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उत्तराखंड में स्टडीः क्यों नरभक्षी बन रहे बाघ

देहरादून। लगातार बढ़ती नरभक्षी गुलदार ( सामान्य बोली में बाघ) के हमलों की बढ़ती घटनाओं पर वर्ष 1998 में अॉक्सफेम इंडिया के माध्यम से किए गए अध्य्यन में यह बात प्रमुख रूप से सामने आई कि नरभक्षी गुलदार या लैपर्ड या बाघ बनने की घटनाएं समान्य नहीं हैं। इनके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं।

  • मांसाहारी जीवों की खाद्य श्रृंख्ला में बढ़ता मानवीय दखल, जिससे जंगल में शाकाहारी जीवों की संख्या घट रही है। इसके परिणाम स्वरूप मांसाहारी जीव गांवों की ओर या पालतू जीवों की ओर बढ़ रहे हैं।
  • बूढ़े हो चले बाघ और गुलदार, जो गति से भागने वाले हिरन और अन्य जीवों का शिकार नहीं कर पाते, वे गांवों की ओर आकर पहले तो मवेशियों का शिकार करते हैं। और मवेशी के भ्रम में छोटे बच्चों पर भी हमला कर देते हैं।कालांतर में उसी गुलदार या बाघ को छोटे बच्चे आसान शिकार लगते हैं, जिससे वे उनको तलाशने में लगे रहते हैं। गांवों में अधिकतर बच्चे, बूढ़े और महिलाएं ही रह गए हैं, जिससे ये जंगली जानवरों के आसान शिकार माने जाते हैं।
    चमोली के हाट गाँव में मारा गया नरभक्षी बाघ – फाइल फोटो -1999.
  • उत्तराखंड के कुछ जिलों में जंगलों में शवदाह किया जाता है, क्योंकि वहां नदियां नजदीक नहीं होतीं। शवदाह की प्रक्रिया पूर्ण दहन तक नहीं हो पाती। इसलिए बच्चे हुए अवशेषों को खाने के बाद ये खूंखार जंगली जीव नरभक्षी बन जाते हैं।
  • पलायन की वजह से गांवों में कई गोशालाएं और घर खंडहर बने हुए हैं, जैसे ही बुग्यालों में बर्फबारी होती है, तो शाकाहारी जीवों के साथ-साथ मांसाहारी जीव भी गांवों की ओर आ जाते हैं।
  • जंगली जीवों के अधिवास और कॉरिडोर में मानवीय बाधाओं से पैदा हुआ असंतुलन भी उनको आबादी की ओर खींच रहा है। यह भी इन जीवों के मनुष्य पर हमले की बड़ी वजह है, जो उनको अंततः नरभक्षी बनाती है या नरभक्षी बनाने में बड़ी भूमिका अदा करती है।
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यह अध्ययन चमोली जिले के दशोली, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि और पौड़ी गढ़वाल के पाबौ ब्लाकों उस समय पत्रकारिता स्नातक जेपी मैठाणी ने किया था।

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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