Creativity
खोजता हूँ
उमेश राय
अपने कमरे में उसे खोजता हूँ,
खो जाता हूँ…
पुनर्खोज क्या है?
भूल को फूल की तरह पा जाना..
मेरा पथ श्रेय का नहीं है सखे!
गेय का पेय ही मेरा पथ्य ठहरा.
खो गयी है नेह की एक बूंद खुशबू..
ऐ समुंदर! किस तरह पाऊं उसे..
बोल उठा सहसा तभी एक परिचित-सा चित्त,
नेह की बानी, रवानी को लिए..
वह ख़्वाब कमरे में कहाँ है
देखना उस आँख से मेरे जमूरे!
रूह के पन्ने जरा तबीयत से पलट तो सही..
यही अपना खाता-बही..