राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
महिला डॉक्टर को उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव के घर जाकर उनकी पत्नी का चेकअप करने के निर्देश और फिर उनके साथ अभद्रता का मामला सुर्खियों में है। डॉक्टर पर स्वास्थ्य सचिव की पत्नी से माफी मांगने का दबाव बनाना, माफी नहीं मांगने पर उनका स्थानांतरण होना और फिर डॉक्टर के इस्तीफा देने का प्रकरण उस 22 साल पुराने उत्तराखंड का है, जो इसी तरह के रवैये वाली नौकरशाही से परेशान होकर नये राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था।
राज्य का निर्माण हुआ और उम्मीद व्यक्त की गई कि यहां उन स्थानीय प्रतिनिधियों की सरकार बनेगी, जिन्होंने यहां के मुद्दों को जीया और समझा है। पर, क्या राज्य निर्माण के आंदोलन में बढ़चढ़कर शामिल होने वालों को यह अंदाजा रहा होगा कि अफसरों को तकलीफ न हो, इसके लिए इलाज के लिए लाइन में खड़ी जनता को नजर अंदाज कर दिया जाएगा। किसी अफसर की पत्नी के इलाज के लिए सीनियर डॉक्टर को ड्यूटी टाइम में उनके घर भेजना कितना सही है।
डॉक्टर का कहना है कि अफसर की पत्नी ने उनके साथ गलत व्यवहार किया। यदि ऐसा मामला नहीं होता, डॉक्टर को इस्तीफा नहीं देना पड़ता तो क्या यह प्रकरण सुर्खियों में होता। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अफसरों के घरों पर जाकर उनके परिजनों का चेकअप करने के लिए कितने डॉक्टरों अपनी ओपीडी में लगी लंबी लाइन को भुलाना होता होगा। हो सकता है, यह पहला मामला हो, पर इस प्रकरण राज्य में अफसरशाही के रौब और दबाव को जगजाहिर कर दिया है।
यह तो था देहरादून वाला वो उत्तराखंड, जहां अगर कुछ चलता है तो वीआईपी और वीवीआईपी का रौब और दबाव। अब उस उत्तराखंड की बात करते हैं, जहां इलाज के अभाव में महिलाओं के दम तोड़ने की खबरें आती रहती हैं।
डाउन टू अर्थ की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड में वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच कुल 798 महिलाओं ने प्रसव के दौरान या प्रसव से जुड़ी मुश्किलों के चलते दम तोड़ा। वर्ष 2016-17 में राज्य में कुल 84 मातृ मृत्यु हुईं। 2017-18 में 172, 2018-19 में 180, 2019-20 में 175 और 2020-21 में 187 महिलाओं ने बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया में जान गंवाई। सूचना का अधिकार (आरटीआई) के ज़रिये ये आंकड़े हासिल किए गए हैं। उत्तराखंड के लिए चिंता की बात ये है कि यहां प्रसव के दौरान होने वाली मौतें कम होने की जगह बढ़ रही हैं। वर्ष 2016-18 के बीच मातृ मृत्युदर का राष्ट्रीय औसत 113 है। एक ओर मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच साल में राज्य में प्रसव के दौरान 798 महिलाओं और 3295 नवजातों की मृत्यु हुई है।
वहीं एक रिपोर्ट के अनुसार, चार राज्यों पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में एमएमआर (मातृ मृत्यु अनुपात) में बढ़ोतरी पाई गई। 2017-19 में उत्तराखंड में यह आंकड़ा 101 है। 2016 से 2018 तक 99 और 2015 से 2017 तक एमएमआर 89 रहा। जबकि देश में एमएमआर जो 2016-18 में 113 था, वह 2017-19 में घटकर 103 हो गया, जो 8.8 प्रतिशत गिरावट दर्शाता है।
हाल ही कुछ खबरों पर बात करते हैं। अल्मोड़ा का भैसियाछाना ब्लाक , जो जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी. दूर है। इसी ब्लाक में पतलचौरा नाम का गांव है, जिसमें 15 से 20 परिवार रहते हैं। चार जनवरी, 2022 की रात पतलचौरा गांव की एक महिला को प्रसव पीड़ा हुई। परिजनों ने महिला को डोली में बैठाकर सर्द रात में बारिश के बीच लगभग पांच किमी. चढ़ाई पार करके सड़क तक पहुंचने का निर्णय लिया। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सड़क तक पहुंचने के लिए पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ते रहे। आधे रास्ते में डोली में ही बच्चे का जन्म हो गया।
यह तो उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों की घटनाएं हैं, राजधानी देहरादून से करीब 30 किमी. दूर भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं। डोईवाला विधानसभा के अंतर्गत हल्द्वाड़ी गांव तक पांच किमी. सड़क नहीं बनी, जबकि इसके तीन सर्वे हो चुके हैं। हल्द्वाड़ी गांव निवासी 35 वर्षीय गंभीर सिंह सोलंकी बताते हैं, मैं उस रात को कभी नहीं भूल सकता। बहुत तेज बारिश हो रही थी। गांव से सड़क तक जाने वाला कच्चा रास्ता बंद हो गया था। मेरी पत्नी प्रसव पीड़ा से व्यथित थीं। उनको जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना था। अस्पताल गांव से बहुत दूर है और हमें तेज बारिश में ही जंगल का पांच किमी. ऊबड़ खाबड़ रास्ता तय करना था। ग्रामीणों के सहयोग से हम किसी तरह एक दूसरे के सहारे आगे बढ़ रहे थे। मुझे याद है, उस समय रात के 12 बजकर 20 मिनट पर, मेरी बिटिया ने रास्ते में ही बारिश में जन्म लिया।”
ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए गंभीर सिंह कहते हैं, मुझे हमेशा इसी बात का डर रहता है कि ऐसा किसी के साथ न हो। उनकी बिटिया अब आठ साल की हो गई है। पर, हल्द्वाड़ी गांव से अस्पताल अभी भी, पहले जितना ही दूर है और रास्ता भी उसी हाल में है। हालांकि, गांव वालों ने श्रमदान करके इसको यूटिलिटी चलने लायक बना दिया है, लेकिन जोखिम हमेशा बरकरार है।
उत्तराखंड से कुछ खबरें और हैं-28 अक्तूबर, 2021 की बृहस्पतिवार रात धौलादेवी ब्लॉक निवासी 22 वर्ष की महिला को प्रसव पीड़ा हुई। सड़क बंद होने के कारण घर में ही प्रसव के बाद महिला की हालत खराब होने पर उनको अस्पताल ले जाने की नौबत आई, लेकिन बंद सड़क के कारण महिला को जान गंवानी पड़ी।
29 जून, 2021 को पिथौरागढ़ जिले के नामिक गांव में गर्भवती महिला को आपदा में ध्वस्त पैदल रास्तों से डोली के सहारे 10 किमी पैदल चलकर बागेश्वर जिले के गोगिना गांव पहुंचाया। इसके बाद 35 किमी दूर वाहन से कपकोट अस्पताल ले जाया गया। यहां सुरक्षित प्रसव हो गया है।
17 सितंबर 2017 को अल्मोड़ा के धारानौला क्षेत्र में महिला को सड़क पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। एंबुलेंस उस जगह पर नहीं पहुंच सकी थी।
17 जनवरी, 2020 को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी तहसील के मालूपाती गांव तक सड़क नहीं होने पर गर्भवती महिला को माइनस तीन डिग्री तापमान में खेत में ही शिशु को जन्म देने को मजबूर होना पड़ा।
चंपावत के डांडा में 22 जून,2016 को 23 साल की गर्भवती महिला की हालत बिगड़ने लगी। ग्रामीणों ने महिला को कंधों के सहारे 25 किमी पैदल दूरी लांघ रोड हैड पर कलोनियां पहुंचाया।