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पहाड़ के असिंचित क्षेत्रों में अदरक की खेती फायदेमंद और व्यावसायिक
अदरक की खेती का वैज्ञानिक तरीका बता रहे हैं विशेषज्ञ
- डॉ. राजेंद्र कुकसाल
(वरिष्ठ कृषि एवं औद्यानिकी विशेषज्ञ)
राज्य के पर्वतीय असिंचित (वर्षा आधारित) क्षेत्रों में अदरक की खेती नगदी और व्यावसायिक फसल के रूप में लोकप्रिय है। यह लेख अदरक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, बुवाई विधि, कीट-रोग प्रबंधन और पैदावार की जानकारी देता है।
अदरक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
अदरक की खेती के लिए गर्म और नमी वाली जलवायु जरूरी है। समुद्र तट से 1500 मीटर ऊंचाई तक के क्षेत्र, जहां तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस रहता हो, इसके लिए आदर्श हैं। हल्की छांव वाली जगह, जैसे बागानों में अंतरफसली खेती, अदरक की स्वस्थ और अधिक उपज देती है।
मुख्य बिंदु:
- गर्म और नम जलवायु
- 1500 मीटर तक ऊंचाई
- 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान
अदरक की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
अदरक की सफल खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली, जीवांश युक्त बलुई दोमट या मध्यम दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
- पीएच मान: 5.0 से 6.5
- जैविक कार्बन: 1% से अधिक
- यदि जैविक कार्बन कम हो, तो 10 किलो/नाली की दर से जंगल की ऊपरी मिट्टी और कम्पोस्ट खाद मिलाएं।
- अधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी उपयुक्त नहीं।
- अम्लीय मिट्टी (पीएच मान 6.5 से कम होने पर 100 ग्राम/वर्ग मीटर चूना मिलाएं।
खेत की तैयारी
- मिट्टी को 2-3 जुताई से भुरभुरी करें।
- अंतिम जुताई में 4-5 कुंतल गोबर की खाद/नाली मिलाएं।
- खेत को छोटी क्यारियों में बांटें और 2 से 2.5 मीटर लंबी मेड़ बनाएं।
- अदरक के बीज की बुवाई मेड़ों पर करें।
अदरक की अनुमोदित किस्में
- सुप्रभा, हिमगिरि, रियो डी जेनेरियो, मरान
- स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुकूल, रोग-रोधी और अच्छी उपज वाली पारंपरिक किस्में चुनें।
बुवाई का समय और बीज मात्रा
- सर्वोत्तम समय: मध्य अप्रैल से मई (अप्रैल सबसे उत्तम)
- बीज मात्रा: 30-40 किलो/नाली
- प्रकंद का चयन: 20-30 ग्राम वजन, रोगमुक्त, 1-2 आंखों वाला
बीज उपचार
रासायनिक उपचार
- 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 3 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या 2.5 ग्राम मैनकोजेब/लीटर पानी के घोल में 20-30 मिनट डुबोएं।
- छाया में सुखाकर बुवाई करें।
जैविक खेती में उपचार
- प्रकंद को हल्के पानी से गीला करें।
- ट्राइकोडर्मा (8-10 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें।
- छाया में सुखाएं।
नोट: बुवाई के समय मिट्टी में नमी जरूरी।
भूमि उपचार
फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए:
- 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलो कम्पोस्ट में मिलाएं।
- एक सप्ताह तक गीले बोरे से ढककर छाया में रखें।
- इस मिश्रण को 1 एकड़ (20 नाली) खेत में मिलाएं।
बुवाई की विधि
- मेंड़ पर 30-40 सेमी की दूरी पर पंक्तियां बनाएं।
- प्रकंद से प्रकंद की दूरी 15-20 सेमी रखें।
- 5-8 सेमी गहराई पर बोएं।
- छाया के लिए मक्की की फसल की हर तीसरी कतार लगाएं।
पलवार (मल्चिंग)
- बुवाई के बाद 5-7 सेमी मोटी पलवार (सूखी पत्तियां, घास, धान की पुआल) डालें।
- यह नमी, तापमान और खरपतवार नियंत्रण में मदद करती है।
- 40 दिन बाद दूसरी मल्च परत डालें (यदि जरूरी हो)।
खाद और सिंचाई प्रबंधन
- खाद: हर 20-30 दिन में 10 लीटर जीवामृत/नाली दें।
- सिंचाई: असिंचित क्षेत्रों में वर्षा पर निर्भर; बिना वर्षा के 2-3 सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण
- बुवाई के 1 माह में पहली निराई करें।
- जरूरत पड़ने पर गुड़ाई और मिट्टी चढ़ाएं।
प्रमुख कीट और नियंत्रण
कीट: सफेद गिडार, प्रकंद बेधक
नियंत्रण उपाय:
- कीटों के अंडे, सूंडी और वयस्कों को नष्ट करें।
- प्रकाश प्रपंच से रात में कीट पकड़ें।
- फ्यूरोमोन ट्रैप का उपयोग करें।
- 5-6% गोमूत्र घोल का छिड़काव करें।
- व्यूवेरिया वेसियाना (5 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें।
- नीम आधारित कीटनाशक (निम्बीसिडीन, इको नीम) का 5 मिली/लीटर पानी में प्रयोग करें।
- रासायनिक उपाय: इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरीपाइरीफोस (1 मिली/लीटर पानी) का 3 छिड़काव, 3 दिन के अंतराल पर।
प्रमुख रोग और रोकथाम
1. प्रकंद विगलन (गट्ठी सड़न)
- कारण: पीथियम फफूंद
- लक्षण: पौधा पीला होकर सूखता है, प्रकंद सड़ता है।
2. अदरक का पीला रोग
- कारण: फ्यूजेरियम फफूंद
- लक्षण: पत्तियां पीली पड़कर सूखती हैं, पौधा मुरझाता है।
रोकथाम:
- अच्छी जल निकास वाली भूमि चुनें।
- बीज को ट्राइकोडर्मा से उपचार करें।
- फसल चक्र अपनाएं।
- ट्राइकोडर्मा घोल (5 ग्राम/लीटर पानी) का 5-6 दिन अंतराल पर छिड़काव करें।
- रासायनिक उपचार: कार्बेन्डाजिम (0.1%), मैनकोजेब (0.3%) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का प्रयोग।
फसल की खुदाई और पैदावार
- खुदाई का समय: 8-9 माह (पत्तियां पीली पड़ने पर)
- पैदावार: 1.5-2 कुंतल/नाली
- बीज के लिए रोगमुक्त खेत चुनें।
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