
डोईवाला नगर पालिका इस तरह करती है कूड़े से कमाई
आपके घर का कूड़ा कहां जाता है, इसका होता क्या है
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
हमने अपने घर का कूड़ा नगर पालिका की गाड़ी में डाल दिया। इसके बाद, हम इस कूड़े के बारे में कुछ भी जानना नहीं चाहते। हमारे में से शायद अधिकतर लोगों को यह भी नहीं पता होगा कि घर से निकले सूखे या गीले कूड़े को अलग-अलग नहीं करके कितना बड़ा खतरा मोल ले रहे हैं। हम यह जानना भी नहीं चाहते कि पॉलीथिन में भरकर फेंका गया कूड़ा, कहां जाएगा और इसका क्या होगा।
डोईवाला नगर पालिका की बात करते हैं, जिसकी गाड़ियां 20 वार्डों से इकट्ठा किया कूड़ा केशवपुरी स्थित एमआरएफ सेंटर तक पहुंचाती हैं। लगभग एक साल से काम कर रहे इस सेंटर पर कूड़े को 20 अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाता है, जिसमें किचन वेस्ट से लेकर सैनिटरी वेस्ट, जैसे डायपर, नैपकीन्स, बैंडेज, बाल और भी अन्य चीजें होती हैं, वहीं शार्प्स (तेज धारदार) वस्तुएं रेजर, ब्लेड्स, टूटा कांच, यूज की गईं सीरिंज और इंजेक्शन्स की शीशियां तक होती हैं…, पर इस कचरे में सबसे ज्यादा पेपर, खाद्य पदार्थों से रैपर्स, पॉलीथिन की मात्रा बहुत अधिक होती है।

कूड़े को अलग-अलग कर रहीं महिला कर्मचारी अपील कर रही हैं कि कृपया घर पर ही गीले और सूखे कचरे को अलग कर लीजिए। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो हमें बड़ी दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। अधिकतर लोग डायपर और सैनेटरी नैपकीन पेड्स तक कचरे में मिलाकर नगर पालिका की गाड़ियों में डाल देते हैं, जिनको एमआरएफ सेंटर में छंटाई के दौरान कर्मचारियों को अलग-अलग करना पड़ता है।

करीब तीन दशक पहले, महज सात वार्डों से डोईवाला नगर पंचायत का गठन हुआ था। वर्तमान में, आसपास के ग्रामीण इलाकों को शामिल करके 20 वार्डों वाली नगर पालिका अस्तित्व में है। एक अनुमान के मुताबिक, डोईवाला नगर पालिका क्षेत्र से लगभग 25 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना इकट्ठा होता है, जिसमें चिप्स के रेपर, पॉलिथीन, पन्नियों, गत्ते- कागज की मात्रा अधिक है।
एमआरएफ सेंटर (Materials Recovery Facility Center) में लगी ट्रामल मशीन ( Trommel machine) की मदद से लगभग 20 कर्मचारी 20 तरह के कचरे को अलग करते हैं। यह मशीन बारीक कचरे को अलग कर देती है और बाकी कचरे को कर्मचारी अलग-अलग निर्धारित बॉक्स में डालते हैं। इनमें अधिकतर कर्मचारी महिलाएं हैं,जो बेहद साहस के साथ स्वच्छ धरा, स्वच्छ पर्यावरण में बड़ा योगदान दे रही हैं।

एमआरएफ सेंटर क्या होता है, इस बारे में ग्रीन वर्क्स वेस्ट सॉलुशन्स के डायरेक्टर (ऑपरेशन) विकास सांगवान, जो मैकेनिकल इंजीनियर हैं, न्यूज लाइव से बातचीत में बताते हैं, “एमआरएफ सूखे कचरे के लिए एक अर्ध-स्वचालित प्रसंस्करण कारखाना है। एमआरएफ निम्न-श्रेणी के कचरे को पूरी तरह रिसाइकल करने पर फोकस करता है।”
” यह रिसाइकल होने या नहीं होने वाले कचरे को 25 से अधिक श्रेणियों में अलग-अलग करता है। यहां से उचित रिसाइकल सुविधाओं के लिए कचरा विभिन्न प्लांट्स में भेजा जाता है और रिसाइकल नहीं होने वाले कचरे को सीमेंट भट्टियों में भेजा जाता है। हम यहां कचरे से रोजगार पर फोकस करते हैं। कर्मचारियों को प्रशिक्षण के बाद विभिन्न सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी मानकों को ध्यान में रखा जाता है।”

अब बात करते हैं, तीन दशक में लगातार बड़े हुए उस कूड़े के पहाड़ की, जो पालिका के लिए पहाड़ जैसी चुनौती बना है। यह वो कूड़ा है, जिसको नगर पालिका रिसाइकल के लिए अलग-अलग कैटेगिरी में नहीं बांट सकती, इसलिए इसको उठाकर मैदान खाली करने का ठेका एक कंपनी को दिया है, जो इसकी मौके पर ही स्क्रीनिंग कर रही है, जिसमें पत्थर और अन्य मैटिरियल छनकर अलग हो रहा है। हो सकता है,सड़कों का बेस बनाने में भी इसको इस्तेमाल किया जा सके। कंपनी के अधिकारी मोहर सिंह बताते हैं, ये कचरा मुजफ्फरनगर भेजा जा रहा है, जहां इसको उपचारित करके, ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए सीमेंट फैक्ट्रियों में भेजा जाएगा।

डोईवाला के सैनिटरी इंस्पेक्टर सचिन रावत बताते हैं, “हम वार्डों से नियमित रूप से सॉलिड वेस्ट इकट्ठा कर रहे हैं। पालिका क्षेत्र में स्वच्छता बनाए रखने तथा कूड़ा प्रबंधन के लिए ग्रीन वर्क्स वेस्ट सॉलुशन्स को एमआरएफ सेंटर संचालन की जिम्मेदारी दी गई है।
“यहां कचरे को रिसाइकल के लिए अलग-अलग कैटेगिरी में छांटा जा रहा है। ग्रीन वर्क्स वेस्ट सॉलुशन्स कंपनी छंटनी किए गए कचरे को रिसाइकिल के लिए विभिन्न कारखानों में भेजती है। वहीं, पालिका को हर माह 75 हजार रुपये का भुगतान करती है, जो स्थानीय निकाय की आय है। इस तरह पालिका कचरे से आय कमा रही है,” रावत बताते हैं।
उनका कहना है, “गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग करने के लिए स्थानीय लोगों को लगातार जागरूक किया जा रहा है।”
पता नहीं चला, कब तीन किमी. खिसक गया डोईवाला
90 के दशक में नगर पंचायत बना डोईवाला कस्बा एक समय में ग्रामीण इलाका था। घिस्सरपड़ी में मौजूद डोईवाला कब खिसककर डैशवाला तक पहुंच गया, किसी को नहीं मालूम। कोई कहता है, अंग्रेजों के जमाने में 1898 में जब रेल पटरी बिछाई जा रही थी, तब यहां रेलवे स्टेशन बनाना तय हुआ और इस इलाके में उन्होंने डोईवाला का बोर्ड लगाकर स्टेशन बना दिया। तब से यह इलाका डोईवाला कहा जाने लगा और पुराना डोईवाला, जिसे अब घिस्सरपड़ी कहा जाता है, पीछे रह गया। इस बात में कितनी सच्चाई है, हम साफ तौर पर नहीं कह सकते।