राजेश पांडेय। डोईवाला (newslive24x7)
“काठमांडू से लुक्ला तक 30 मिनट की एयरजर्नी शुरू होने से पहले मैंने ईश्वर से प्रार्थना की, बस 30 मिनट सबकुछ ठीकठाक रहे। मैं भगवान से कुछ न कुछ मांगता रहता हूं। सच बताऊं 30 मिनट तक सबकुछ ठीक रहा, फिर हम सभी प्लेन में सवार यात्रियों की खुशी अचानक खौफनाक स्थिति में बदल गई। प्लेन लैंड नहीं कर पा रहा था, वो फिर से ऊंचाई पर था।”
“यह अप्रैल 2022 की बात है। मैं पत्नी के साथ शादी की पहली सालगिरह एवरेस्ट बेस कैंप पर सेलीब्रेट करने के लिए डोईवाला से वाया काठमांडू, लुक्ला होते हुए एवरेस्ट बेस कैंप जा रहा था।”
“हम लुक्ला एयरपोर्ट पर लैंड कर रहे थे। मैंंने सुना था कि नेपाल का लुक्ला एयरपोर्ट दुनिया के खतरनाक एयपोर्ट्स में से एक है, पर यहां तो हम साफ साफ महसूस कर रहे थे।”
“सीधे शब्दों में कहूं तो प्लेन की फिरकी बनी थी, वो कभी रनवे के नजदीक आता और फिर ऊंचाई पर होता या उससे काफी दूरी पर उड़ता। प्लेन तेजी से हिल रहा था,यह कंपन हम सभी यात्री महसूस कर रहे थे। तेज हवा की वजह से प्लेन पर पत्थरों की बौछार होने जैसी आवाज साफ सुनाई दे रही थी। यह किसी हॉलीवुड या साउथ की किसी एक्शन मूवी में वीएफएक्स वाला सीन समझ लीजिए, जिसमें कोई हेली या प्लेन हवा में तेजी से हिलता है और फिर चक्कर खाता हुआ हवा में गोते लगाता है।”
“हालात बेकाबू और गंभीर थे, सभी पसीने पसीने थे। मैंने हनुमान चालीसा पढ़नी शुरू की। पत्नी निष्ठा के आंसू नहीं थम रहे थे। मैं आपसे इस घटना की जिक्र कर रहा हूं, उस मंजर को याद करके मेरे रौंगटे खड़े हो रहे हैं।”
“खैर, हम सभी बच गए। सभी यात्री, जिनमें एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए जाने वाले पर्वतारोही भी शामिल थे, खुद को भाग्यशाली मान रहे थे।
मैंने निष्ठा से पूछा, “तुम क्यों रो रही थीं।”
उनका कहना था ” तुम्हारे जैसा स्ट्रांग व्यक्ति जब सुरक्षा के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे तो समझ में आता है कि स्थिति कितनी खतरनाक है।”
करीब 31 साल के फेमस बाइक राइडर सिद्धार्थ वासन, जो पेशे से टैक्स एडवोकेट हैं, हम भारत के लोग कार्यक्रम में उन किस्सों को साझा कर रहे थे, जो उनके जीवन पर गहरी छाप छोड़ते हैं।
पूरा साक्षात्कार देखें, जानिए बाइक राइडिंग में करिअर के अवसर
बताते हैं, “हमने लुक्ला से चार्टर प्लेन करके एवरेस्ट बेस कैंप तक उड़ान भरी। इस प्लेन में, मैं और पत्नी ही थे, क्योंकि हमें अपनी अपनी विंडो से प्रकृति की उन सौगातों को देखना था, जिनके लिए पूरी दुनिया वहां आना चाहती है।”
“वाह, यह इतना शानदार और अविस्मरणीय है कि मैं आपके सामने वर्णन नहीं कर सकता, मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। एवरेस्ट को दुनिया का सबसे ऊंचा माउंटेन कहा जाता है तो वो है। इतनी ऊंचाई पर बेस से उसकी ऊंचाई को देखो तो क्या विशाल है वो, सीधा आकाश का छूता है। मैं तो हैरान हूं, उन पर्वतारोहियों को देखकर जो एवरेस्ट पर विजय हासिल करते हैं।”
रोड सेफ्टी पहले, अनियंत्रित स्पीड दूसरों के लिए जोखिम
देहरादून में Wanderers Bulleteers के संस्थापकों में से एक सिद्धार्थ वासन को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से सात बार रोड सेफ्टी पर सम्मान हासिल हुआ।
सिद्धार्थ बताते हैं, “रोड सेफ्टी सबसे पहले है। कोई स्पीड से हाथ मिलाना चाहता है तो उनके लिए ग्रेटर नोएडा का बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट है, जो मोटर रेसिंग सर्किट है, वहां जाएं। आप मुझे एप्रोच करो, मैं बताऊंगा वहां कैसे जा सकते हैं।”
” पर, सामान्य रोड पर तो आपको उसी स्पीड में होना चाहिए, जितने की परमिशन दी गई है। होता क्या है, यदि कोई अनियंत्रित स्पीड पर बाइक या कोई दूसरी व्हीकल दौड़ा रहा है, वो खुद तो खतरे में होने के साथ दूसरों के लिए भी बड़ा जोखिम पैदा करता है। देश में कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या से ज्यादा तो हर साल सड़क दुर्घटनाओं में होती हैं। ये भी वो आंकड़े होते हैं, जो कहीं दर्ज होते हैं। गंभीर रूप से घायल होने वाले कई पीड़ित तो कई बार रजिस्टर्ड नहीं हो पाते। इसलिए हम बार-बार यही अपील करते हैं कि स्पीड नियंत्रित रखें और पूरी सावधानी और सुरक्षा उपायों के साथ बाइक चलाएं।”
मेरी पहली बाइक….
सिद्धार्थ बताते हैं, “मैंने पहली बाइक अपनी पढ़ाई के दौरान खरीदी, वो भी पापा से कई तरह के बहाने बनाकर। सामान्य शब्दों में मैं कहूं तो यह एक अनरियलिस्टिक जिद थी। जैसे कि दसवीं से पहले, जब बच्चा पेपर देता है। वो जिद करता है कि मुझे ट्यूशन पढ़ने जाना है, बहुत सारे नई-नई चीजें और बताता है कि मेरी क्लास एक यहां है, एक देहरादून है। एक क्लास मेरी डोईवाला में है, एक के लिए भानियावाला जाना होगा। मेरी कोचिंग कैनाल रोड पर है, बहुत दूर है, वहां बस नहीं जाती।”
“मुझे बाइक दिलवा दो, ऐसे करके ही बच्चा कोशिश करता है, तो वैसे मैंने भी अनरियलिस्टिकली जिद की, पर तब की अनरियलिस्टिक जिद और आज की अनरियलिस्टिक जिद में बहुत फर्क है, तब पेरेंट्स अगर वो जिद मानते भी तो उस समय ट्रैफिक सेंस और ट्रैफिक की पॉजीशन हमारे प्रदेश में और पूरे देश में इतनी ज्यादा नहीं थी। लेकिन, अपकमिंग व्हीकल्स के साथ-साथ जिस तरह से रोड एक्सीडेंट हो रहे हैं, अब थोड़ा सा रिस्की है। ड्राइविंग लाइसेंस और सभी खास सुरक्षा के साथ, मैं रिकमेंड करता हूं कि 16 के बाद गियर लेस और 18 के बाद ही विद गियर चलाएं तो बेहतर रहेगा।”
“उस उम्र में हम यह नहीं सोच पा रहे थे कि बाइकिंग को किसी हॉबी की तरह लेना है, न कि लाइफ स्टाइल शो ऑफ करने के लिए। उस समय हमारे लिए बाइक शो ऑफ व्हीकल था, कि तेरे पास स्कूटी है, मेरे पास मोटर साइकिल है, मेरे पास स्पीड है, तू स्लो है। उस समय इस तरह की बातें दिमाग में चल रही होंगी।”
“उस जिद की मोटरसाइकिल और आज की बाइकिंग में बहुत फर्क है। कोटा में आईआईटी की कोचिंग के समय मेरे पास एक बाइक थी, जिससे मैं लंबी राइड प्लान करता था, जिन जगहों तक जाने के लिए मेरे साथी टैक्सी करते थे, मैं वहां बाइक से जाता था।”
पहली लंबी राइड लेह लद्दाख
बताते हैं, “वर्ष 2013 की बात है, मैं लगभग 19 साल का था। मेरा ड्राइविंग लाइसेंस बन गया था। डोईवाला के रेलवे रोड, ऋषिकेश रोड के कुछ युवाओं के बीच लेह लद्दाख की राइडिंग का प्लान बन रहा था। मैंने उनसे कहा, मैं भी साथ चलूंगा। उन्होंने मुझसे कहा, तुम वहां नहीं जा पाओगे। बहुत सारे चैलेंज हैं, तुमसे नहीं हो पाएगा।”
” मैंने उनसे कहा, मैं जा सकता हूं। काफी कन्वींस करने के बाद वो मुझे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए।”
“अब बारी थी, पापा को मनाने की, उनसे परमिशन मिलने पर ही वहां जा पाता। मैं घर जाने की बजाय सीधा पापा के दफ्तर पहुंचा। उनसे कहा, मुझे बाइक से लेह जाना है। उन्होंने बड़े आश्चर्य से मेरा चेहरा देखा और बोले, ऐसे कह रहा है, जैसे यहां आईएसबीटी तक जाना है। उन्होंने साफ साफ कह दिया, नहीं जाना, जानते हो कहां है लेह लद्दाख।”
“मैंने कहा, पापा यहां के सभी साथी जा रहे हैं। वो सभी अच्छे लोग हैं। पापा ने कहा, अच्छा मैं पहले इन्क्वायरी करता हूं। फिर बताता हूं, तुम्हें वहां जाना है या नहीं। बरसात में तो वैसे भी नहीं जाना। पापा ने मेरे ताऊजी के बेटे से पूछा, जो वहां जा चुके थे। उन्होंने सहमति व्यक्त करते हुए बताया, लेह लद्दाख जाने में कोई दिक्कत नहीं है। बाइकर्स वहां जाते हैं। इन्क्वायरी के बाद पापा ने मुझे वहां जाने की परमिशन दे दी। मैंने तैयारी शुरू की।”
“मेरे पापा हमेशा कोऑपरेटिव रहे हैं और शायद यही एक कारण है कि मैं इन चीजों में इतना ग्रो कर पाया। अपने मन की जो चीजें मैंने करनी थी उनमें मैं इसलिए शायद ग्रो कर पाया, क्योंकि उनका बहुत सपोर्ट रहा।”
“ऋषिकेश से किराये पर बाइक ली और फिर शुरू हो गया दस दिन का रोमांच से भरा सफर, वहां बाइक चलाने का अवसर मिला, जिसे दुनिया की सबसे ऊंची सड़क कहा जाता है।”
उमलिंग ला, दक्षिणी लद्दाख में स्थित 52 किलोमीटर लंबी चिसुमले-डेमचोक सड़क का सबसे ऊंचा हिस्सा है, जो हानले गांव से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। 19,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित उमलिंग ला दर्रा की ऊंचाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेपाल के एवरेस्ट का बेस कैंप भी इसकी तुलना में कम है।
“उस समय फेसबुक पर हमने इस राइड के बहुत सारे फोटोग्राफ पोस्ट किए, जिन पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं। बहुत शानदार क्षण थे, मैं वहां के दस दिन के किस्से आपको सुनाने बैठ जाऊं तो बहुत वक्त लग जाएगा। उस राइड के सीन ताजे कर रहा हूं, तो मेरे रौंगटे खड़े हो रहे हैं। बहुत कुछ है, वहां के बारे में बताने के लिए।”
राइडर्स की जैकेट देखी…
“बहुत शानदार रही हमारी लेह लद्दाख की राइड। हम कैंपिंग इक्विपमेंट और जैकेट्स, जो उस समय इकट्ठा कर सकते थे, वो किया। मजे की बात है उस समय हमें राइडिंग गियर्स (Riding Gears) के बारे में पता भी नहीं था कि राइडिंग गियर्स नाम की कोई चीज भी होती है। जब हम लद्दाख जा रहे थे रास्ते में दूसरे बाइकर्स हमें थम्सअप कर रहे थे और हम अपनी ठंड वाली जैकेट पहन के घूम रहे थे और वो लोग राइडिंग जैकेट पहने हुए थे। खासकर जैकेट तो जैसे मन को भा गई। जिस तरह की उसकी अपीयरेंस थी, सोच रहा था कि यह जैकेट कम कम से 50 हजार रुपये तक की होगी।”
“प्लान बना लिया, पापा से कहूंगा, मुझे यह जैकेट दिला दो। भले ही मेरी पॉकेटमनी कम कर दो। और भी, तरह-तरह की बातें सोच रहा था। आपको बता दूं, ये जैकेट उस समय पांच हजार रुपये की थी। मैं सबसे रिक्वेस्ट करूंगा कि वो जैकेट आज की तारीख में बेसिक वाली 5000 रुपये से शुरू हो जाती है। मैंने उस समय भी जब ली, तब दिल्ली करोल बाग से बहुत अच्छी वाली जैकेट 5500 की थी। सिर्फ बाइकर्स ही नहीं, लोकल में बाइक चलाने वाले भी इसको अपनी सेफ्टी के लिए इस्तेमाल करें, भले ही आप किसी बाइकिंग ग्रुप से एसोसिएटेड हैं या खुद राइड करते हैं तब भी। हमारे क्षेत्र में कई लोग बाइक से श्री हेमकुंड साहिब, श्री बद्रीनाथ की यात्रा करते हैं, वो लोग भी इस जैकेट को अगर पहने तो एडिशनल प्रोटेक्शन रहेगी।”
“लेवल टू वाली जैकेट अधिक दाम और अधिक सुरक्षा उपायों पर आधारित है। इसमें छाती, हाथों, कंधे, कोहनी, पीठ के लिए सुरक्षा उपाय मौजूद हैं। कम रेंज वाली में चेस्ट प्रोटेक्शन का उपाय नहीं होगा। थोड़ा सा जो उसका प्रोटेक्शन लेवल है, वो लेवल वन पे होगा, उसमें भी शोल्डर्स एल्बो पूरी कवर्ड रहेंगी। पूरी जैकेट आपकी पहनी हुई होती है, अब जैसे मैं टीशर्ट में गिरूंगा तो यहां चोट लगने के चांसेस ज्यादा हैं। पेट में भी चोट लग सकती है। बैक में भी लग सकती है और जो हमारे ऐसी मसल्स हैं, जो कर्व में हैं, उनमें चोट लग जाती है तो कई बार चोट ज्यादा होती है। चोट से बचने के लिए जैकेट में एडिशनल प्रोटेक्शन होती है। बाकी, जैकेट तो पूरी कवर्ड होती है। एटलीस्ट आप जो थोड़ा बहुत गिरोगे, वो बचाव हो सकता है,” सिद्धार्थ वासन बताते हैं।
बाइकर के लिए जरूरी सुरक्षा उपाय
यंग बाइकर सिद्धार्थ बताते हैं, “एक बाइकर के लिए बहुत जरूरी होता है हेलमेट, जो कि सबसे पहली नेसेसिटी है। हेलमेट तो हमेशा पहनना चाहिए। राइडिंग जैकेट होती है, जिसमें इस तरह के प्रोडक्ट होते हैं जो कि आपके शोल्डर एल्बो को प्रोटेक्ट करते हैं, बैक को प्रोटेक्ट करते हैं, चेस्ट को प्रोटेक्ट करते हैं। उसके बाद आती है राइडिंग पैंट या राइडिंग डेनिम, जिसके दो ऑप्शन होते हैं, उसमें वो दोनों आपको घुटने से और बैक से कवर करते हैं। यह थोड़ी रफ एंड टफ बनी हुई होती है। नॉर्मल डेनिम में और इसमें यह फर्क होता है कि इसमें किसी दुर्घटना की स्थिति में बचने के चांसेस ज्यादा होते हैं। किसी भी नये बाइकर के लिए कोई भी हाई एंकल शूज चल सकते हैं। इसके भी अलग-अलग आप्शन हैं।”
मेरी हर राइड डोईवाला से शुरू होती है
सिद्धार्थ बताते हैं, “मैं हर राइड को डोईवाला से स्टार्ट करता हूं। मैं जब कन्याकुमारी गया तो मैंने उस राइड का नाम देहरादून टू कन्याकुमारी नहीं रखा। मैंने उसका नाम डोईवाला टू कन्याकुमारी रखा। उसी तरह से मेरा एक मन है कि मैं डोईवाला टू लंदन राइड भी करूं वो मेरा मन बहुत समय से है। पहले जब मैं पांच सात साल पहले किसी को बताता था तो वो सोचते थे डोईवाला से लंदन, ये कैसे हो सकता है। यह मेरा ड्रीम ट्रिप है। डोईवाला से लंदन बाइक से या कार से, दोनों ऑप्शन मैंने ओपन रखे हैं। अभी सिर्फ सोच रहा हूं और सोच तो मैं यह बात पिछले पांच- सात साल से भी रहा हूं। ये पूरा कब होगा, ये मुझे नहीं पता पर जब भी पूरा होगा उसका नाम डोईवाला टू लंदन ही होगा। हालांकि, मैंने नेपाल और भूटान में मोटरसाइकिल चलाई है, पर हमें और भी कहीं लंबी राइड पर जाना है।