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बेटियों को आत्मनिर्भर बना रही केशवपुरी की गीता

पढ़ाई अच्छी बात है और यह आपके भविष्य को अच्छा बनाने में मदद करती है। दो साल पहले मैंने कक्षा आठ के बाद पढ़ना छोड़ दिया, पर मुझे अच्छे भविष्य के लिए कुछ तो करना था। मैंने सिलाई करना सीख लिया। कपड़े सिलाई में मेरा मन लगने लगा और आज इस हुनर ने मुझे आत्मनिर्भर बना दिया।

मैं अपने सिलाई सेंटर पर और लड़कियों को भी कपड़े सिलना सीखा रही हूं। एक साल भी नहीं हुआ, अब तक आठ लड़कियां मुझसे सीख चुकी हैं। वो किन्हीं और सिखाएंगी और फिर उनसे सीखने वाले किन्हीं और को। मुझे भी सिलाई से रोजगार मिल गया है। एक माह में लगभग पांच हजार रुपये तक की आय हो जाती है।

तक धिनाधिन की टीम रविवार को केशवपुरी बस्ती में गीता के घर पर थी। गीता से बात करते हुए हमें महसूस हुआ कि केशवपुरी बदल रहा है। रोटी कपड़ा बैंक के मनीष कुमार उपाध्याय की तरह गीता ने भी अभिनव पहल की है। होनहार बेटी गीता यहां ऐसी मशाल प्रज्ज्वलित कर रही है, जिसकी रोशनी में बेटियां आत्मनिर्भर हो रही हैं। सच मानिये गीता के साथ इन सभी बेटियों का आने वाला कल, सुखद और खुशहाल होगा।

गीता ने हमें बताया कि उनके दो भाई और चार बहनें हैं। पिता रवि साहनी की करीब छह साल पहले मृत्यु हो गई थी। मां पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ गई। मां सुशीला दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार का पालन कर रही हैं। मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगा, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मां ने मुझे स्कूल भेजने का काफी प्रयास किया। मैं चाहती थी कि सिलाई सीखकर मां को सहयोग करूं। डोईवाला में एक सिलाई सेंटर पर लेडिज कपड़े बनाना सीखा। सिलाई में डिप्लोमा भी हासिल किया।

जब मुझे विश्वास हो गया कि मैं अब अच्छी तरह कपड़े सिलाई कर सकती हूं तो घर के पास ही एक सेंटर खोल लिया। मेरे पास कुछ लड़कियां भी सिलाई सीखने आने लगीं। मुझे अच्छा लगता है कि जब मैं लड़कियों को सिलाई सिखाती हूं। जब तक मेरे पास लड़कियां सिलाई सीखने आती रहेंगी, मैं उनको सिखाती रहूंगी। गीता ने संदेश दिया कि बेटियों को स्कूल भेजिए, उनको अच्छे भविष्य से कुछ हुनर जरूर सिखाइए। घर में साफ सफाई रखिए और स्वस्थ रहें।

इस दौरान हमारे साथ रोटी कपड़ा बैंक के संचालक मनीष कुमार उपाध्याय थे। मनीष जी भी केशवपुरी में रहते हैं और डोईवाला क्षेत्र में असहाय, बेसहारा लोगों को शाम का भोजन उपलब्ध कराते हैं। मनीष कहते हैं कि उनके इस काम में एक दिन की छुट्टी नहीं हो सकती,क्योंकि ये लोग उनका इंतजार करते हैं। वो नहीं चाहते कि कोई भूखा सोए। वहीं कक्षा नौ के छात्र सार्थक पांडेय ने फोटो और वीडियो कवरेज में सहयोग किया।

गीता के साथ बातचीत के समय वहां बच्चे भी पहुंच गए। हमने उनसे बात की, उनसे पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछा। कक्षा आठ की छात्रा रिंकी ने विख्यात कवि शिव मंगल सिंह सुमन जी की कविता सुनाई।

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे ।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले ।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने ।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी ।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।

पिंकी को पूरी कविता याद है और इसका अर्थ भी मालूम है। बताती हैं कि उनकी किताब में है यह कविता। उन्होंने शुरू की चार लाइनों को अर्थ समझाया कि पक्षियों को पिंजरों में बंद न रखो। इनको गगन में स्वतंत्र होकर उड़ने दो। उनको आपकी कटोरी में रखा पानी नहीं चाहिए, ये तो नदियों का बहता जल पीने की चाह रखते हैं। आप उनकी उड़ान में बाधा मत डालो।

पिंकी ने हमारे इस सवाल का बहुत शानदार जवाब दिया कि हवा को एक दिन की छुट्टी दे दी जाए तो क्या होगा। पिंकी बताती हैं कि हवा को छुट्टी देने का मतलब है कि पूरे वातावरण में से आक्सीजन को खत्म कर देना। आक्सीजन नहीं रहेगी तो हम सबका जीवन भी नहीं रहेगा।

वातावरण में धुआं करके, ज्यादा ईंधन फूंक कर हवा को नाराज करना अच्छी बात नहीं है। वायु में प्रदूषण फैलाएंगे तो एक दिन हवा हमसे दूर चली जाएगी। हमने पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, सवाल भी पूछा, जिसका बच्चों ने बहुत शानदार जवाब दिया और फिर पेड़ की महत्ता पर हमसे बात की। बच्चों से बहुत सारी बातों के बाद हम फिर लौट आए, आपको सबकुछ बताने के लिए।

फिर मिलते हैं तक धिनाधिन के अगले पड़ाव पर, तब तक के लिए आपको बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तक धिनाधिन। कृपया तक धिनाधिन के फेस बुक पेज को फॉलो करें, ताकि हम और आप कुछ बातों को साझा करते रहें। आपका स्नेह ही तो हमारा उत्साह बढ़ाता है,.कुछ नया और रचनात्मक करने के लिए।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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