संकट बन जाता। वैसे भी इस आयु में उनसे पशुपालन नहीं हो सकता।

गांव का दूसरा हिस्सा वीरान है। कभी यहां दो सौ लोग रहते थे, अब इस हिस्से में कोई नहीं रहता। कभी कभार बुजुर्ग रायचंद्र सिंह कंडारी ही आते हैं। हमने इस गांव में आने से पहले सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त रायचंद्र सिंह कंडारी से संपर्क किया था। कंडारी जी से हमारी पहली मुलाकात लगभग तीन साल पहले कलजौंठी गांव में ही हुई थी। वो इन दिनों रानीपोखरी में रहते हैं, पर गांव आते जाते रहते हैं। उनके यहां आने से ऊपरी मंजिल के कमरे में साफ सफाई है, वो यहां कुछ दिन रुकते भी हैं। उनके दोमंजिला मकान की छत से आप पूरे गांव और दूर तक दिखते खेतों को देख सकते हैं। 

यहां के कच्चे- पक्के दो मंजिला मकान झाड़ झंकाड़ से घिर गए हैं। गली में ऊंची घास का कब्जा हो गया है। घरों के बाहर लगे पशुओं के खूंटे बताते हैं कि यहां पशुपालन खूब होता होगा। पेड़ों पर भालू के पंजों के निशान दिखते हैं। कुल मिलाकर जंगली जानवरों की आमद होती रहती है। घरों के आसपास खेत खाली हैं, जिनमें ऊंची घास उगी है। फलदार पेड़ों की संख्या भी यहां खूब है। पास में ही पहाड़ पर एक बड़ा भवन दिखता है, वो भी खाली है। अगर, इस पूरे इलाके के आबाद होने की कल्पना करें तो कह सकते हैं यहां का अतीत यानी पलायन से पहले की स्थिति बहुत सुहावनी रही होगी।

कलजौंठी की यात्रा के खास पल
देहरादून से करीब 40 किमी. दूर कलजौंठी गांव की रोमांचक यात्रा कुछ इस तरह पूरी हुई-

मंगलवार 26 फरवरी 2025 की सुबह करीब 11 बजे देहरादून से कलजौंठी गांव के लिए रवाना हुए। देहरादून से कलजौंठी गांव पहुंचने के लिए रायपुर होते हुए थानो, भोगपुर और यहां से कोल गांव, कोडारना पहुंचना होगा।

कलजौंठी की इस यात्रा में मानव भारती सोसाइटी के सचिव, वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं मनोवैज्ञानिक डॉ. हिमांशु शेखर, कानपुर में सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट आशुतोष पाठक, ग्राम यात्री मोहित उनियाल, पहाड़ के व्यंजनों के जानकार केएल रतूड़ी, ट्रैवल फोटोग्राफर सार्थक पांडेय शामिल हुए।

देहरादून के पास टिहरी गढ़वाल का कोडारना गांव। फोटो- सार्थक पांडेय

कोडारना बेहद सुंदर पर्वतीय इलाका है, जो उत्तराखंड के किसी दूरस्थ गांव का सा नजारा पेश करता है। इससे पहले कोल गांव तो मेरा पसंदीदा गांव रहा है। कोल के हरेभरे सीढ़ीदार खेतों को ऊंचाई से देखकर मन करता है बस यहीं खड़े होकर निहारते रहो पूरे गांव को। कोल में एक सदाबहार धारा है, जो सैकड़ों वर्षों से है। यह जलधारा पूरे गांव की खेती की सींचती है। गांव की पेयजल व्यवस्था भी इसी के भरोसे है। यहां का लाल डंडी का धान वर्षों पुराना है। पर, पलायन से यह गांव भी अछूता नहीं है।

कोडारना के लिए ऊंचाई पर चढ़ते हुए घाटी में दिखता है भोगपुर का घनी आबादी वाला इलाका। ऊंचाई से देहरादून एयरपोर्ट का रनवे और टर्मिनल दिखते हैं। पहाड़ की सर्पीली सड़क पर आगे बढ़ते हुए नरेंद्रनगर और पर्वत श्रृंख्ला पर मां कुंजापुरी का मंदिर दिखता है।

कोडारना तक तो फोर व्हीलर से पहुंच गए, पर आगे की यात्रा जोखिम वाली थी। यहां फोरव्हीलर आगे बढ़ाना हमें सही नहीं लगा,क्योंकि कच्चा-पथरीला रास्ता चौड़ा तो है, पर तीखे मोड़ और चढ़ाई व ढलान गाड़ी को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं देते। कोडारना गांव में प्राथमिक चिकित्सालय, प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र हैं। भोगपुर से थोड़ा कम तापमान वाला कोडारना देहरादून के पास प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इलाका है।

कोडारना बेहद शांत गांव, पास ही प्राइमरी स्कूल से बच्चों की आवाज सुनाई दे रहा थी।

हमें कलजौंठी जाना था, जो कोडारना से लगभग तीन से साढ़े तीन किमी. दूर है। हमने प्राथमिक विद्यालय से थोड़ा आगे चलकर राइट टर्न ले लिया। थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि अनुमान लग गया कि यह सही रास्ता नहीं है। बेहद तीखा मोड़ आया, इससे होते हुए ढाल पर थे। फिर एक और मोड़, फिर तेज ढलान। कुछ और आगे बढ़ने पर मालूम हुआ कि रास्ता बंद है। हम तो किसी घर के बागीचे में आ गए। वहां मौजूद ग्रामीणों ने पूछा, आपको कहां जाना है। हमने बताया, कलजौंठी जाना है।

वो बोले, आप गलत आ गए, आपको इससे आगे वाले ढाल पर उतरना था। हमारे सामने सवाल यह था कि इतनी बड़ी गाड़ी को वापस कैसे ले जाएं। गाड़ी को टर्न करना मुश्किल भरा था। पर, ग्रामीणों ने सहयोग किया। कार ड्राइव करते हुए मोहित उनियाल ने बागीचे में किसी तरह थोड़ी सी जगह में कार को वापस मोड़ा और फिर लगातार तीन तीखे मोड़ और खड़ी चढ़ाई से होते हुए कोडारना के प्राथमिक स्कूल तक पहुंच गए।

अबकी बार, हम कोडारना गांव से होते हुए कलजौंठी के रास्ते पर थे। कुल मिलाकर हम जोखिम उठा रहे थे। डॉ. हिमांशु शेखर ने आगाह किया कि गाड़ी से आगे नहीं जाना चाहिए। हम कलजौंठी तक पैदल चलेंगे। उनका देहरादून से चलते ही यह विचार था कि गांव तक पैदल जाएंगे।

शुरुआती लगभग तीन सौ मीटर रास्ता ढलान वाला था, पर सही था। गाड़ी आसानी से आगे बढ़ रही थी। पर, यह क्या आगे ढलान पर रास्ता खराब। गाड़ी खराब रास्ते पर चलाने का मतलब रिस्क बढ़ाना था। हमने निर्णय लिया कि गाड़ी कोडारना में ही पार्क करके पैदल चला जाए। पर, गाड़ी ढलान से बैक नहीं हो पा रही थी। रास्ता ज्यादा चौड़ा भी नहीं था। क्या करें, कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

इसी दौरान हमारी मुलाकात कोडारना के प्रधान अनिल भट्ट से हुई। वो अपने एक साथी के साथ बाइक से आ रहे थे। उन्होंने सलाह दी कि रास्ता सही है, थोड़ा ध्यान से जाना। आपकी कार कलजौंठी तक जा सकती है। आप चाहें तो करीब एक किमी. बाद, आम के पेड़ के पास गाड़ी खड़ी कर देना। मैं खुद कार से कलजौंठी तक जाता हूं। उन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया तो हम सभी जोखिम उठाते हुए कच्चे ढलान पर आगे बढ़ गए।

मोहित उनियाल बेहद शानदार ड्राइविंग करते हैं। उन्होंने लगभग एक किमी. गाड़ी आगे बढ़ाई और आम के पेड़ के पास गाड़ी पार्क कर दी। यहां से हमने कलजौंठी तक पैदल चलने का फैसला किया।

हमारा मानना है कि आप पैदल ही चलें तो ज्यादा बेहतर होगा।

देहरादून के पास टिहरी गढ़वाल के कोडारना से कलजौंठी गांव की लगभग तीन किमी. की पैदल यात्रा करते हुए। फोटो- सार्थक पांडेय

मैं और मोहित उनियाल, करीब तीन साल पहले दिसंबर 2021 में कोडारना से कलजौंठी तक पैदल गए थे। हम कोडारना तक बाइक से आए थे। वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं मनोवैज्ञानिक हिमांशु शेखर, सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट आशुतोष पाठक के साथ हम कच्चे, पथरीले ढलान पर चल रहे थे। डॉ. शेखर तो पहाड़ की लंबी पैदल यात्राएं करते रहे हैं। पहाड़ में ग्राम्या परियोजना, श्रीजन परियोजना के सिलसिले में आप अक्सर ग्रामीणों के बीच रहे। उनके मुद्दों को समझा और समाधान पर बात की। आपके पास ग्राम यात्राओं का लंबा अनुभव है।

आशुतोष पाठक जी के लिए पहाड़ के किसी गांव की यह पैदल यात्रा संभवतः पहला अनुभव रही। हालांकि, आशुतोष जी हेल्थ फिटनेस के लिए पैदल चलना ज्यादा पसंद करते हैं। आपकी मॉर्निंग वॉक पांच से छह किमी. की होती है। आपने देहरादून आकर इच्छा जाहिर की कि पहाड़ के किसी गांव तक पैदल चलना चाहते हैं। पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों की जटिलताओं को समझना और महसूस करना चाहते हैं। कहते हैं, कोडारना बेहद शानदार है। यह शहर से ज्यादा दूर भी नहीं है। यहां आना उनके लिए सुखद और सुकूनभरा है।

मेरे लिए ढलान पर उतरना थकावट पैदा नहीं करता, पर यह सोचना कि वापस लौटते हुए इतनी ही चढ़ाई तय करनी पड़ेगी, चिंता बढ़ाता है। वैसे मैंने मोहित उनियाल के साथ, देहरादून और टिहरी गढ़वाल के गांवों में पैदल दूरियां नापी हैं। हमने साथ-साथ कई ग्राम यात्राएं कीं। मैं मोहित से थोड़ा धीरे चलता हूं। मोहित तो पदयात्री हैं। भारत जोड़ो यात्रा में भागीदार रहे हैं। उनके साथ ढलान हो या फिर चढ़ाई, मैं कदमताल करने में पीछे रह जाता हूं।

डॉ. शेखर तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे। आशुतोष पाठक इस यात्रा को इंज्वाय कर रहे थे। पूरे रास्ते मोबाइल फोन के नेटवर्क बने रहे। पाठक जी, फोन पर यात्रा का लाइव वीडियो परिवार और अन्य जानकारों से साझा कर रहे थे। उनका कहना है कि उत्तराखंड का देहरादून के पास वाला यह इलाका बेहद शानदार है। दूरस्थ पर्वतीय इलाके कितने सुंदर और नैसर्गिक सौंदर्य वाले होंगे, अंदाजा लगा सकते हैं। वो कहते हैं, मैं तो बार-बार उत्तराखंड आना चाहता हूं। अगली बार, रुद्रप्रयाग की यात्रा करूंगा।

देहरादून के पास टिहरी गढ़वाल के कोडारना से कलजौंठी गांव की यात्रा के दौरान बरसाती खाले से होकर जाते हुए। फोटो- सार्थक पांडेय

हम कोडारना से कलजौंठी तक, कहीं बरसाती नालों के बीच से होकर चल रहे थे तो कहीं घने जंगल के बीच से। कहीं धूप तो कहीं पेड़ों के नीचे छाया। जहां मन किया रुक जाते।

चार्टर्ड एकाउंटेंट पाठक जी ने मुझसे पूछा, अभी कितना दूर है गांव। सच बताऊं, मुझे भी कोई आइडिया नहीं था। मैं तो तीन साल पहले वहां गया था। मैं पूरे रास्ते यही कहता रहा, थोड़ा आगे, बस दो मोड़ बाद से गांव दिख जाएगा। ऐसा कहते हुए हमने कितने ढलान और मोड़ पार कर दिए। पर, बरसाती खाले और फिर थोड़ा चढ़ाई के बाद घने जंगल के बीच से होकर गुजरते रास्ते पर मुझे आभास हुआ कि अब एक चढ़ाई के बाद गांव आ जाएगा। मैंने पाठक जी से कहा, बस अब ज्यादा नहीं चलना पड़ेगा, गांव आ गया। डॉ. शेखर बोले, ऐसा कहते हुए पूरा रास्ता पार करा दिया। पर, आप पहाड़ की यात्रा करने वालों का हौसला बांधते हो, यह अच्छी बात है। इससे उत्साह बना रहता है। इस यात्रा में मोहित उनियाल और डॉ. शेखर हमारे से लगभग आधा किमी. आगे चल रहे थे। गजब की फुर्ती है दोनों में।

पर, इस बार मेरी बात सही साबित हुई। आखिर, बात सही इसलिए भी साबित होनी थी, क्योंकि मैंने हर मोड़ और चढ़ाई को गांव के पास वाला जो बताया था। आखिरकार हमें दिख गई सड़क बनाने के लिए रोड़ी बिछाती हुई जेसीबी। पास में बैठे थे रायचंद्र सिंह कंडारी और जेसीबी चालक। सबसे पहले, हमने पानी मांगा, उन्होंने खुशी खुशी पानी उपलब्ध कराया। हमारी पानी की बोतलें खाली हो चुकी थीं। धूप और चढ़ाई का रास्ता, थोड़ा थोड़ा पानी गटकना तो जरूरत थी।

पता चला कि गुजराड़ा से कलजौंठी होते हुए आगराखाल तक सड़क बन रही है। हमने अपने दाईं ओर घाटी में देखा तो नीचे एक सड़क नजर आ रही है। कंडारी जी बताते हैं, यह सड़क रानीपोखरी से आगे बड़कोट से नरेंद्रनगर बाइपास है। यह सड़क मनइच्छा माता मंदिर के सामने से होते हुए ऋषिकेश जाए बिना सीधा नरेंद्रनगर पहुंचाती है। रास्ते में गुजराड़ा गांव है, जहां से नई सड़क बन रही है, जो कलजौंठी होते हुए सीधा आगराखाल से जोड़ेगी।

रिवर्स माइग्रेशन होगा, गांव में बढ़ेगी खुशहाली

कलजौंठी गांव के सड़क से जुड़ने की तैयारी पर करीब 70 वर्षीय रायचंद्र सिंह बेहद खुश और उत्साहित हैं। उनका मानना है, गुजराड़ा से आगराखाल तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) से लगभग सात मीटर चौड़ी सड़क बनने पर गांव में फिर से बसावट हो जाएगी। रायचंद्र सिंह बताते हैं, गुजराड़ा से आगराखाल तक वाया कलजौंठी, तन्दील, खर्की, दिऊली डांगधार, बेडधार, कखिल, चल्डगांव, सल्डोगी, कसमोली सड़क बन रही है। कलजौंंठी तक सड़क आने से रिवर्स माइग्रेशन होगा, लोग अपने गांवों में वापस लौटेंगे।उम्मीद जताते हैं कि सड़क बनने के बाद पर्यटक आएंगे, यहां आजीविका के संसाधन विकसित होंगे, स्थानीय उत्पादों की मार्केटिंग होगी, होम स्टे (Home Stay) को बढ़ावा मिलेगा। जब गांव में रोजगार मिलेगा,तो लोग शहरों में क्यों रहेंगे।

रायचंद्र सिंह कंडारी। फोटो- सार्थक पांडेय

उनका कहना है, पानी कोई बड़ी समस्या नहीं है। स्रोत पर बहुत पानी है, गांव तक पहुंचाने की व्यवस्था हो जाएगी। सड़क आने से हमारे गांव से हर साल बड़ी मात्रा पैदा होने वाले आम, कटहल, अदरक, हल्दी, गेहूं, धान की फसलों को बाजार मिल जाएगा। यहां पशुपालन से दुग्ध उत्पादन होगा, जिसको आसानी से बाजार भेजा जा सकेगा। सड़क नहीं होने से ही फसल खेतों में ही बर्बाद हो गई थी। जितने की उपज नहीं होती थी, उससे ज्यादा भाड़ा लग जाता था। सड़क बनने से ऐसा नहीं होगा।

साफ और शुद्ध हवा ने यहां रोका है हमें

चंदन सिंह कंडारी। फोटो- सार्थक पांडेय

करीब 80 वर्षीय बुजुर्ग चंदन सिंह कंडारी का कहना है, “इस गांव में वर्षों पहले पूर्वजों के तीन परिवार रहते थे। उनके बच्चों, पौत्रों के 14 परिवार हो गए। मुझे मालूम है यहां एक समय में डेढ़ सौ से दो सौ मतदाता थे। बाहर से आने वाले लोग गांव की स्वच्छ हवा और खूबसूरत नजारों की तारीफ करते थे।

चारों तरफ हरियाली थी, पशुपालन और कृषि खूब थे। सड़क नहीं होने और छोटे बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल लगभग तीन किमी. दूर जंगल के रास्ते पैदल ही कोडारना जाना पड़ता। कोडारना के बाद भोगपुर व रानीपोखरी तक बच्चे पढ़ने गए।”

“अब सभी रोजगार और बच्चों की पढ़ाई के लिए बाहर चले गए। मुझे नहीं लगता कि सड़क आने के बाद लोग वापस आ जाएंगे। शहरों में पलने बढ़ने वाले बच्चे यहां रहना पसंद नहीं करेंगे। वो गांव में खेतीबाड़ी करेंगे, उनको तो घास काटना भी नहीं आता, वो यहां आकर क्यों रहेंगे,” चंदन सिंह जी सवाल करते हैं।

वो बताते हैं,”हमें यहां रहना पसंद है, यहां की साफ और शुद्ध हवा ने हमें यहां रोका है। हमें शहर में अच्छा नहीं लगता।”

“हमारे घर के सामने आम का बागीचा है, जहां कुंतलों के हिसाब से आम उत्पादन हुआ। धान, गेहूं, दालें खूब होती थीं। अब तो आंगन में धनिया, आलू भी लगा लो, जंगली जानवर नहीं छोड़ते। सिंचाई की गूलें टूट गईं। जबकि स्रोत पर पानी बहुत है, पर यहां तक कैसे लाएं। हमने सरकार को रबर के पाइप बिछाने का प्रस्ताव दिया, पर कुछ नहीं हुआ। पानी हो तो फसल भी मिले। यहां सारे खेत बंजर हो गए, झाड़ियां उग आईं,” चंदन सिंह कंडारी कहते हैं।

इस सुंदर गांव को खाली देखना अच्छा नहीं लगा

सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट आशुतोष पाठक। फोटो- सार्थक पांडेय

सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट आशुतोष पाठक कलजौंठी की यात्रा के अपने अनुभव को साझा करते हैं, “मैंने जीवन में पहली बार पहाड़ के किसी दुर्गम गांव तक ट्रैक किया है। रास्तेभर बहुत सुंदर नजारे और हरियाली देखने को मिली। पर, मुझे किसी सुंदर गांव को इस तरह खाली, वीरान होता देखना अच्छा नहीं लगा। गांव खाली होने की वजह क्या है, यह तो एनालिसिस करना पड़ेगा, पर प्रारंभिक जानकारी के अनुसार शायद पानी और अन्य बुनियादी सुविधाएं नहीं होने की वजह से लोग गांव छोड़कर गए।”

“रही बात, गांव तक सड़क पहुंचने की, यह सुखद है टूरिज्म से स्वरोजगार के नजरिए से, गांव तक परिवहन की सुविधा के लिए, यहां की उपजाऊ भूमि पर तैयार होने वाली फसलों के लिए, पर इनके बीच एक सवाल जो महत्वपूर्ण है, वो है, पानी की सुविधा, जिसके बिना कुछ संभव नहीं दिखता। यहां तक किसी स्रोत से आने वाली पानी की लाइनें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। सिंचाई के लिए पानी नहीं है। किसी भी क्षेत्र के विकास में सरकार की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। सरकार यहां ओवरहेड टैंक निर्माण से पर्याप्त पानी उपलब्ध कराए। रिवर्स माइग्रेशन हो जाए और सरकार से भरपूर सहयोग मिले तो गांव फिर से वैसा हो जाएगा, जैसा कि पहले गुलजार था, पाठक जी कहते हैं।

रुरल टूरिज्म सहित कई विकल्प स्वरोजगार के

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाविद् डॉ. हिमांशु शेखर। फोटो- सार्थक पांडेय

शिक्षाविद एवं वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. हिमांशु शेखर, जिनको पर्वतीय क्षेत्रों में विकास कार्यों एवं आजीविका संवर्धन संबंधी गतिविधियों का व्यापक अनुभव है, का कहना है, यहां की बायोडायवर्सिटी अद्भुत है। आप पक्षियों की तरह तरह की आवाज सुन सकते हैं। हमने आने जाने में छह किमी. ढलान और चढ़ाई का पैदल सफर किया, पर ज्यादा थकान का अनुभव नहीं हुआ। वास्तव में यह जगह शानदार है और पर्यटकों के लिए कुछ समय गुजारने के लिए बेहतर है।

पर, सवाल यह है कि रूरल टूरिज्म या एडवेंचर टूरिज्म, जिस भी दिशा में डेवलपमेंट करना है, उसके लिए गांव में लोग भी होने चाहिए।
ग्रामीणों के लिए स्वरोजगार सहित बुनियादी सुविधाओं के इंतजाम होते तो पूरा गांव माइग्रेशन नहीं करता। हालांकि कलजौंठी गांव में चार बुजुर्ग रह रहे हैं। गांव को फिर से गुलजार करने के लिए सभी जरूरी  सुविधाएं चाहिए, फिर कहा जा सकता है कि रिवर्स माइग्रेशन होगा। सड़क पहुंचने से सभी समस्याएं हल नहीं हो सकतीं। इससे गांव तक टूरिस्ट आ सकते हैं, जिनके लिए होमस्टे, स्थानीय उत्पादों की बिक्री जैसे रोजगारपरक गतिविधियां आय उपार्जन का साधन बन सकते हैं।

बुनियादी सुविधाएं मिलेंगी तभी हो पाएगा रिवर्स माइग्रेशन

ग्राम यात्री मोहित उनियाल। फोटो- सार्थक पांडेय

ग्राम यात्री मोहित उनियाल कहते हैं, मैं यहां पहले भी आया था। इस बार यह जानने आया हूं कि तीन साल में यहां के हालात में क्या बदलाव हुआ। मुझे कोई बदलाव नहीं दिखता। इसका मतलब यह हुआ कि बदलाव के लिए किसी भी तरह का कोई दखल नहीं किया गया। हां, मुझे सड़क के लिए कटिंग करते हुए जेसीबी दिखाई दी, जिसका मतलब यह हुआ कि गुजराड़ा से आगराखाल तक प्रस्तावित रोड पर काम शुरू हुआ है, पर यह निर्माण जिस गति से होना चाहिए था, वो नहीं दिखता। सड़क कब तक बन पाएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता।

सड़क बनाने से यहां तक पहुंच आसान हो जाएगी, पर यह काफी नहीं है। माना जा रहा है कि यहां सड़क बनने से रिवर्स माइग्रेशन हो जाएगा। रिवर्स माइग्रेशन के लिए सबसे पहली आवश्यकता पर्याप्त पानी, सिंचाई व पीने के लिए चाहिए। बुनियादी संसाधन जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार के संसाधन सबसे अहम तत्व हैं। यहां बिजली है, जो कि अच्छी बात है। रुरल टूरिज्म हो या एडवेंचर टूरिज्म को संचालित करने के लिए स्थानीय लोगों का यहां होना सबसे जरूरी है, पर लोग तो तभी आएंगे, जब यहां सुविधा संसाधन होंगे।

कोडारना ग्राम पंचायत की जनसंख्या (2011 की जनगणना के अनुसार*)

Uttarakhand Tehri Garhwal Narendranagar Kudarna Rural Number of households 85
Uttarakhand Tehri Garhwal Narendranagar Kudarna Rural Total population – Person 443
Uttarakhand Tehri Garhwal Narendranagar Kudarna Rural Total population – Males 230
Uttarakhand Tehri Garhwal Narendranagar Kudarna Rural Total population – Females 213

* कोडारना ग्राम पंचायत में आने वाला बखरोटी गांव में वर्तमान में कोई नहीं रहता। बखरोटी के कई परिवार देहरादून जिले के बड़कोट गांव में बस गए। कलजौंठी के कई परिवार रानीपोखरी, भोगपुर, भानियावाला, देहरादून के आसपास बस गए। वर्तमान में जनसंख्या कम ही होगी, ऐसा माना जा रहा है। कोडारना गांव आबाद है, यहां कृषि भी हो रही है। कोल गांव में भी कई परिवार पलायन कर गए। यहां कुछ ही परिवार रह रहे हैं। कृषि अब यहां की आय का प्रमुख स्रोत नहीं है।

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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