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चिट्ठियों से ट्वीटर तकः हरीश रावत की सियासत का अंदाज नहीं बदला
देहरादून। राजनेताओं की लोकप्रियता का अंदाजा सोशल मीडिया पर उनके फालोअर्स देखकर लगाया जाता है। सबकुछ बदल रहा है और उत्तराखंड में डिजीटल तकनीकी का सबसे ज्यादा लाभ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उठा रहे हैं। चुनावी दौर में रावत के आगामी कार्यक्रम क्या हैं, वो कहां जा रहे हैं, किन लोगों से मिल रहे हैं सहित जनता और कार्यकर्ताओं से उनका संवाद सोशल मीडिया पर निरंतर मिलता है।
कुल मिलाकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सीएम हरीश रावत ने तकनीकी के साथ कदम तो बढ़ाएं हैं, पर उनकी सियासत का तरीका आज भी वैसा ही है, जैसा पहले था। आजकल उनके ट्वीट मीडिया में सुर्खियां बन रहे हैं, पहले उनकी चिट्ठियां सियासी माहौल गरमाती थीं।
ट्वीटर और फेस बुक पर क्लिक करते ही उनके सवाल, मन की बात, संकेतों में किए गए सियासी हमले जगजाहिर हो जाते हैं, पर वर्षों पहले जब सियासत डिजीटल पर ज्यादा नहीं थी, तब रावत चिट्ठियों का सहारा लेते थे।
मीडिया में आठ साल पुरानी एक खबर से अंदाजा हो जाएगा, रावत का सियासत करने का अंदाज नहीं बदला। 2012 के चुनाव के बाद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाए जाने का हरीश रावत ने काफी विरोध किया था। उस समय रावत ने कहा था, उनकी कांग्रेस छोड़ने की कोई योजना नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री पद पर अपने दावे के लिए लड़ाई जारी रखेंगे।
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मई, 2013 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी और विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री थे। उस समय केंद्रीय मंत्री रहे रावत अपनी ही पार्टी की सरकार पर सियासी हमले कर रहे थे। डिजीटल का दौर उतना नहीं था, इसलिए रावत चिट्ठियों का सहारा लेते थे। 20 मई, 2013 खबर पर नजर डालते हैं- जिसके अनुसार, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के बीच तनातनी चल रही थी।
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