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हरीश रावत के ट्वीट ने खोला कांग्रेस में अंतर्कलह, लोग बोले- दूसरी पार्टी बना लो या ज्वाइन कर लो

देहरादून। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया पर संवाद तो करते हैं, पर सीधी बात करने से बच जाते हैं। वो बार-बार संदेश देते हैं कि कांग्रेस से आहत हैं, पर सीधे तौर पर नहीं बताते कि कांग्रेस में उनकी राह कौन रोक रहा है और क्यों उनको आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा है, जबकि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में हरीश रावत की सक्रियता सबसे ज्यादा दिखाई देती है।
रावत ट्वीट के माध्यम से अपनी बात रखते हैं और यूजर्स उनको अपनी पार्टी बनाने या फिर कोई और ज्वाइन करने की सलाह देते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री रावत का नया ट्वीट क्या है और इससे राजनीतिक मायने क्या हैं, इन पर बात करने से पहले यह जान लेते हैं कि रावत ने कुछ दिन पहले क्या कहा था, क्योंकि इन बातों का वर्तमान वक्तव्य से सीधा संबंध है।
रावत ने एक पोर्टल के सर्वे का हवाला देते हुए कहा था, मेरे मन में बड़ी हलचल है, एक तिहाई से ज्यादा लोगों की मुख्यमंत्री के रूप में पसंद बनना एक बड़ी सौगात है और ये सौगात उस समय और प्रखर हो जाती है जब इस पर पार्टी की शक्ति लगी हुई नहीं होती है। जिसके नेतृत्व को लेकर पार्टी में ही असमंजस हो उसको इतना आर्शीवाद मिलना जनता जनार्दन की कृपा है। उन्होंने कहा था, मैं अपने आपको एक साधनहीन, शक्तिहीन, समर्थनहीन कहूँगा क्योंकि शक्तिशाली लोगों का मेरे पास समर्थन हासिल नहीं है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा था, मैं जानता हूँ, कुछ बड़ी शक्तियाँ किसी भी हालत में मुझे 2014 से 2016 की ओर 2017 के प्रारंभ तक की पुनरावृत्ति नहीं करने देंगे। मुझे मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए पूरी शक्तियाँ एकीकृत होकर काम करेंगी।
रावत चुनाव को समुद्र बताते हुए एक और ट्वीट करते हैं- है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है,  सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं। जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं। मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिये, अब विश्राम का समय है!

फिर लिखते हैं, फिर चुपके से मन के एक कोने से आवाज उठ रही है “न दैन्यं न पलायनम्” बड़ी उहापोह की स्थिति में हूंँ, नया वर्ष शायद रास्ता दिखा दे। मुझे विश्वास है कि भगवान केदारनाथ जी इस स्थिति में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
“न दैन्यं न पलायनम्” श्री भगवद् गीता का श्लोक है, जिसका सामान्य रूप से हिन्दी अर्थ है- कोई दीनता नहीं चाहिए, चुनौतियों से भागना नहीं है, बल्कि जूझना जरूरी है।”
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न दैन्यं न पलायनम् शीर्षक से कविता लिखी थी, जिसकी अंतिम पंक्तियों में लिखा है-
आग्नेय परीक्षा की
इस घड़ी में—
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें:
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
अब बात करते हैं, हरीश रावत के इन ट्वीट श्रृंख्ला पर यूजर्स क्या कह रहे हैं-
एक यूजर ने लिखा- पार्टी बनाने,दूसरी में जाने की जगह संन्यास लीजिये। विश्राम करिए, हर दल के पहाड़ हितैषी के मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध रहिए। अब कोई कदम कद छोटा ही करेगा,शीर्ष की प्रतिष्ठा के साथ रहना अच्छा रहेगा।

Aapko khud ki ek party banane cahiye sir. Uttrakhand aapke sath hai agr aap khud ki party banate ho to. (आपको खुद की एक पार्टी बनानी चाहिए सर। उत्तराखंड आपके साथ है, अगर आप खुद की पार्टी बनाते हो तो।)

एक और यूजर लिखते हैं- आप यूकेडी से लड़ो, आपका मुख्यमंत्री बनना तय है।

एक अन्य ने लिखा, बहुत हुआ रावत जी। आप एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं और अपने फैसले लेने में सक्षम भी हैं.. अब आदेश नहीं आत्ममंथन कर अपनी सुनिए।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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